महाकुंभ में कबूतर बाबा बने श्रद्धालुओं के आकर्षण का केंद्र, जानें क्या है रोचक कहानी

Meghraj
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प्रयागराज में चल रहे महाकुंभ मेले में देशभर से साधु-संतों का आगमन हुआ है, लेकिन इनमें से एक नाम सबसे ज्यादा चर्चित है, कबूतर वाले बाबा। जूना अखाड़े के बाबा पावूराम, जिन्हें लोग प्यार से कबूतर बाबा कहते हैं, अपने अनोखे अंदाज के कारण तीर्थयात्रियों के आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं। राजस्थान के चित्तौड़गढ़ के निवासी बाबा पावूराम पिछले 9 सालों से अपने सिर पर एक कबूतर को साथ लेकर चलते हैं।

प्राणियों की सेवा में समर्पित जीवन

कबूतर बाबा का मानना है कि प्राणियों की सेवा ही सबसे बड़ा धर्म है। उनका कहना है कि हर प्राणी में भगवान का वास होता है और उन्हें सम्मान और प्रेम से देखना चाहिए। बाबा अपने उपदेशों में अक्सर कहते हैं कि गौसेवा, गोरू सेवा, और नंदी सेवा सबसे महत्वपूर्ण हैं। ये सेवाएं तंत्र-मंत्र या किसी अन्य साधना से अधिक फलदायी होती हैं। बाबा के अनुसार, जो लोग प्राणियों की सेवा करते हैं, उन्हें अद्भुत और आध्यात्मिक लाभ प्राप्त होते हैं।

कबूतर से जुड़ी अनोखी कहानी

बाबा पावूराम अपने सिर पर कबूतर लेकर चलते हैं, जिसे वह प्राणियों के प्रति प्रेम और करुणा का प्रतीक मानते हैं। तीर्थयात्रियों में बाबा और उनके कबूतर को लेकर काफी उत्सुकता रहती है। लोग बाबा से उनकी जीवनशैली और इस विशेष प्रतीक के बारे में सवाल पूछते हैं। बाबा इसे एक संदेश के रूप में बताते हैं कि हर प्राणी का सम्मान और सेवा करना चाहिए।

बाबा का संदेश और जीवन दर्शन

बाबा का कहना है कि प्राणियों में शिव का वास है। उनका मानना है कि तंत्र-मंत्र से भी ज्यादा महत्वपूर्ण है प्राणियों की सेवा। वह लोगों को गौसेवा और जीव-जंतुओं के प्रति करुणा का संदेश देते हैं। महाकुंभ में बाबा का यह अनोखा रूप श्रद्धालुओं के लिए आध्यात्मिक प्रेरणा का स्रोत बन गया है।

वैज्ञानिक प्रमाण की बात

हालांकि बाबा के विचार और उपदेश उनके व्यक्तिगत अनुभवों और धार्मिक मान्यताओं पर आधारित हैं, लेकिन इन बातों का कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है। श्रद्धालुओं को इसे आध्यात्मिक दृष्टिकोण से देखने की सलाह दी जाती है।

कबूतर बाबा का यह अनोखा अंदाज महाकुंभ मेले की एक खास पहचान बन गया है। उनका संदेश हमें प्राणियों के प्रति प्रेम और सेवा का महत्व सिखाता है।