‘पर्सनालिटी A’ वाले आसानी से बनते है हार्ट अटैक का शिकार, कहीं आप में भी तो नहीं ये समस्या?

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एक्टर सिद्धार्थ शुक्ला की मौत ने सबको चौंका दिया है। क्योंकि उनकी उम्र मात्र 40 साल थी और वह हार्ट अटैक का शिकार हो गए। इस बात पर कोई भरोसा ही नहीं कर पा रहा है। ऐसे में अभी हाल ही में युवाओं के बीच हार्ट अटैक की बढ़ती समस्या को देखते हुए डॉक्टर्स और हेल्थ एक्सपर्ट्स लोगों को लाइफस्टाइल से जुड़ी कई जरूरी सलाह दे रहे हैं। ऐसे में दिल्ली के फोर्टिस हॉस्पिटल के डॉक्टर तपन घोष ने हार्ट अटैक और ‘पर्सनालिटी A’ के बीच भी एक खास संबंध बताया है।

उन्होंने इस बारे में बताते हुए कहा है कि सिद्धार्थ पर्सनालिटी A किस्म के शख्स थे, यानी हमेशा फर्स्ट आने की चाहत। ऐसे लोगों में हार्ट डिजीज से मौत का खतरा ज्यादा होता है। हिंदुस्तान में हर दिन हार्ट की बीमारी से 40 साल से कम उम्र के 900 लोगों की मौत होती है। आगे उन्होंने बताया है कि टाइप A पर्सनालिटी होना जैसे कि क्लास में फर्स्ट आना।

जैसा कि आप सभी जानते ही हैं कि सिद्धार्थ बिग बॉस के विनर रहे हैं और उनकी पर्सनालिटी काफी स्ट्रॉन्ग थी। वो हमेशा फर्स्ट आना चाहते थे। ऐसे लोगों को टाइप ए पर्सनालिटी कहा जाता है और उनमें हार्ट डिजीज का रिस्क ज्यादा होता है। हार्ट अटैक से तुरंत मौत को ‘सडन कार्डियक डेथ’ कहते हैं। इसमें 1 घंटे के अंदर ही मौत हो जाती है और इसका सबसे बड़ा कारण है कोरोनरी आर्टरी डिजीज. 20% लोगों में ऐसी चीजें होती हैं।

ऐसे में इसकी वजह डायबिटीज, स्मोकिंग और खराब लाइफस्टाइल है। आगे उन्होंने बताया है कि ज्यादातर देखा गया है कि जो टेक्नोक्रेट हैं, उनमें हार्ट की बीमारी ज्यादा होती है। कई सारे आईटी पर्सनल ऐसे हैं जो दूसरे देश का क्लॉक फॉलो करते हैं और जब सोने का समय होता है तो वह काम करते हैं जिसकी वजह से नींद कम होती है और सनलाइट एक्स्पोजर भी कम होता है। इससे शरीर में विटामिन डी की कमी बहुत ज्यादा हो जाती है।

बता दे, डॉक्टर ने बताया है कि जो लोग 6 घंटे से कम या 9 घंटे से ज्यादा सोते हैं, उनमें भी इस तरीके की बीमारी ज्यादा होती है क्योंकि उनका क्लॉक गड़बड़ होता है और शेड्यूलिंग भी सही नहीं होती है। बड़े शहरों में सबसे बड़ी दिक्कत है घर लेट से लौटना। लोग 8- 8:30 बजे आते हैं, खाना खाते हैं और सो जाते हैं और फिर सुबह-सुबह जल्दी उठकर ऑफिस के लिए तैयार हो जाते हैं लेकिन यह लाइफस्टाइल सही नहीं है। यह मौत की एक बहुत बड़ी वजह है जिसको बदलना चाहिए।