Pearl Farming in MP: मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा जिले में मोती की खेती की शुरुआत हो चुकी है, जो कि एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है। खास बात यह है कि इस पहल को महिला स्व सहायता समूह ने शुरू किया है। कलेक्टर शीलेन्द्र सिंह ने इस पहल की सराहना करते हुए कहा कि यह क्षेत्र के लिए एक नया अवसर है, जिससे स्थानीय महिलाओं को आर्थिक सशक्तिकरण का लाभ मिलेगा।
ताजे पानी में मोती की खेती
पालाचौरई गांव में ताजे पानी में मोती की खेती की जा रही है। कलेक्टर ने इस खेती का शुभारंभ करते हुए कहा कि मध्यप्रदेश में पहली बार ताजे पानी में मोती की खेती हो रही है। यह पहल स्थानीय ग्रामवासियों और एनआरएलएम के लिए गर्व का विषय है, और अब यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम इसे सफलता की ऊंचाइयों तक पहुंचाएं।
तालाब की आवश्यकताएँ और मोती की उत्पादन प्रक्रिया
मोती की खेती के लिए विशेष तालाब की आवश्यकता होती है। इस तालाब की लंबाई 80 फीट, चौड़ाई 50 फीट और गहराई 12 फीट होनी चाहिए। तालाब में मोती के बीज डाले जाते हैं, और 15 से 18 महीनों में मोती तैयार होते हैं। प्रति हेक्टेयर 20,000 से 30,000 सीपों में मोती का पालन किया जा सकता है।
मोती की बाजार कीमत और लाभ
मोती की कीमत उसके ग्रेड के अनुसार तय होती है, जो बाजार में 300 रुपए से लेकर 1500 रुपए तक बिकती है। मोती की खेती के लिए अक्टूबर से दिसंबर का समय सबसे उपयुक्त माना जाता है, और यदि सबकुछ ठीक रहा, तो यह खेती किसानों को जल्द ही आर्थिक रूप से मजबूत बना सकती है।
छिंदवाड़ा जिले में मोती की खेती की इस नई शुरुआत ने न केवल स्थानीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा दिया है, बल्कि महिलाओं के सशक्तिकरण का भी एक बड़ा उदाहरण पेश किया है। यह पहल न केवल आर्थिक लाभ के लिए है, बल्कि समाज में सकारात्मक बदलाव लाने का भी एक माध्यम है।