माता-पिता : धरती के भगवान

Suruchi
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बाज़ार में बड़ी आसानी से मिल जाता है सब कुछ,लेकिन न तो माँ जैसी जन्नत मिलती है न बाप जैसा साया। सच्चे ज्योतिषी दुनिया में बस दो ही हैं ,मन की बात समझने वाली मां और भविष्य को पहचानने वाला पिता। उपरोक्त पंक्तियों को चरितार्थ किया वामा साहित्य मंच ने अपने ऑनलाइन कार्यक्रम में। यह दिवस माता पिता को समर्पित था। कार्यक्रम की शुरुआत हुई वामा अध्यक्ष अमर चड्डा के स्वागत वक्तव्य से। सभी को मातृ-पितृ दिवस की बधाई देते हुए उन्होंने कहा कि पिता उनके लिए भी उनकी पूजा, सहारा और सर्वस्व है।

इस आभासी कार्यक्रम के अतिथि थे, प्रख्यात साहित्यकार, संपादक श्री गोपाल माहेश्वरी जी। आरंभ मे शोभा प्रजापति ने माता को धरती तो पिता को बीज मानकर सुंदर भावों से सुशोभित किया ।प्रीति दुबे मानती है कि पिता का कांधा और मां की गोद दोनों ही जीवन के सुखद संयोग है। संगीता परमार भी अपने पिता को अपना सब कुछ मानती है। हंसा मेहता ने कहा कि माँ हृदय में सपने बोती है तो पिता उन सपनों की उड़ान तय करते हैं ।

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आशा मुंशी नतमस्तक हैं उनके लिए जो जीवन प्रणेता थे,आंधी तूफान विजेता थे ।बकुला पारीक ने लघु कथा के माध्यम से अकेले रह गए बुजुर्गों को आश्रय देने की बात कही। शांता पारेख ने संस्मरण द्वारा पिता को याद किया तो नीलम तोलानी ने पिता पर शानदार सवैया पढ़ें। सपना संघवी कहती है कि माता-पिता के उपकारों का क़र्ज़ मर कर भी नहीं चुकाया जा सकता।प्रतिभा जैन के अनुसार उनके वात्सल्य,ममत्व और समर्पण की गहराई को समझना नामुमकिन है।

डॉ वंदना मां को मणिकर्णिका घाट सा पवित्र मानती है जिसमें वे सारे दर्द विसर्जित करके सुकून पाती हैं।स्नेह श्रीवास्तव ने कहा कि माता पिता जीवन तो देते ही हैं परन्तु उसे सुसंस्कारित भी करते हैं । डॉ माधवी जैन को दुख होता है जब वे बूढ़े पिता को ममता के लिए और बूढ़ी मां को पितृत्व के लिए तरसते देखती हैं । प्रभा मेहता की मां धरती में ,जल में ,अगन में ,पवन में ,गगन में हर जगह दिखाई देती हैं।अंजना चक्रपाणि ने पिता को याद करते हुए सुंदर सा संस्मरण सुनाया तो रूपाली पाटनी ने माँ को याद करते हुए।

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सुभद्रा कुमारी चौहान पुरस्कार से नवाजे गए अतिथि महोदय प्रख्यात साहित्यकार श्री गोपाल माहेश्वरी जी ने इस अवसर पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि पितर शब्द में माता पिता दोनों का भाव निहित है।धरती माँ है तो गगन पिता कहलाता है। हमारी संस्कृति में पार्वती को जगदंबा और शिव को परमपिता कहा गया है।हर माता-पिता उन्हें आदर्श मानकर अपनी संतति का पालन करते हैं ।जगत्गुरु शंकराचार्य को उद्धृत करते हुए उन्होंने विषय पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि साहित्य में शिव तत्व अर्थात कल्याणकारी तत्व होना जरूरी है।सत्य जब कल्याणकारी रूप में सुन्दरता सेअभिव्यक्त किया जाता है तो वह साहित्य का रूप लेता है। अंत मे आभार माना वामा की सचिव इंदु पाराशर ने । संचालन किया अंजू निगम ने ।