पेन किलर का इस्तेमाल सबसे ज्यादा ऑर्थोपेडिक पेशेंट करते हैं, यह समस्या खत्म तो नहीं करती बल्कि दूसरे ऑर्गन पर गलत प्रभाव छोड़ती है – Dr. Ajay Singh Thakur Superintendent Index Hospital

Suruchi
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इंदौर। मैने आर्मी और सिविलियन दोनों जगह डॉक्टर के रूप में अपनी सेवाएं दी है मैंने अपने निजी अनुभव में यह पाया है की आर्मी पर्सन के घुटनों और अन्य हड्डियों से संबंधित समस्या सिविलयन के मुकाबले लेट होती है। इसका एक कारण उनका खुद को फिट रखना और नियमित खानपान है। आमतौर पर 45 साल की उम्र के बाद यह देखा गया है कि 40% पुरुष और 50% महिलाओं में घुटनों से संबंधित समस्या देखी जाती है।

घुटनों की समस्या के कई कारण हैं जिसमें अर्थराइटिस की वजह से हड्डियों से संबंधित समस्या सामने आती है। जिसमें ओस्टियोआर्थराइटिस एक कॉमन कारण होता है। उम्र बढ़ने के साथ-साथ हमारे शरीर में कई प्रकार की बीमारियां जन्म लेती है उसी तरह उम्र के साथ हड्डियों में कमजोरी और अन्य समस्याएं देखने को मिलती है जिसमें हड्डियों की डेंसिटी कम हो जाती है, जॉइंट ट्रोमा की हिस्ट्री, गाउट और अन्य समस्याएं घुटनों और कूल्हों में कॉमन होती है यह बात लेफ्टिनेंट कर्नल डॉक्टर अजय सिंह ठाकुर सुपरिटेंडेंट इंडेक्स मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल ने अपने साक्षात्कार के दौरान कही।

सवाल.ऑर्थोपेडिक समस्या में लोग सबसे ज्यादा गलती कहा करते हैं

जवाब. आर्थोपेडिक समस्या में सबसे ज्यादा जो लोग गलती करते हैं वह है जिसमें दर्द की अनुभूति होने पर लोग पेन किलर का इस्तेमाल करते हैं। इसके बाद जब वह कंट्रोल से बाहर हो जाता है और एक समय बीत जाता है तब जाकर डॉक्टर के पास जाते हैं लेकिन तब तक काफी देर हो चुकी होती है। अगर बात पेन किलर के इस्तेमाल की करी जाए तो सबसे ज्यादा ऑर्थोपेडिक पेशेंट ही इसका इस्तेमाल करते हैं इसके इस्तेमाल से ऑर्थोपेडिक की समस्या खत्म तो नहीं होती है बल्कि इसके ज्यादा इस्तेमाल से शरीर के अन्य अंगों पर बुरा प्रभाव पड़ता है।

सवाल.घुटनें और कूल्हे की समस्या के क्या कारण है

जवाब.अगर हम बात घुटनों और कूल्हे की समस्या की करें तो यह एक लाइफस्टाइल डिजीज है हमारी फिजिकल एक्सरसाइज कम हो रही है पहले के मुकाबले लोग पैदल कम चलते हैं पूरे मशीन पर निर्भर हो गए हैं इस वजह से घुटने की नियमित एक्सरसाइज कम हो गई है। इसी के साथ इसका एक मेन कारण बढ़ता मोटापा भी है वही हमारा फास्ट फूड कल्चर भी इस बीमारी को बढ़ावा दे रहा है। अगर इस पर ध्यान नहीं दिया गया तो घुटनो से संबंधित समस्याएं और ज्यादा तेजी से बढ़ेगी। इसके और भी अन्य कारण होते हैं जैसे इम्यून सिस्टम का खराब होना, घुटनों में चोट की हिस्ट्री जैसी समस्या शामिल है।

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सवाल.कूल्हे की समस्या किस वजह से होती है

जवाब.अगर बात कूल्हे से संबंधित समस्या की की जाए तो यह घुटनों के मुकाबले कम लोगों में देखी जाती है वही इसमें भी सबसे कॉमन कारण ओस्टियोआर्थराइटिस है।वही यंग जनरेशन में एवेस्कुलर नैक्रोसिस है जो कि इन बीमारियों का एक मेन कारण है। आमतौर पर कूल्हे मैं खून का सरकुलेशन कम होने की वजह से कूल्हे का गोला खराब हो जाता है। उसके भी अनगिनत कारण है लेकिन ज्यादा अल्कोहल का सेवन करना इस समस्या को बढ़ावा देता है।

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सवाल. इन समस्याओं से बचने के लिए क्या किया जाना चाहिए, किस स्टेज में रिप्लेसमेंट होता है।

जवाब.इन समस्याओं से बचने के लिए साइकिलिंग, वॉकिंग, रनिंग, सिंपल रूटीन एक्सरसाइज, वजन को कम करना फास्ट फूड की दूरी बनाना होगा। हमें हमारे व्यायाम और इन सब के साथ अपना बीएमआई चेक करना चाहिए उसके अकॉर्डिंग ही हमारा वेट होना चाहिए। आपका नॉरमल बीएमआई 28 और 25 के बीच होना चाहिए यदि 28 से ऊपर होता है तो या 30 से ऊपर होने पर यह ओवर वेट की श्रेणी में आता है।

वही यह जोड़ों की समस्या को बढ़ा देता है इसी के साथ हिप से संबंधित समस्या से बचने के लिए नॉर्मल एक्सरसाइज, दंड बैठक, स्पोर्ट्स हिप मसल एक्सरसाइज शामिल है। कूल्हे की समस्या होने पर अगर इसे पहली स्टेज में ही पहचान कर डॉक्टर की सलाह लेकर इलाज करवा लिया जाए तो इससे काफी हद तक बचा जा सकता है। शुरुआत की स्टेज में कूल्हे में ब्लड सरकुलेशन बढ़ाने के लिए सिंपल ड्रिल होल किया जाता है साथ इसमें ड्राफ्ट सर्जरी और कुछ इंजेक्शन की मदद से भी इसे ठीक किया जा सकता है। इसमें सही समय पर इलाज नहीं होने से तीसरी और चौथी स्टेज में संभवत रिप्लेसमेंट किया जाता है।

सवाल.घुटने और कूल्हे से संबंधित समस्या होने पर इन्हें कैसे पहचाना जा सकता है

जवाब. जब आप 1 से 2 किलोमीटर चलते हैं और आपको कूल्हे के जोड़ में दर्द शुरू हो जाए तो ऐसी स्थिति में डॉक्टर से सलाह लेकर इलाज कराना ठीक रहता है इसी के साथ इन समस्याओं से बचने के लिए मैनेजमेंट 3 तरह से होता है। सिंपल एक्सरसाइज लाइफ़स्टाइल मोडिफिकेशन, वेट लॉस इसके बाद तीसरे नंबर पर आती है मेडिसिन यह अर्ली स्टेज में इन समस्याओं से बचाता है। आपने आर्मी में मेडिकल फील्ड में आने से पहले और मेडिकल फील्ड की पढ़ाई कहां-कहां से कंप्लीट की है

जवाब.जब मैं स्कूल में था तब से ही आर्मी ज्वाइन करने का सपना था मेरा फैमिली बैकग्राउंड आर्मी से नहीं है लेकिन कुछ रिलेटिव आर्मी में थे। जब में पढ़ रहा था उस दौरान कारगिल वॉर चल रहा था वहीं से आर्मी ज्वाइन करने का मन बना लिया। मेरी स्कूलिंग भिलाई से कंप्लीट हुई इसके बाद 1997 में एएफएमसी क्लियर होने के बाद आर्म्ड फोर्सेज पुणे में एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी की इसके बाद इंडियन आर्मी जॉइन की। इसके बाद आर्मी के किंग जॉर्ज मेडिकल कॉलेज लखनऊ से अपनी पोस्ट ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी की। इसके साथ आर्मी में रहने के दौरान कई कोर्स और प्रोग्राम में हिस्सा लिया आर्मी कॉलेज से ज्वाइंट रिप्लेसमेंट और अन्य ऑर्थोपेडिक ट्रेनिंग में हिस्सा लिया।

मैने आर्मी में रहने के दौरान देश के कई हिस्सों में मैंने अपनी सेवाएं दी है जिसमें श्रीनगर, जम्मू कश्मीर, नागपुर, लखनऊ, पंजाब, जोधपुर में ज्वाइंट रिप्लेसमेंट सेंटर स्टैबलिश किया। वहीं मुंबई अटैक के दौरान मुझे वहां डिप्लॉय किया गया था। मैंने आईआईएम इंदौर से कॉविड के दौरान डॉक्टर लीडरशिप प्रोग्राम भी कंप्लीट किया है। आर्मी से रिटायरमेंट के बाद शेल्बि हॉस्पिटल में अपनी सेवाएं दी इसके बाद अभी वर्तमान में शहर के प्रतिष्ठित इंडेक्स मेडिकल हॉस्पिटल में सुपरिटेंडेंट के रूप में अपनी सेवाएं दे रहा हूं। श्रीनगर में जब कैजुअलिटी ट्रॉमा देखा और उन्हें ट्रीट करना शुरू किया तब मैंने तय कर लिया कि अब मैं ऑर्थोपेडिक डिपार्टमेंट में ही कंटिन्यू करूंगा। आर्मी मेडिकल डिपार्टमेंट में सेवा करने पर मुझे सैन्य सेवा मेडल, लोंग सर्विस मेडल, वही कोविड-19 में मेरे काम को देखते हुए शौर्य सम्मान से नवाजा गया।

सवाल. आप ऑर्थोस्कोपी में दूरबीन से होने वाली सर्जरी में भी डील करते हैं यह किस तरह होती है

जवाब.मैं ऑर्थोस्कोपी में दूरबीन से होने वाली सर्जरी में भी डील करता हूं जिसमें घुटनों का लिगामेंट रिपेयर किया जाता है। इसमें कई बार यंग एज में स्पोर्ट्स पर्सन को लिगामेंट इंजरी होती है, इसमें यह सर्जरी काफी इफेक्टिव है इस सर्जरी के बाद प्लेयर या सामान्य व्यक्ति बहुत जल्दी रिकवर करता है और अपने काम को फिर से करने लग जाता है। लिगामेंट इंजरी के इग्नोर करने पर आगे चलकर यह हमारे घुटनों को डैमेज कर देती है और फिर घुटनों का रिप्लेसमेंट करवाना पड़ता है। इस सर्जरी में पेशेंट को दर्द काफी कम होता है वही रिकवरी ज्यादा तेज होती है। इसके ट्रीटमेंट के बाद सामान्य व्यक्ति 2 सप्ताह के बाद अपने काम पर लौट जाता है वही प्लेयर्स को 6 महीने बाद इसे कंटिन्यू करने की सलाह दी जाती है।