एक हजार रुपए होगी कोरोना वैक्सीन की कीमत, 300-400 मिलियन डोस होंगे तैयार

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ई दिल्ली: कोरोना से जंग लड़ रही दुनिया की नजरें अब वैक्सीन तक टिकी हुई है। इसी बीच ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी की वैक्सीन के सफल ट्रायल ने आशा की किरण जगाई है। वहां इस वैक्सीन पर ह्यूमन ट्रायल चल रहा है और ट्रायल में बेहतर रिजल्ट सामने आए हैं। भारत में भी ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की इस वैक्सीन का प्रोडक्शन किया जाएगा।

ऑक्सफोर्ड वैक्सीन ग्रुप के डायरेक्टर एंड्रयू पोलार्ड ने बताया कि एंटीबॉडी रेस्पॉन्स से पता चलता है कि ये वैक्सीन काफी कारगर है। उन्होंने कहा ट्रायल में सफलता नजर आने के बावजूद अब हमें इसके प्रूफ की जरूरत है कि ये वैक्सीन कोरोना वायरस से बचा सकती है। पोलार्ड ने बताया अब इस वैक्सीन का ट्रायल अलग-अलग लोगों पर किया जाएगा और आकलन किया जाएगा कि दूसरे लोगों पर इसका कैसा असर दिखाई देता है।

एंड्रयू पोलार्ड से पूछा गया कि कोविड वैक्सीन का कोई लॉन्ग टर्म साइड इफेक्ट तो नहीं होगा। अगर आप लोग इतनी तेजी से काम कर रहे हैं तो उससे वैक्सीन की क्वालिटी पर असर तो नहीं पड़ेगा। इस पर पोलार्ड ने कहा, ”वैक्सीन बनाने का कोई शॉर्टकट तरीका नहीं है। क्लिनिकल ट्रायल अब भी उसी प्रक्रिया के तहत किया जा रहा है, जैसे सामान्य दिनों में वैक्सीन बनाते समय किया जाता है इसलिए क्वालिटी पर कोई असर पड़ने की बात ही नहीं है। उन्होंने कहा कि हमारे पास लॉन्ग टर्म डेटा ही उपलब्ध नहीं है। हमें सिर्फ इसी का लाभ मिल सकता है कि पहले भी हम लोगों ने इस तरह की वैक्सीन का इस्तेमाल किया है।”

वहीं, भारत में इस वैक्सीन का प्रोडक्शन करने जा रहे पुणे स्थित सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के सीईओ अदर पूनावाला ने बताया कि हम बड़े पैमाने पर इस वैक्सीन का प्रोडक्शन करने जा रहे हैं और इस हफ्ते वैक्सीन के लिए परमिशन लेने जा रहे हैं। पूनावाला ने बताया कि दिसंबर तक ऑक्सफोर्ड वैक्सीन Covishield की 300-400 मिलियन डोस बनाने में हम सफल हो जाएंगे।

वैक्सीन की कीमत पर बात करते हुए पूनावाला ने कहा कि चूंकि इस समय पूरी दुनिया कोविड से जूझ रही है, इसलिए हम इसकी कीमत कम से कम रखेंगे। इस पर शुरुआत में प्रॉफिट नहीं लिया जाएगा। उन्होंने कहा कि भारत में इसकी कीमत 1000 रुपये के आसपास या इससे कम हो सकती है। उन्होंने कहा कि पूरी दुनिया कोरोना संकट का सामना कर रही है इसलिए वैक्सीन की मांग बहुत ज्यादा होगी। ऐसे में हमें उसके उत्पादन और डिस्ट्रीब्यूशन के लिए सरकारी मशीनरी की जरूरत होगी।