कांग्रेस तोड़कर भाजपा प्रदेश की सत्ता में काबिज हो गई। सत्ता की चकाचौंध के कारण कांग्रेस के टूटने का क्रम अब भी जारी है। भाजपा का कुनबा बढ़ रहा है और पार्टी के नीति-नियंता गद्गद्। पर बागियों की बढ़ती आमद से भाजपा में अपना खुद का कुनबा बिखरने के हालात बन गए हैं। इधर कांग्रेसी पार्टी छोड़कर भाजपा में आ रहे हैं, उधर भाजपा के खांटी भाजपाईयों की नाराजगी बढ़ रही है। इसकी बानगी बागियों को सत्ता में भागीदार बनाने एवं पहले से उनका टिकट पक्का करने की खबर के बाद ही मिलने लगी थी। उमा भारती, जयभान सिंह पवैया, अजय विश्नोई, दीपक जोशी, भंवर सिंह शेखावत आदि अपनी अपनी तरह से भाजपा नेतृत्व को कटघरे में खड़ा कर रहे थे। भाजपा नेता एक-एक कर इन नाराज नेताओं को संतुष्ट करने की कोशिश कर रहे हैं। पर कांग्रेस में मोहभंग के हालात और भाजपा में कुनबा बढ़ाने की भूख से भाजपा का कांग्रेसीकरण होता जा रहा है। पार्टी के वरिष्ठ नेता इससे चिंतित हैं। कुछ नेताओं की नजर में जनता में इसका मैसेज अच्छा नहीं जा रहा। भविष्य में पार्टी को इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है।
कमलनाथ के ‘कौशल’ पर प्रश्नचिन्ह….
ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ 22 विधायकों के पार्टी छोड़ने और सत्ता गंवाने के साथ कमलनाथ के प्रबंधन पर सवाल उठने लगे थे। अब गलेहरा विधायक प्रद्युम्न सिंह लोधी और नेपानगर की आदिवासी विधायक सावित्री देवी के इस्तीफे से कमलनाथ के कौशल पर ही प्रश्नचिन्ह लग गया है। दोनों ने विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा देकर भाजपा ज्वाइन कर ली। इस तरह भाजपा उन्हें झटके पर झटका दे रही है और कमलनाथ कह रहे हैं कि इसकी संभावना पहले से थी। विधानसभा चुनाव से पहले कमलनाथ प्रदेश अध्यक्ष थे, सरकार बनने के बाद मुख्यमंत्री भी बन गए। दोनों पद रहते हुए न सरकार संभाल सके और न संगठन। अब भी कमलनाथ प्रदेश अध्यक्ष के साथ नेता प्रतिपक्ष भी हैं और विधायकों का कांग्रेस छोड़ने का सिलसिला थम नहीं रहा। क्या यह माना जाए कि कमलनाथ में अब चुक गए। राजनीति में उनका समय अब खत्म हो गया। जो घटनाएं घट रही हैं, वे तो यही संकेत देती हैं। विधानसभा चुनाव से पहले की तर्ज पर कमलनाथ एक बार फिर पदाधिकारियों की फौज बढ़ाते जा रहे हैं। क्या यह फौज नुकसान की भरपाई कर सकेगी?
सिंधिया जी, कौन करेगा आप पर भरोसा….
कांग्रेस से बगावत कर भाजपा में गए बागी कमलनाथ सरकार पर भ्रष्टाचार के दलदल में डूबे होने का आरोप लगा ही रहे थे, इसी मोर्चे पर अब ज्योतिरार्दित्य सिंधिया भी डट गए। उन्होंने भी कांग्रेस की तत्कालीन कमलनाथ पर भ्रष्टाचारी होने का आरोप जड़ दिया। मजेदार बात यह कि इस सरकार में सिंधिया के खास 6 मंत्री थे। परिवहन, स्वास्थ्य, राजस्व, महिला एवं बाल विकास, स्कूल शिक्षा, खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति जैसे मलाईदार विभाग इनके पास थे। ये मंत्री सरकार में थे तब सभी के साथ सत्ता की चासनी खा रहे थे। मुख्यमंत्री कमलनाथ की तारीफ में कसीदे पढ़ रहे थे। ज्योतिरादित्य भी भाजपा पर खरीद-फरोख्त कर सरकार को गिराने के षडयंत्र का आरोप लगा रहे थे। कहने का तात्पर्य यह कि यदि कमलनाथ सरकार भ्रष्ट थी तो भ्रष्टाचार की गंगोत्री में सिंधिया समर्थकों ने भी डुबकी लगाई। अब सफाई कि कांग्रेस सरकार भ्रष्ट थी और हम पाक साफ। सिंधिया जी, जनता इतनी मूर्ख नहीं। कौन करेगा आपके इन आरोपों पर भरोसा। वह भी तब जब अधिकांश बागियों का पहला आरोप है कि हमारे नेता यानि आपको सम्मान नहीं मिला, इस कारण हमने कांग्रेस छोड़ी।
आखिर, इन्हें भी मिल गया ईनाम….
भूपेंद्र सिंह मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के सबसे खास हैं और पार्टी के अच्छे मैनेजर। अरविंद भदौरिया भी चुनावी प्रबंधन तथा पार्टी द्वारा सौंपे दायित्वों के निर्वहन में खरे उतरते रहे हैं। कांग्रेस को तोड़ने एवं बागियों को साधे रखने में इनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है। इस अभियान में शामिल रहे नरोत्तम मिश्रा को तत्काल ईनाम मिल गया था लेकिन भूपेंद्र सिंह एवं अरविंद भदौरिया खतरे में थे। इसलिए कि भूपेंद्र को यदि मंत्रिमंडल में लिया जाता है तो सागर जिले से तीन मंत्री हो जाएंगे जबकि जबलपुर जैसे जिले से एक भी मंत्री नहीं बना। अरविंद इसलिए खतरे में थे क्योंकि सिंधिया के कारण ग्वालियर-चंबल अंचल से सबसे ज्यादा मंत्री बन रहे थे। अच्छी बात यह है कि भाजपा नेतृत्व ने इन्हें मंत्री बनाने के लिए सारे समीकरण एक तरफ रख दिए। पहले मंत्रिमंडल विस्तार में इनका ख्याल रखा। दोनों को केबिनेट मंत्री की शपथ दिलाई गई। विभाग बंटवारे में भी ये कमजोर नहीं रहे। भूपेंद्र सिंह को नगरीय प्रशासन, विकास एवं आवास जैसे बड़े विभागों का दायित्व मिला। अरविंद भदौरिया भी सहकारिता जैसा जनता से जुड़ा विभाग पाने में सफल रहे।
‘मलाईदार’ शब्द से परहेज के मायने….
– इसे राजनीति की विडंबना कहें या नेताओं का दोहरा चरित्र, हर मंत्री को चाहिए मलाईदार विभाग। मलाईदार विभागों के नाम कोई अनाड़ी भी बता सकता है। ‘मलाईदार’ के कारण ही मुख्यमंत्री शिवराज सिंह मंत्रिमंडल विस्तार के बाद 12 दिन तक मंत्रियों को विभाग आवंटित नहीं कर सके। भोपाल से लेकर दिल्ली तक शिवराज, ज्योतिरादित्य सिंधिया एवं संगठन के बीच खींचतान चलती रही। बाद में ज्यादातर मलाईदार विभाग सिंधिया खेमे में गए लेकिन अन्य को भी संतुष्ट किया गया। इधर गोपाल भार्गव जैसे वरिष्ठ, कद्दावर व जमीनी नेता कह रहे हैं कि 40 साल के राजनीतिक जीवन में उन्होंने पहली बार ‘मलाईदार’ शब्द सुना। भार्गव जी, आपकी इमेज बेबाक बोलने वाले नेता की रही है। फिर भी आप जनता को मूर्ख समझ रहे हैं। आप कहेंगे कि कोई मलाईदार विभाग नहीं होता और सब मान लेंगे। ऐसा नहीं है। जब से आप राजनीतिक जीवन में हैं तब से ही मलाईदार विभागों की चर्चा होती रही है। इनके जरिए आकलन होता रहा है कि मंत्री कितना वजनदार है। मलाईदार शब्द हमेशा चर्चा में रहा है और आगे भी रहेगा। राजनीति में इसकी महत्ता कभी खत्म नहीं होगी। आज के दौर में तो बिल्कुल भी नहीं।