डॉ. वेदप्रताप वैदिक
कांग्रेस-अध्यक्ष सोनिया गांधी ने अपने संकट से उबरने के बाद जो यह पहला कदम उठाया है, उसका समर्थन नहीं किया जा सकता। उन्होंने सात राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ बात की और कहा कि ‘जी’ और ‘नीट’ की परीक्षाएं स्थगित की जाएं। इन दोनों प्रवेश-परीक्षाओं में लगभग 25 लाख छात्र बैठते हैं। इन सात मुख्यमंत्रियों में से चार कांग्रेस के हैं। दो मुख्यमंत्री कांग्रेस की मदद से अपनी कुर्सी पर हैं। सातवीं मुख्यमंत्री ममता बेनर्जी हैं। ये सातों सोनियाजी की हां में हां मिलाएं, यह स्वाभाविक है। दिल्ली की ‘आप’ सरकार और तमिलनाडु की भाजपा समर्थित सरकार भी इन परीक्षाओं के पक्ष में नहीं हैं।
इन सरकारों का मुख्य तर्क यह है कि कोरोना की महामारी के दौरान ये परीक्षाएं देश में बड़े पैमाने पर रोग फैला सकती हैं। इन प्रांतीय सरकारों की यह चिंता स्वाभाविक है लेकिन इनसे कोई पूछे कि यह चिंता क्या विश्वविद्यालय अनुदान आयोग या शिक्षा मंत्रालय या सरकार को नहीं होगी ? उन्हें तो विपक्षियों से भी ज्यादा होगी। इसीलिए उन्होंने परीक्षा के लिए बेहतरीन इंतजाम किए हैं। ‘जी’ की परीक्षाएं 660 और ‘नीट’ की परीक्षाएं 3842 केंद्रों पर होंगी।
इन केंद्रों पर परीक्षार्थियों के लिए शारीरिक दूरी रखने, मुखपट्टी लगाने, जांच आदि का कड़ा इंतजाम होगा। 99 प्रतिशत छात्रों के लिए वे ही परीक्षा-स्थल तय किए गए हैं, जो उन्होंने पसंद किए हैं। जिन्हें दूर-दराज के केंद्रों में जाना है, उनके केंद्र बदलने की प्रक्रिया भी जारी है। इसके अलावा छात्रों की यात्रा और रात्रि-विश्राम की व्यवस्था भी कुछ राज्य सरकारें कर रही हैं। ऐसी स्थिति में इन परीक्षाओं को स्थगित करने की मांग कहां तक जायज है ?
यदि ये परीक्षाएं स्थगित हो गईं तो लाखों छात्रों का पूरा एक वर्ष बर्बाद हो जाएगा। जो फीस उन्होंने भरी है, वह राशि बेकार हो जाएगी। जब देश में रेलें और बसें चल रही हैं, मेट्रो खुलनेवाली हैं, मंडियां और बड़े बाजार खुल रहे हैं तो परीक्षाएं क्यों न हो ? यह बात एक याचिका पर बहस के दौरान सर्वोच्च न्यायालय ने भी पूछी है। अब यदि ये सातों राज्य फिर से अदालत की शरण में जाएंगे तो वह शुद्ध नौटंकी ही होगी। उसका नतीजा क्या होगा, यह उनको पता है। विपक्षी मुख्यमंत्रियों और कांग्रेस-नेताओं का यह कदम उन्हें लाखों छात्रों और उनके अभिभावकों से अलग करेगा। विपक्ष अपने ही पांव पर कुल्हाड़ी क्यों मार रहा है ?