मोदी सरकार ने संसद में चुनाव सुधार के दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ यानी एक देश एक चुनाव से संबंधित विधेयक पेश किया है। केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने ‘संविधान (129वां संशोधन) विधेयक 2024’ को लोकसभा में पेश किया, जिसके बाद कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने विधेयक में कई खामियां गिनाते हुए इसे संविधान के संघीय ढांचे के खिलाफ बताया है। इसके बाद, सरकार ने इस विधेयक को विस्तृत विचार-विमर्श के लिए संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) को भेजने का प्रस्ताव किया।
‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ विधेयक पर प्रस्तावित संशोधन
केंद्र सरकार ने ‘एक देश, एक चुनाव’ के लिए संविधान में संशोधन की दिशा में पहला कदम उठाया है। इस विधेयक को पास कराने के लिए संसद में दो-तिहाई बहुमत की आवश्यकता होगी। यदि राज्यों की सहमति की जरूरत पड़ी, तो विपक्षी दलों के नेतृत्व वाले राज्य इसके खिलाफ अड़चन पैदा कर सकते हैं। इसके लिए संविधान के अनुच्छेद 368(2) के तहत कम से कम 50 फीसदी राज्यों की सहमति आवश्यक होगी।
सरकार क्यों कर रही JPC का रुख
मोदी सरकार ने इस विधेयक को संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) को भेजने का प्रस्ताव किया है। इससे पहले भी सरकार ने वक्फ बोर्ड से संबंधित एक विधेयक को जेपीसी के पास भेजा था। अब, ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ से जुड़े विधेयक को भी इस समिति के पास भेजने का निर्णय लिया गया है।
जेपीसी में सदस्यता संख्या के आधार पर तय की जाती है, और बीजेपी के पास लोकसभा और राज्यसभा दोनों में बहुमत होने के कारण इस समिति में भी उसका दबदबा रहेगा। इसके बाद, सरकार इसे संसद में पेश करेगी और यह सुनिश्चित करने की कोशिश करेगी कि विधेयक पर व्यापक सहमति बने।
‘संविधान के संघीय ढांचे पर सवाल’
विपक्षी दलों ने ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ विधेयक को लेकर कड़ा विरोध जताया है। प्रमुख विपक्षी दलों जैसे कांग्रेस, सपा, टीएमसी, आम आदमी पार्टी, आरजेडी, शिवसेना (यूबीटी), एनसीपी, और अन्य ने इसे संविधान के संघीय ढांचे के खिलाफ बताया है। उनका कहना है कि इस प्रस्ताव से राज्यों के अधिकारों का हनन हो सकता है, और यह लोकतंत्र की मूल भावना को कमजोर कर सकता है।
‘चुनावी खर्च में कमी और विकास में तेजी’
केंद्र सरकार का दावा है कि ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ का प्रस्ताव चुनावी खर्चों में कमी लाएगा, सरकारी कर्मचारियों पर चुनावी ड्यूटी का बोझ कम करेगा और विकास कार्यों में गति आएगी। सरकार का कहना है कि यह कदम चुनावी प्रक्रिया को सरल और सस्ता बनाएगा, जिससे देश के संसाधनों का बेहतर इस्तेमाल हो सकेगा।
चुनाव सुधार के इस महत्वपूर्ण विधेयक को पास करने के लिए बीजेपी को दो-तिहाई बहुमत की आवश्यकता होगी, और विपक्षी दलों की मदद के बिना यह मुश्किल हो सकता है। वर्तमान में लोकसभा में बीजेपी के पास 240 सीटें हैं, जबकि राज्यसभा में उसे 112 सीटें हैं। इस स्थिति में, बीजेपी को विधेयक पास कराने के लिए अपने सहयोगी दलों का समर्थन प्राप्त करना पड़ेगा।
जेपीसी में भी बीजेपी का दबदबा स्पष्ट रूप से देखने को मिलेगा, क्योंकि लोकसभा और राज्यसभा दोनों में उसका सबसे ज्यादा प्रतिनिधित्व है। इसका मतलब यह है कि जेपीसी में विचार-विमर्श में विपक्षी दलों के मुकाबले बीजेपी का प्रभाव अधिक होगा।
‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ विधेयक को लेकर मोदी सरकार की रणनीति स्पष्ट है – वह इसे व्यापक चर्चा और विचार-विमर्श के बाद पास कराना चाहती है। हालांकि, विपक्ष इस विधेयक में कई खामियों की ओर इशारा कर रहा है और संविधान के संघीय ढांचे पर इसके संभावित असर को लेकर चिंतित है। अब यह देखना होगा कि क्या बीजेपी विपक्ष के समर्थन को जुटा पाती है और क्या यह विधेयक संसद में दो-तिहाई बहुमत से पास हो पाता है।