विश्व पर्यावरण दिवस पर नदी, तालाब, कुंआ, बावड़ी तथा अन्य जल स्रोतों का होगा संरक्षण

Shivani Rathore
Published on:

Indore News : कलेक्टर आशीष सिंह ने जिले के समस्त नगरीय निकायों को स्थित विभिन्न जल स्त्रोतों, नदी, तालाबों, कुँओं, बावड़ियों तथा अन्य जल स्रोतों का अविरल बनाये जाने के लिए संरक्षण एवं पुर्नजीवन के कार्य करने के निर्देश दिये है। विश्व पर्यावरण दिवस के उपलक्ष्य पर 5 जून से 15 जून तक जिले के समस्त नगरीय निकायों में प्रवाहित होने वाली तालाबों एवं जल संरचनाओं के पुर्नजीवीकरण/संरक्षण का विशेष अभियान चलाया जायेगा।

उक्त अभियान हेतु शहरी क्षेत्र में नगरीय विकास एवं आवास विभाग नोडल विभाग होगा।
नगरीय निकायों द्वारा भारत सरकार की अमृत 2.0 योजनान्तर्गत जल संरचनाओं के उन्नयन का कार्य वर्तमान में किया जा रहा है। इसके अतिरिक्त इस विशेष अभियान के अंतर्गत सामाजिक तथा अशासकीय संस्थाओं एवं योजना आर्थिक एवं सांख्यिकी विभाग के अंतर्गत कार्यरत जन अभियान परिषद की सहभागिता सुनिश्चित कराई गई है।

अमृत 2.0 योजनान्तर्गत प्रचलित जल संरचनाओं के उन्नयन का कार्य सर्वोच्च प्राथमिकता के आधार पर इस अभियान में पूर्ण कराया जायेगा। अमृत 2.0 योजना अंतर्गत नगरीय निकाय में चयनित जल संरचनाओं के अतिरिक्त यदि कोई नदी, झील, तालाब, कुआं, बावड़ी इत्यादि उपलब्ध है और इनका पुर्नजीवीकरण/संरक्षण की आवश्यकता है, तो इन संरचनाओं का उन्नयन कार्य स्थानीय, सामाजिक, अशासकीय संस्थाओं एवं जनभागीदारी के माध्यम से कराया जाये।

जल संरचनाओं में मिलने वाले गंदे पानी के नाले/नालियों को स्वच्छ भारत मिशन (SBM 2.0) अंतर्गत क्रियान्वित लिक्विड वेस्ट मैनेजमेन्ट परियोजना के माध्यम से डायवर्सन के उपरांत शोधित कर जल संरचनाओं में छोड़ा जाये। जल संरचनाओं के चयन के साथ-साथ इनके जीर्णोद्धार तथा नवीनीकरण के परिणाम संयोजित (Outcome linked) उद्देश्य जैसे- जलप्रदाय, पर्यटन, भू-जल संरक्षण, मत्स्य पालन, सिंघाड़े का उत्पादन इत्यादि का स्पष्ट निर्धारण किया जाये।

जल संरचनाओं के चयन एवं उन्नयन कार्य में जी.आई.एस. तकनीक का उपयोग तथा नगरीय निकाय द्वारा स्थल पर जाकर चिन्हित संरचना की मोबाइल एप के माध्यम से जियो टैगिंग की जाये। जल संरक्षण के जीर्णोद्धार/उन्नयन कार्य में कैचमेन्ट के अतिक्रमण को हटाना। कैचमेन्ट के उपचार जैसे- नाले/नालियों की सफाई अथवा इनका डायवर्सन, सिल्ट ट्रैप, वृक्षारोपण, स्टार्म वाटर ड्रेनेज मैनेजमेन्ट इत्यादि, बंड विस्तार, वेस्ट वियर सुधार अथवा निर्माण, जल भराव क्षेत्र में जमा मिट्टी अथवा गाद को निकालना, डि-वीडिंग, एरेशन, पिचिंग/घाट निर्माण, इत्यादि कार्य किये जायें। जल संग्रहण संरचनाओं से निकाली गई मिट्टी एवं गाद का उपयोग स्थानीय कृषकों के खेतों में किया जाये। जल संरचनाओं के किनारों पर यथासंभव बफर जोन तैयार किया जाये।

इस जोन में हरित क्षेत्र/पार्क का विकास किया जाये। जल संरचनाओं के किनारों पर अतिक्रमण को रोकने के लिये फेसिंग के रूप में वृक्षारोपण किया जाये तथा इनके संरक्षण के लिये सामाजिक संस्थाओं के माध्यम से जागरूकता अभियान चलाया जाये। जल संरचनाओं के आस-पास किसी भी प्रकार सूखा अथवा गीला कचरा फेंकना प्रतिबंधित किया जाये। प्रतिबंधित गतिविधियों हेतु सूचना पट्टी लगाई जाये।

निकाय अंतर्गत पुराने कुएं एवं बावड़ियों की साफ-सफाई/मरम्मत कार्य इस अवधि में सम्पन्न कराई जाये। निकाय क्षेत्र अंतर्गत विद्यमान रिहायशी रैन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम यदि बंद पड़े है, तो उनकी सफाई कराकर उन्हें पुनः उपयोग किये जाने हेतु जागरूक किया जाये। जल संरचनाओं के जल की गुणवत्ता (Physical, Chemical & Biological Parameters) की जांच कराई जाये। जल संरचनाओं के जीर्णोद्धार/नवीनीकरण कार्य के क्रियान्वयन के दौरान गुणवत्ता नियंत्रण हेतु निकाय के तकनीकी अमले, संभागीय कार्यालय एवं तकनीकी सलाहकारों के द्वारा सतत् मॉनीटरिंग की जाये।

जल संरचनाओं के जीर्णोद्धार/उन्नयन उपरांत वाटर ऑडिट (संरचना की क्षमता वृद्धि क बाद कितना पानी संग्रहित हुआ, कितना वितरित हुआ अथवा उपयोग हुआ तथा क्या परिणाम और लाभ प्राप्त हुये) के आधार पर निर्मित संरचना के अपेक्षित परिणाम (Expected Outcome) के अनुक्रम में प्राप्त हुए वास्तविक परिणामों (Achieved Outcome) का विश्लेषण और सत्यापन कराया जाये।