मलखंभ के दम पर छत्तीसगढ़ के नारायणपुर में आदिवासी बच्चों को मुख्य धारा से जोड़ने में जुटा एसटीएफ का एक हवलदार

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इंदौर। कहते हैं खेलों में समाज में बदलाव लाने की सकारात्मक ऊर्जा होती है। इस ऊर्जा में इतनी ताकत होती है कि वह आर्थिक और सामाजिक रूप से कटे अत्यंत पिछड़े वर्ग को भी मुख्यधारा में ला सकती है। इसी ऊर्जा का इस्तेमाल करते हुए छत्तीसगढ़ में स्पेशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) में बतौर हवलदार कार्यरत उत्तरप्रदेश के बलिया जिले के निवासी मनोज प्रसाद नारायणपुर जिले में अनेकों आदिवासी बच्चों को खेल की बदौलत मुख्यधारा में लाने के लिए जिस शिद्दत से लगे हैं, वह किसी तपस्या से कम नहीं।

इस नेक काम के लिए मनोज ने मलखंभ को साधन के रूप में चुना है और आज आलम यह है कि उनके द्वारा प्रशिक्षित 10 बच्चे मध्यप्रदेश में जारी खेलो इंडिया यूथ गेम्स 2022 में मलखंभ की स्पर्धाओं में हिस्सा लेने के लिए महाकाल की नगरी उज्जैन पहुंचे हुए हैं। छत्तीसगढ़ मलखंभ टीम में 12 खिलाड़ी हैं। इनमें से बालक एवं बालिका वर्ग में नारायणपुर आदिवासी क्षेत्र से 10 खिलाड़ी उज्जैन पहुंचे हुए हैं। ये सभी अबूझमाड़ मल्लखंब अकादमी से संबंध रखते हैं, जो मनोज चलाते हैं। लड़कों के वर्ग में राकेश वरदा ने बुधवार को व्यक्तिगत आल राउंड स्पर्धा में कांस्य पदक जीता है। यही नहीं, छत्तीसगढ़ टीम ने लड़के और लड़कियों की टीम स्पर्धा में भी तीसरा स्थान हासिल किया।

राकेश के अलावा मानू ध्रुव, मोनू नेताम, श्यामलाल पोटाई और संतोष सोरी लड़कों की टीम के तथा सरिता पोयाम, दुर्गेश्वरी कुमेटी, संताय पोटाई, जयंती कचलाम और हिमांशी उसेंडी लड़कियों की टीम की की सदस्य हैं। ये सभी दहाड़ी मजदूरी करने वाले या अल्प आय वाले परिवारों की संतान हैं। लेकिन अबूझमाड़ मलखंभ अकादमी की बदौलत ये न सिर्फ देश भर में घूमकर प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं बल्कि पदक भी जीत रहे हैं। अबूझमाड़ मलखंभ अकादमी में मनोज की भूमिका इन जैसे अनेकों बच्चों के माता-पिता, पालक और शिक्षक की है। मनोज सालों-साल इन बच्चों का ध्यान रखते हैं क्योंकि एक बार अगर कोई माता-पिता अपने बच्चों अकादमी में छोड़कर चले गए तो फिर दे दो चार साल बाद ही आते हैं। मनोज का समर्पण देख छत्तीसगढ़ सरकार ने उन्हें एसटीएफ से हटाकर हमेशा के लिए नारायनपुर जिला मुख्यालय में पोस्टिंग दे दी है, जिससे कि वह इन नौनिहालों को शिक्षित और प्रशिक्षित कर सकें। मनोज अपनी पत्नी के साथ रहते हैं और इन बच्चों को समाज की मुख्यधारा में लाने के लिए अपना जीवन समर्पित कर रहे हैं।

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मनोज कहते हैं, मैं आदिवासी बच्चों को इधर-उधर से लाकर अकादमी में रखता हूं और वहीं पर इनकी शिक्षा और खेत संबंधी जरूरतों का ध्यान रखा जाता है। ये बच्चे उन परिवारों से हैं, जो पूरी तरह अशिक्षित हैं और इनके पास रोजगार का कोई साधन नहीं है। मैं इन बच्चों को इनकी काबिलियत के दम पर मुख्यधारा में लाना चाहता हूं, जिससे कि ये कहीं ना कहीं नौकरी पाकर अच्छा जीवन जी सकें। मेरी अकादमी के कई बच्चों का इस साल भारतीय थल सेना में चयन हुआ है। मेरे अलावा इनका कोई नहीं क्योंकि इनके माता-पिता एक बार जो इन्हें यहां छोड़कर चले गए तो वे दो-चार साल में ही एक बार सिर्फ देखने के लिए आते हैं। मनोज ने कहा कि 2017 में स्थापित अबूझमाड़ मलखंभ अकादमी में एक समय में पांच से 15 साल तक कीआयु के 25 बच्चे रहते हैं और इनकी हर जरूरत का ध्यान अकादमी द्वारा रखा जाता है।

मनोज ने कहा कि 25 बच्चों की दैनिक जरूरतें पूरी करना आसान काम नहीं, लेकिन परिणाम को देखते हुए बीते कुछ समय से मेरे इलाके में रहने वाले वरिष्ठ पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों ने दिल खोलकर मदद करना शुरू कर दिया है। साथ ही कई स्थानीय लोग भी इनकी मदद के लिए आगे आए हैं। इसमें छत्तीसगढ़ मलखंभ संघ के सचिव श्री राजकुमार शर्मा का विशेष योगदान है, जो हमेशा हमारी मदद के लिए खड़े रहते हैं। खुद भी राष्ट्रीय स्तर के धावक रहे मनोज ने बताया कि उज्जैन पहुंची उनकी टीम में शामिल 10 बच्चे कक्षा पांचवी से 12वीं तक के हैं और इन सबने बीते कुछ सालों में राष्ट्रीय स्तर पर कई पुरस्कार और मेडल जीते हैं। मनोज ने कहा, हमारे खिलाड़ी अब तक राष्ट्रीय और प्रादेशिक स्तर पर 300 के करीब मेडल जीत चुके हैं। पंचकुला खेलो इंडिया यूथ गेम्स में इस टीम ने पांच पदकों के साथ तीसरा स्थान हासिल किया था। राकेश इससे पहले भी कई पदक जीत चुका है और उसके नाम एक रिकार्ड भी है।

मनोज ने आगे कहा, राकेश ने मुंबई के गोरेगांव में आयोजित राष्ट्रीय हैंड स्टैंड मलखंभ स्पर्धा में मलखंभ पर एक मिनट पांच सेकेंड तक हाथों से सहारे खड़ा रहकर इंडिया बुक आफ रिकार्ड्स में अपना नाम दर्ज कराया है। राकेश अब तक अलग-अलग इवेंट्स में 8 स्वर्ण जीत चुका है। राकेश के अलावा मेरी टीम में शामिल सभी बच्चे कई बार मेडल जीत चुके है। मनोज कहते हैं कि साल 2017 से 2020 तक उनके लिए अकादमी को चला पाने में मुश्किल हो रही थी। इसके बाद कोरोना आ गया और फिर सबकुछ बंद हो गया लेकिन कोरोना जैसे ही खत्म हुआ, उन्होंने बच्चों को फिर से समेटा और अकादमी में पहुंच गए।

मनोज कहते हैं- साल 2021 हमारे लिए काफी अहम था। कोरोना से ठीक पहले हमने 32वीं राष्ट्रीय मलखंभ चैंपियनशिप जो बिलासपुर में मार्च 2020 में हुआ था, में काफी पदक जीते थे। हम अंडर-14 में देश की नम्बर- 1 टीम बन गए थे लेकिन कोरोना के कारण यह यात्रा थम गई। गुवाहाटी में आयोजित खेलो इंडिया यूथ गेम्स में मलखंभ को डेमो गेम के रूप में चुना गया। हमने वहां डेमो दिया और फिर पंचकुला में हमारी टीम खेली, जहां सरिता पोयाम ने गोल्ड जीता था। हमें एक गोल्ड, 2 सिल्वर और दो ब्रांज मेडल मिले थे।

मनोज आगे कहते हैं, हमारी टीम दूसरी बार खेलो इंडिया में हिस्सा ले रही है। इससे पहले हम गुजरात नेशनल गेम्स भी खेले थे। वहां हमने लड़के और लड़कियों के इवेंट में कांस्य पदक जीता था। शुरुआत में मुझे बच्चों को कहीं लेकर जाने में काफी दिक्कत होती थी क्योंकि पैसा नहीं होता था लेकिन अब धीरे-धीरे स्थिति बदलने लगी है। भिलाई स्टील प्लांट से मदद मिल रही है और छत्तीसगढ़ सरकार भी हमारी मदद करती रहती है। मेरा लक्ष्य इस बच्चों को उस जगह तक पहुंचाना है, जिसके ये हकदार हैं। मैं इसी तपस्या में लगा हूं और अब यही मेरे जीवन का उद्देश्य बन गया है।