पुण्य स्मरण, पत्रकारिता और सामाजिक क्षेत्र में आदर्श व्यक्तित्व ओमप्रकाश कुंद्रा

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स्व. ओमप्रकाश कुन्द्रा को संघ के वरिष्ठ प्रचारक और कार्यकर्ता ओमभाई सा. कहते थे पर वे तो हर क्षेत्र में आदर्श और बहुप्रतिभा के धनी थे। वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक , पत्रकार और सेना के पूर्व अधिकारी थे। उन्हें हम आधुनिक दौर के ऋषि भी कह सकते हैं। उनके जीवन पर यदि विहंगम दृष्टिपात करें तो प्रारम्भिक काल से ही वे योद्धा थे जिन्होंने सेना में भर्ती होकर द्वितीय युद्ध में भाग लिया। जीवन के दूसरे भाग में वे श्रेष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में सक्रिय हुये। उन्होंने पाकिस्तान में रहकर विभाजन की त्रासदी को झेला और कई परिवारों को आतातायियों से बचाया। उनका परिवार जब भारत आ गया तो उन्होंने अपना जीवन राष्ट्र को समर्पित कर दिया। बाद में वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक बन गए।

प्रचारक का दायित्व निभाते हुए उन्होंने राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के पंचम सरसंघ चालक स्व. कुप्प हरि सीता रमैया सुदर्शन जैसे आदर्श स्वयं सेवक तैयार किये। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने जब पत्रकारिता का प्रकल्प शुरू किया तो उन्हें हिन्दुस्तान समाचार न्यूज एंड फीचर एजेन्सी की जिम्मेदारी दी गई और उन्हें स्वयं सेवक से पत्रकार बना दिया गया। वे पत्रकारिता के क्षेत्र में आए तो उन्होंने आदर्श पत्रकारिता का धर्म बखूबी निभाया और इसी क्षेत्र को उन्होंने अन्तिम लक्ष्य के रूप में स्वीकार किया। एक पत्रकार के रूप में उन्हें अखिल भारतीय पहचान मिली। वे न केवल एक आदर्श पत्रकार थे बल्कि अपने संघर्षमय जीवन, मृदु व्यवहार, सादगी और सदाचार के कारण ऋषि तुल्य देवता थे। देवता का शाब्दिक अर्थ है- जो सदैव देता ही हो, लेने की जिसकी कभी इच्छा तक मन में न हो, सच में उन्होंने कभी किसी से कोई अपेक्षा नहीं की बल्कि वे लोगों को जीवन भर देते ही रहे।

कुन्द्रा  का जन्म 23 जुलाई 1923 को अविभाजित पाकिस्तान के लाहौर क्षेत्र में  सन्तराम कुन्द्रा के पुत्र के रूप में हुआ था। माँ करतार देवी थी। प्रारम्भिक शिक्षा डीएवी विद्यालय में हुई। 17 वर्ष की आयु में सेना में भर्ती हो गए और द्वितीय विश्व युद्ध में आलअलावी (मिश्र) में शामिल हुए। भारत विभाजन की नरसंहार की विभीषिका से उद्वेलित होकर सेना की नौकरी छोड़ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में सक्रिय हो गए। विभाजन के बाद जबलपुर विभाग के प्रचारक और 1967 में हिन्दुस्तान समाचार के मध्यप्रदेश के प्रभारी बने। उनकी पत्रकारिता बहुभाषी राष्ट्रीय समाचार एजेंसी हिन्दुस्तान समाचार से शुरू हुई। वे मध्यप्रदेश के प्रभारी बनकर भोपाल आए। उस समय समाचारों में राष्ट्रीय विचारों का आग्रह और पोषण, समय की माँग थी जिसका निर्वहन कुन्द्रा जी ने बड़ी कुशलता और पूरी तन्मयता से किया।

विशिष्ट विचारों की पत्रकारिता करते हुये उनके अन्य विचारों के पत्रकारों से भी अत्यन्त आत्मीय और अनौपचारिक सम्बन्ध थे। एक पत्रकार के रूप में उनके सभी राजनीतिक दलों के लोगों से भी व्यापक सम्पर्क थे। संघ-भाजपा ke कार्यकर्ताओं के तो वे ‘बड़े भाई सा.’ थे ही बल्कि उनके पड़ौसी कांग्रेस के तत्कालीन प्रदेशाध्यक्ष मुन्दर शर्मा तो जब चाहे उनके घर ही खाना खाने आ धमकते थे। बिहार के स्व. जगन्नाथ मिश्र जब भोपाल में आए तो उनके हाथीखाना स्थित घर में ही रुके। भोपाल के न्यू मार्केट स्थित काॅफी हाउस के लिए भूमि का विवाद चिन्ता से निपटवाया जब कि उस यूनियन के अध्यक्ष जबलपुर के कॉमरेड सदाशिव नायर थे।

उनके सानिध्य ने देश को कई बड़े और लब्ध प्रतिष्ठित पत्रकार दिये। पद्मश्री आलोक मेहता ने उनके सानिध्य में पत्रकारिता सीखी।हिन्दुस्तान समाचार का दायित्व निभाते हुये उन्होंने हिन्दी पत्रकारिता को विकास वार्षिकी की परिकल्पना भी दी। आज तो देश में कई प्रकाशन संस्थान वार्षिकियाँ निकालते हैं, मगर यह कतई अतिश्योक्तिपूर्ण तथ्य नहीं है कि देश में वार्षिकी के जनक वे ही थे। उन्होंने स्वदेश और नई दुनिया के लिए भी वार्षिकी का सम्पादन किया। कुछ वर्ष वे माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता तथा जनसंचार विश्वविद्यालय द्वारा संचालित मनुज फीचर के सलाहकार सम्पादक भी रहे। उन्होंने समाचार और आलेखों की सेन्ट्रल न्यूज एण्ड फीचर सेवा शुरू की, जिसका सम्पादन वे आखरी समय तक करते रहे। वे मध्यप्रदेश शोध और सन्दर्भ संस्थान के अध्यक्ष और मार्गदर्शक भी थे।