अफसर की रजा, उफ्फ ये कैसी सजा

Suruchi
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  • “मामाजी” इस लाड़ली बहना की भी तो लिजिये न सुध
  • अफ़सर की रज़ा, उफ़्फ़ ये केसी सजा..?

नितिनमोहन शर्मा। ये न कोई मंडला की घटना, न मुरैना की। न सुदूर झाबुआ अंचल की, न डिंडोरी की। ये घटना है आपके हमारे इन्दौर जैसे महानगर की। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के सपनो के शहर की हैं। स्मार्ट सिटी की हैं। आप हम जैसे पड़े लिखे लोगो के आधुनिक शहर की हैं। जहां दिनभर नेता मौजूद हैं। बड़े अफसर तैनात हैं। 24 घण्टे का मीडिया हैं। बावजूद इसके एक थाने में वो कांड घटित होता है, जैसा जमीदारों के दौर में हुआ करता था। न कानून न कायदा, जो ज़मीदार साहब ने बोला उस पर अमल। न कानून का ख़ौफ़, न सरकार का डर। न शहर का डर, न प्रतिक्रिया का भय।

मामला है तिलकनगर थाने का। जहा रचना शर्मा नाम की महिला के साथ इस कदर बेरहमी से मारपीट की जाती है कि उसका हाथ कंधा टूट जाता हैं। पसलियां तिड़क जाती हैं। महिला बेहोश हो जाती हैं। फिर भी पीटने वाले पुलिस वालों का दिल नही पसीजता। बर्फ के टुकड़े घाव पर मलकर फिर महिला को होश में लाया जाता हैं और फिर से पिटाई। प्लास्टीक के लट्ठ से। बेल्ट से। लात जूतों से। पिटाई इतने क्रूर तरीके से कि थाने के बाहर तक महिला की चीख़ें सुनाई दे रही थी। थाने के गेट पर बैठे महिला के काका पुलिस के समक्ष गिड़गिड़ाते है कि हम लोग प्रतिष्ठित परिवार के है, चोर नही साहब। इतनी बुरी तरह मत मारिये। बेटी है मेरी। मर जाएगी। लेकिन पीटने वाले जुनून में कि गुनाह कबूलो चोरी का।

बड़े अफ़सरो तक बात पहुंचती है तो आधी रात को महिला का मेडिकल होता हैं। मेडिकल में बेरहम पिटाई साफ उज़ागर हो जाती हैं। फिर शुरू होता है इस कांड से पीछा छुड़ाने का काम। पहले तो इन्दौर जैसे शहर को “समझाया” जाता है कि महिला ने शरीर पर चोट स्वयम लगाई है ताकि पूछताछ न हो। ये बात किसी को हजम नही होती है तो तिलकनगर थाने के एक महिला और एक पुरुष आरक्षक को पिटाई का दोषी करार देकर कार्रवाई कर दी जाती हैं। जांच अधिकारी सब इंस्पेक्टर स्वयम अपने ही महकमे के खिलाफ रिपोर्ट भी लिख लेता हैं ताकि मामला रफादफा हो। सदमे में महिला तो सुदबुध खो देती हैं, काका का भी हार्ट अटैक से निधन हो जाता हैं। सदमा क्यो नही लगेगा? जिस महिला पर चोरी का इल्ज़ाम लगाया गया, वो परिवार धार का प्रतिष्ठित परिवार हैं। औदिच्य ब्राह्मण समाज से जुड़े इस परिवार की समूची पृष्ठभूमि संघ परिवार से जुड़ी हुई हैं।

चोरी का आरोप लगाने वाला स्वयम हत्यारा हैं। हत्या के मामले में जेल जाने वाला आदतन अपराधी। वह अपनी पत्नी पर चोरी का आरोप लगाता है और इन्दौर की पुलिस इतनी फुर्सत में है कि वो तुरत फुरत धार जाकर महिला को गिरफ्तार कर इन्दौर ले आती हैं। फिर तिलकनगर थाने में लाकर थर्ड डिग्री टार्चर देना शुरू कर देती हैं। जबकि मौके पर इन्दौर पुलिस को कोई टूटा हुआ ताला या फिंगर प्रिंट भी नही मिलते। फिर भी एक महिला को एक पुरूष आरक्षक, महिला आरक्षक के साथ मिलकर पसलियां तक तोड़ देता हैं। वो भी थाने का दरवाजा बंद कर।

अब सवाल ये है कि क्या एक अकेला आरक्षक अपने दम पर ये हिमाकत कर सकता है? बगेर किसी अफसर के आदेश के वो किसी महिला को इस कदर पीट सकता हैं? तो फिर वो अफसर कौन है जिसके कहने पर ये विभत्स पिटाई हुई? वह अफसर जांच के दायरे से बाहर क्यो? सिर्फ दो आरक्षक ही इस निर्मम पिटाई के आरोपी क्यो? तिलकनगर थाने का प्रभारी कहा है इस मामले में? क्या वे छुट्टी पर थे या उनकी जानकारी में नही था ये सब? इलाके के एसीपी की भूमिका क्या है इसमे? इसकी जांच कौन करेगा। पीड़ित महिला के परिजनों ने तो चिख चिखकर इलाके के एसीपी को ही जवाबदार बताया लेकिन जांच के दायरे से एसीपी बाहर क्यो?

पीड़ित महिला के परिजनों ने जिस एसीपी पर उंगली उठाई है, वो बरसो से इन्दौर में ही जमे हुए है और अपनी अकड़-ठसक के लिए ही जाने जाते हैं। 15-17 बरस से इन्दौर व उसके अगल बगल में जमे ये साहब इसके पहले भी इस तरह की दर्जनों हरकत कर चुके हैं। ठीक जमीदारी के दौर जैसी। जो मन आया, किया। न किसी की सुनना। न मानना। यहां तक की जनप्रतिनिधियों की भी नही सुनना। धार में भी पदस्थ थे। धार जिले में जो आक्रोश पसरा हुआ है, उसके पीछे भी इन्ही साहब की कारगुजारियां है जो धार में पदस्थ रहते धार वालो ने नजदीक से देखी है। इसलिए वे एसीपी को ही इस पूरे मामले का मुख्य आरोपी बता रहे है और आंदोलित हैं।

सीएम से मिलेंगे पीड़ित-परिजन

अब ब्राह्मण समाज गुस्से में है। धार जिला पत्रकार संघ आंदोलित हैं। महिला कांग्रेस पुलिस कमिश्नर से मिलकर दोषियों पर सख्त कार्रवाई का ज्ञापन दे रही हैं। औदिच्य ब्राह्मण समाज आक्रोशित हैं। संघ परिवार के एबीवीपी जैसे आनुषंगिक संगठन गुस्से में हैं लेकिन एसीपी महोदय बेफिक्र हैं। होंगे भी क्यो नही? इसके पहले उन पर कौन सी कार्रवाई हो गई जो अब हो जाएगी। इससे भी बड़े कांड के बाद भी उनकी अकड़-ठसक बरकरार हैं। ठीक वैसे ही जैसे तुकोगंज थाने के टीआई की हैं। आखिर ये इन्दौर को हुआ क्या है? यहां पुलिस महकमे के कुछ किरदार तो ऐसे हो चले है जैसे वे ही सरकार हो, वे ही गृह मंत्रालय हो। इस मामले में एसीपी की भूमिका को अब सीएम शिवराज सिंह तक ले जाने की तैयारी है जहां गुहार लगेगी कि मामा जी, इस लाडली बहना की भी सुध लीजिए, जिसके हाथ पैर और पसलियां पुलिस ने आखिर किसके कहने से तोड़ दी? चोरी के महज इल्ज़ाम पर ऐसी पिटाई किसके दबाव में हुई इसकी जांच हो।