बच्चों में 15 प्रतिशत तक मोटापा, महिलाओं में थायरॉयड, तो युवाओं में डायबिटीज के केस में 10 प्रतिशत की बढ़त – डॉ. तन्मय भराणी मेदांता हॉस्पिटल

Suruchi
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इंदौर। पहले हमारी लाइफ स्टाइल काफी बेहतर होने से किसी बीमारी का असर हमारे शरीर पर नहीं पढ़ता था। खान पान में बदलाव, बदलती लाइफ स्टाइल से अब पहले मुकाबले डायबिटीज के मरीजों में काफी बढ़त देखने को मिल रही है। सिनियर लोगों के साथ अब यह बीमारी यंग जनरेशन में भी देखने को मिल रही है। हमारी बदलती लाइफ स्टाइल तो इसका एक कारण है ही, लेकिन कॉविड इन्फेक्शन से पैंक्रियाज भी डेमेज हुआ है। यह भोजन पचाने में सहायता करने वाले हार्मोन और एन्जाइम का उत्पादन करता है। यह शरीर की शर्करा की प्रक्रिया को भी नियंत्रित करने में मदद करता है। कॉविड की वजह से बुजुर्गों में 5 प्रतिशत तो यंग जनरेशन में 10 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। वहीं बच्चों में 13 साल तक की उम्र में डायबिटीज देखने को मिल रही है। यह बात डॉ तन्मय भराणी ने अपने साक्षात्कार के दौरान कही।

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उन्होंने अपनी एमबीबीएस की पढ़ाई एमजीएम मेडिकल कॉलेज इंदौर से की वहीं मास्टर जवाहरलाल नेहरू इंस्टीट्यूट ऑफ पोस्ट ग्रेजुएट मेडिकल एंड रिसर्च पांडिचेरी से किसी। इसी के साथ डीएम में हार्मोंस से संबंधित ट्रेनिंग संजय गांधी पीजीआई हॉस्पिटल लखनऊ से की। उन्होंने देश के कई प्रतिष्ठित हॉस्पिटल में अपनी सेवाएं देने के बाद शहर के सीएचएल अपोलो, मेडिकेयर में कार्य किया। वर्तमान में वह मेदांता अस्पताल में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। वह एंडोक्रिनोलॉजी में डील करते हैं , जिसमें डायबिटीज़ और हार्मोंस का इलाज किया जाता है।

कीटनाशक से पकाई गए फल सब्जी और अन्य चीजें गले में स्थित थायरॉयड की ग्रंथि के फंक्शन को कम कर देती है

इसी के साथ उन्होंने कहा कि आज के दौर में 20 से लेकर 40 वर्ष की उम्र की महिलाओं में थायरॉयड की समस्या ज्यादा देखने को मिल रही है। इसके कई कारण हो सकते हैं, लेकिन इस बीमारी में सामान्य पाए जाने वाले कारण जैसे हमारी लाइफ स्टाइल में बदलाव, खान पान में केमिकल का एक्सपोजर बढ़ना, स्ट्रेस, वायु प्रदूषण और अन्य कारण शामिल है। सब्जियों और फलों में इस्तेमाल होने वाले कीटनाशक का असर हमारे शरीर पर पड़ता है। यह सब हमारे गले में स्थित थायरॉयड की ग्रंथि के फंक्शन को कम कर देती है। जिससे यह बीमारी पैदा हो जाती है। वहीं कई लोगों में थायरॉयड की समस्या जेनेटिक रूप से पाई जाती है। सही समय पर इस बीमारी का इलाज़ जरूरी होता है।

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बच्चों में 15 प्रतिशत तक मोटापा बढ़ा, इससे कई बीमारियों के चांस बड़े

पहले की अपेक्षा बच्चों में मोटापा बढ़ रहा है। कॉविड के बाद से बच्चों में खेल कूद और सोशल एक्टिविटी काफी कम हो गई है। वहीं खान पान में रिफाइंड और पैकेज फूड का सेवन बढ़ गया है। अगर बात आंकड़ों की करी जाए तो इसमें लगभग 10 प्रतिशत का इजाफा हुआ है। वह बताते हैं कि नॉर्थ अमेरिका के आंकड़ों के मुताबिक वहां 100 बच्चों की क्लास में 60 बच्चें मोटापे का शिकार है। यह एक चिंता का विषय है, बढ़ते मोटापे से बच्चों में सांस फूलना, जल्दी थकना, मानसिक तनाव होना, वहीं बच्चों में मोटापे से थायरॉयड और डायबिटीज़ की समस्या हो सकती है। वहीं लड़कियों में इन समस्याओं के साथ मोटापे से पीरियड्स में अनियमितता आती है। अगर बात वयस्क व्यक्तियों की करी जाए तो इसमें भी कोविड़ के बाद से लगभग 10 प्रतिशत का इज़ाफा हुआ है।वर्क फ्रॉम होम ने लोगों में मोटापे को बढ़ाया है, वहीं इसके भी अन्य कारण समान है। जिसकी वजह से अंडरलाईन कार्डियक इश्यू, बीपी, स्ट्रेस, डायबिटीज़, थायरॉयड, कमर दर्द, घुटनों में दर्द और अन्य समस्याएं सामने आती हैं।