दिनेश निगम ‘त्यागी’
पहले दिग्विजय सिंह के बेटे विधायक जयवर्धन सिंह को भावी मुख्यमंत्री के रूप में प्रस्तुत करते होर्डिंग और अब कमलनाथ के सांसद बेटे नकुलनाथ का युवाओं की अगुवाई करने का दावा, इससे कांग्रेस में वरिष्ठों के बाद युवाओं में वर्चस्व को लेकर जंग की नौबत आ सकती है। अरुण यादव पहले ही कह चुके हैं कि प्रदेश अध्यक्ष रहते हमने लाठियां खाई, कांग्रेस को मजबूत किया और फसल काटने वरिष्ठ नेता टपक पड़े। जीतू पटवारी युवाओं के नेता के तौर पर पार्टी में पहले से जगह बना चुके हैं। ओमकार सिंह मरकाम एवं उमंग सिंघार आदिवासी वर्ग के युवा चेहरे हैं। कमलेश्वर पटेल, कुणाल चौधरी तथा सचिन यादव जैसे युवा पिछड़ों में लगातार अपनी जगह मजबूत कर रहे हैं। साफ है कांग्रेस में उभरते युवा नेताओं की अच्छी फौज है। यदि तालमेल के साथ इनकी ऊर्जा का उपयोग हो तो कांग्रेस एक बार फिर अपनी जड़े मजबूत कर सकती है लेकिन यदि अभी से वर्चस्व को लेकर जंग छिड़ी तो पार्टी के भविष्य को लेकर कुछ नहीं कहा जा सकता। ऐसे में कमलनाथ को भी लाभ मिलने की बजाय नुकसान उठाना पड़ सकता है।
नकुल के लिए जयवर्धन पहली चुनौती…
– नकुलनाथ ने दावा भले कर दिया लेकिन कमलनाथ के लिए उनके हाथों में युवाओं की कमान देना आसान नहीं है। कमलनाथ यह भी नहीं चाहते कि नकुल अपने समकालीन नेताओं से पिछड़ जाएं। लोकसभा चुनाव से पहले और सांसद बन जाने के बाद भी नकुलनाथ की पहचान छिंदवाड़ा से बाहर नहीं है। उनकी तुलना में दिग्विजय के बेटे जयवर्धन ने ज्यादा जगह बनाई है। इसलिए नकुल को पहली चुनौती दिग्विजय एवं उनके बेटे जयवर्धन से ही मिल सकती है। हालांकि जयवर्धन ने नकुल के दावे पर सधी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने कहा है कि नकुल प्रदेश के एकमात्र सांसद है। इसलिए उनके नेतृत्व में हम आगे बढ़ेंगे। सब जानते हैं राजनीति में जो दिखाई पड़ता है, वह होता नहीं। टकराव इसलिए भी बढ़ सकता है क्योंकि अब सिंधिया खेमा बाहर है।सिंधिया के कारण कमलनाथ – दिग्विजय एक थे लेकिन अपने बेटों को प्रोजेक्ट करने के लिए आमने-सामने हो सकते हैं।
राहुल की टीम के युवा कर रहे इंतजार…
– नकुल-जयवर्धन के अलावा कांग्रेस में एक दर्जन युवा नेता नेतृत्व के लिए अपनी बारी का इंतजार कर रहे हैं। इनमें जीतू पटवारी, उमंग सिंघार, कमलेश्वर पटेल तथा ओमकार सिंह मरकाम जैसे चेहरे किसी न किसी रूप में राहुल गांधी की टीम के सदस्य रह चुके हैं। अरूण यादव चार साल तक प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और केन्द्र में राज्य मंत्री रह चुके हैं। वे भी राहुल टीम से ही हैं। उनके भाई सचिन यादव कृषि मंत्री रह चुके हैं। ये दोनों राजनीतिक विरासत के दम पर राजनीति कर रहे हैं और अपनी जगह बना रहे हैं। उक्त सभी युवा नेताओं की तुलना में नकुलनाथ में राजनीतिक अनुभव की कमी है। असंतोष का एक कारण यह भी हो सकता है।
जीतू भी दे रहे नकुल को चुनौती…
– नकुल नाथ और जयवर्धन ने जिस तरह से युवा नेतृत्व पर अपनी दावेदारी ठोकी है, उसी तरह जीतू पटवारी ने अपने समर्थकों के जरिए जवाब दिया है। ट्वीटर पर नारे-पोस्टर की बाढ़ आ गई है। जीतू की मुहिम दो दिन पहले ट्वीटर पर नंबर दो पर ट्रेंड कर रही थी। पटवारी के समर्थकों ने उन्हें राहुल गांधी का आज्ञाकारी बताया। वे युकां के प्रदेश अध्यक्ष, सरकार में मंत्री रहे हैं। इस समय पार्टी के प्रदेश कार्यकारी अध्यक्ष के साथ मीडिया प्रभारी भी है। हालांकि अभियान जीतू के समर्थक चला रहे हैं। पटवारी खुद नकुलनाथ, जयवर्धन की तरह सामने नहीं आए हैं, फिर भी मोर्चा यहां से भी खुल चुका है।
युवा नेताओं में विवाद से भाजपा खुश…
– कमलनाथ के नेतृत्व की वजह से अब तक पार्टी के 25 विधायक बागी होकर भाजपा का दामन थाम चुके हैं। इससे उनकी नेतृत्व क्षमता पर पहले से सवाल उठ रहे हैं। अब नकुलनाथ की दावेदारी ने भाजपा को खुश कर दिया है। इस पर पहली चुटकी गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने लेते हुए कहा कि नकुल नाथ युवाओं का और कमलनाथ बुजुर्गों का नेतृत्व करेंगे, बढ़िया है बाकी नेता अनाथ। मिश्रा की टिप्पणी का जवाब नकुल नाथ ने जिस तरह से दिया, उससे भी विवाद बढ़ सकता है। उन्होंने एक बार फिर युवाओं का नेतृत्व करने का दावा कर दिया।
होर्डिंग में उड़ाया जयवर्धन का उपहास…
– जयवर्धन ने नकुलनाथ के साथ काम करने की बात कही है बावजूद इसके नकुलनाथ के जो होर्डिंग भोपाल में लगे, उनमें जयवर्द्धन सिंह की दावेदारी का उपहास उड़ाया गया। लिखा गया कि भावी मुख्यमंत्री कोई पोस्टर लगाने से नहीं बन जाता। नकुल नाथ जैसी नेतृत्व क्षमता होना जरूरी है। बता दें कि भोपाल में कुछ दिनों पहले प्रदेश के भावी मुख्यमंत्री के तौर जयवर्द्धन सिंह के होर्डिंग भी उनके समर्थकों ने लगा दिए थे। बात केवल युवा नेतृत्व की होती तो शायद पचास की उम्र पार कर चुके कांग्रेसी नकुलनाथ के साथ खड़े हो जाते लेकिन नकुल ने मुख्यमंत्री पद पर भी अपनी दावेदारी जता दी है। इससे दिग्विजय सिंह ही नहीं कमलनाथ समर्थकों के अलावा अन्य नेताओं की भौंह तन गई हैं।