दिनेश निगम ‘त्यागी’
वरिष्ठ नेता ज्योतिरादित्य के भाग्य में ‘चक्रव्यूह’ में फंसना ही लिखा है। कांग्रेस में थे तो कमलनाथ एवं दिग्विजय सिंह की जोड़ी के ‘चक्रव्यूह’ में थे। उन्हें अपना भविष्य नजर नहीं आ रहा था। लिहाजा, उन्होंने कांग्रेस छोड़ी, पार्टी की सरकार गिराई और भाजपा में चले गए। सिंधिया को उम्मीद थी कि उनकी वजह से सरकार बनी है, इसलिए भाजपा में वे जो चाहेंगे वही होगा। यही सोच उनकी चूक थी। नतीजा, अब वे भाजपा के ‘चक्रव्यूह’ में हैं। वे राजनीति के स्टार नहीं रहे।
भाजपा नेतृत्व ने इसका अहसास उन्हें स्टार प्रचारकों की सूची में जगह न देकर करा दिया। वे राज्यसभा पहुंच गए लेकिन केंद्रीय मंत्री बनने कतार में हैं। इससे पहले प्रदेश में उनके कटटर समर्थक गोविंद सिंह राजपूत एवं तुलसी सिलावट लंबे इंतजार के बाद मंत्री बन सके थे। उप चुनाव में उनके साथ आए तीन मंत्री गिर्राज दंडोतिया, इमरती देवी और एंदल सिंह कंसाना चुनाव हार गए। सिंधिया इनकी सरकार में हिस्सेदारी चाहते हैं, यहां भी सिर्फ इंतजार। राहुल गांधी का बयान सिंधिया की इसी दु:खती रग पर हाथ रखना था। मजेदार बात यह है कि इस बयान के बाद भाजपा ने स्टार प्रचारकों की सूची जारी की, जिससे सिंधिया बाहर हैं। क्या कांग्रेस में ऐसा संभव था? बिल्कुल नहीं।
भार्गव ने क्यों कहा, खतरनाक होता है मौन….
– भाजपा के कद्दावर नेता एवं मंत्री गोपाल भार्गव के विधानसभा में दिए गए एक कथन से साफ है कि उनके अंदर भी एक ज्वाला भभक रही है। उन्होंने कहा कि ‘मैं पिछले एक साल से मौन हूं। मुझे मौन ही रहने दिया जाए, क्योंकि मौन बहुत खतरनाक होता है।’ भार्गव के इस कथन के अलग-अलग मायने निकाले जा रहे हैं।
दरअसल, विधानसभा चुनाव में पार्टी की हार के बाद नेता प्रतिपक्ष की जवाबदारी भार्गव को मिली। माना गया कि वे मुख्यमंत्री मटेरियल हैं। डेढ़ साल के ही अंदर कांग्रेस सरकार गिर गई। भाजपा सत्ता में आ गई और शिवराज सिंह चौहान फिर मुख्यमंत्री बने। भार्गव को पहला झटका तब लगा जब चौहान ने पांच सदस्यीय मंत्रिमंडल बनाया लेकिन उसमें गोपाल भार्गव को जगह नहीं मिली। जबकि नरोत्तम मिश्रा के साथ कमल पटेल और मीना सिंह जगह पा गए।
नेता प्रतिपक्ष रहा नेता मुख्यमंत्री न बने ठीक है लेकिन मंत्री भी नहीं बनेगा, इसकी उम्मीद न भार्गव को थी न किसी अन्य को। बाद में वे मंत्री बने लेकिन वे महसूस कर रहे हैं कि उन्हें किनारे करने की कोशिश हो रही है। सागर में ही उनकी तुलना में दूसरे मंत्रियों को ज्यादा तरजीह मिल रही है। उनकी बात को इस पीड़ा से ही जोड़कर देखा जा रहा है। यह आने वाले किसी विस्फोट का संकेत तो नहीं?
फिर ‘तुरुप के इक्के’ साबित हो सकेंगे प्रत्याशी?….
– इंदौर में महापौर पद के लिए विधायक संजय शुक्ला और सागर में पूर्व विधायक सुनील जैन की पत्नी एवं भाजपा विधायक शैलेंद्र जैन की भाभी का नाम तय कर कांग्रेस ने संकेत दे दिए हैं कि वह विधानसभा चुनाव की तर्ज पर मजबूत चेहरों को निकाय चुनाव मैदान में उतारेगी। प्रत्याशियों के जरिए भाजपा की नींद हराम करेगी और चुनाव में टक्कर देगी।
बता दें, विधानसभा चुनाव में भाजपा ने सरताज सिंह, समीक्षा गुप्ता और रामकृष्ण कुसमारिया जैसे चेहरों के टिकट काट दिए थे, जबकि कांग्रेस ने अपना फोकस प्रचार अभियान से ज्यादा प्रत्याशियों के चयन पर केंद्रित रखा था। नतीजा, कांग्रेस अच्छे प्रत्याशी देने में सफल रही और भाजपा को पराजय का सामना करना पड़ा। पंद्रह साल बाद कांग्रेस की प्रदेश की सत्ता में वापसी हो गई।
हालांकि एक बार फिर प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में भाजपा की सरकार है और निकाय चुनाव दस्तक दे रहे हैं। कांग्रेस ने फिर अपना ध्यान प्रत्याशियों पर केंद्रित कर दिया है। इंदौर से प्रत्याशियों की घोषणा शुरू हो चुकी है। आमतौर पर स्थानीय चुनावों में सत्तापक्ष का पलड़ा भारी रहता है। कांग्रेस कुछ खास करती भी नजर नहीं आ रही। ऐसे में निकाय चुनाव में प्रत्याशी कांग्रेस के लिए ‘तुरुप के इक्के’ साबित होते हैं या नहीं, देखने लायक होगा।
पहली बार नाम चला और मार ले गए बाजी….
– गिरीश गौतम विंध्य अंचल का ऐसा नाम है, जिन्होंने सफदे शेर के नाम से चर्चित तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष श्री श्रीनवास तिवारी को उनके गढ़ में शिकस्त दी थी। गौतम इसके बाद कभी चुनाव नहीं हारे, बावजूद इसके मंत्रिमंडल में शामिल होने के लिए जब भी नाम चलते तो राजेंद्र शुक्ला, नागेंद्र सिंह गुढ़, नागेंद्र सिंह नागौद, केदारनाथ शुक्ल सहित लगभग एक दर्जन चेहरे दौड़ में दिखाई पड़ते। गौतम की तरफ या तो ध्यान नहीं जाता या जानबूझ कर उन्हें नजरअंदाज कर दिया जाता, वर्ना निवास तिवारी जैसे दिग्गज को हराने वाले चेहरे को भाजपा नेताओं की प्रथम पंक्ति में जगह मिलना चाहिए थी।
बहरहाल, गौतम ने धैर्य बनाए रखा। नतीजा, पहली बार विधानसभा अध्यक्ष के लिए राजेंद्र शुक्ला, केदारनाथ शुक्ल जैसे नेताओं के साथ उनका नाम चला और वे बाजी मार ले गए। सभी को पीछे छोड़ वे माननीयों के माननीय बन गए। गौतम ने जिस दिन से आसंदी संभाली, किसी को निराश नहीं कर रहे। उनके निर्णयों में योग्यता एवं अनुभव की झलक दिखाई पड़ती है। किन शब्दों का इस्तेमाल सदन के अंदर हो, इसकी गाइडलाइन पर ध्यान दिया जा रहा है। कोरोना से सदन सुरक्षित रहे, इसकी पहल कर वे खुद उदाहरण बन रहे हैं।
भूल से सबक लेकर आगे बढ़ रहे सबनानी….
– भोपाल के एक सक्षम नेता भगवानदास सबनानी एक बार फिर भाजपा की मुख्य धारा में हैं। वर्ष 2009 में यदि वे महापौर का चुनाव जीत गए होते तो राजनीति में उनका मुकाम आज कुछ और ही होता। कुछ गलतियों के कारण उन्हें कांगे्रस के सुनील सूद से पराजय का सामना करना पड़ा। बाद में राजनीतिक घटनाक्रम ने ऐसी करवट ली कि उमा भारती और प्रहलाद पटेल के साथ उन्होंने भी पार्टी छोड़ दी। वे उमा की नई पार्टी भारतीय जनशक्ति में चले गए।
इस तरह कई उतार चढ़ाव के बाद भाजपा संगठन में एक बार फिर वे ताकतवर हैं। प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा उन पर सबसे ज्यादा भरोसा कर रहे हैं। वे प्रदेश भाजपा कार्यालय में प्रभारी महामंत्री की भूमिका में हैं। निकाय चुनाव के लिए बनी प्रबंध समिति का उन्हें संयोजक बनाया गया है। निकाय चुनाव के दावेदारों की भीड़ वीडी शर्मा के बाद सबसे ज्यादा किसी नेता के यहां दस्तक दे रही है तो वे सबनानी हैं।
खास बात यह है कि सबनानी अपने सांगठनिक अनुभव का पूरा परिचय दे रहे हैं। उनसे मिलने वाला एक भी कार्यकर्ता निराश होकर नहीं लौट रहा है। इस तरह वे कार्यकर्ताओं का भरोसा जीत रहे हैं और संगठन का भी। सबनानी को महत्व संगठन में चल रहे बदलाव के दौर का नतीजा भी माना जा रहा है।