राजेश राठौर
आजादी के 75 साल बाद भी देश में भुखमरी के कारण लोगों के मरने के समाचार मिलते रहते हैं। हिंदुस्तान की 75 फ़ीसदी आबादी ग्रामीण इलाके में है, जिसमें से 20 फ़ीसदी लोगों को आज भी दो समय का भोजन नसीब नहीं हो पाता। कुछ लोग तो दो-तीन दिन तक भी भोजन के बिना कुछ और खाकर अपना काम चलाते हैं। जिस तरह से पूरे देश में अनाज फ्री बांटने का केंद्र और राज्य सरकारों ने अभियान चला रखा है। उसको देख कर तो लगता था कि हर पेट की भूख मिट रही है, लेकिन हाल ही में जो केंद्र सरकार की रिपोर्ट आई है।
उसमें लिखा है कि हिंदुस्तान की सौ फीसदी आबादी को दो समय का भोजन नहीं मिल पाता है। पूरे देश में अन्न बचाने के लिए कोई अभियान नहीं चलाया गया। महंगी शादियों, अन्नकूट, भंडारे और नेताओं के कार्यक्रमों में कितना ज्यादा भोजन लोग झूठा छोड़ देते हैं। इसका अंदाजा भी हमें नहीं है। अब कुछ सार्वजनिक समारोह में यदा-कदा यह देखा जाता है कि कि भोजन झूठा ना छोड़े लिखे हुए बैनर लगे रहते हैं। यदि वास्तव में हम भोजन झूठा छोड़ने की बात करें, तो हर दस व्यक्ति में से दो व्यक्ति आज भी भोजन झूठा छोड़ते हैं।
भोजन झूठा छोड़ने वाले लोग यह नहीं सोचते कि हमने इतना ज्यादा भोजन अपनी थाली में लिया ही क्यों? भोजन परोसने वाले भी यह नहीं सोचते हैं कि खाने वाले की इच्छा नहीं है, तो हम उसको जबरदस्ती खिलाने के लिए थाली में मिठाई, सब्जी, रोटी क्यों रखें। अधिकांश जगह वेटर रहते हैं। वह भी नहीं देखते हैं कि कितना भोजन रखा जाना चाहिए। इस मामले में मुझे याद आता है कि महाराष्ट्रीयन समाज सबसे ज्यादा आगे हैं। वह सभी तरह के आइटम थोड़े-थोड़े थाली में रखते हैं, ताकि कोई झूठा ना छोड़ सके। इंदौर जैसे शहर में तो हर दूसरी शादी में मुझे सुनने को मिलता है कि इतना भोजन बच गया। आधी रात को परेशान हुए ओर गरीबों को भोजन बांटने निकले या नंदा नगर के साईं मंदिर में बचा हुआ भोजन देकर आए।
Also Read – मुख्यमंत्री जनसेवा अभियान की सेवाएं अब व्हाट्सएप पर भी उपलब्ध
कई बार बचा हुआ भोजन निर्धारित समय के बाद खराब हो जाता है। यदि हम ऐसा भोजन गरीबों को को खिलाते हैं तो उनके साथ भी हम अन्याय करते हैं। क्या हम ऐसा नहीं कर सकते कि शादी समारोह या अन्य आयोजनों की पत्रिका में ही हम लिख दें, कि कृपया भोजन झूठा ना छोड़े। भरपेट भोजन जरूर करें, लेकिन किसी और के हिस्से का भोजन झूठा छोड़कर क्या हम अन्न का अपमान नहीं कर रहे हैं। अन्नपूर्णा माता को मानने वाले भक्त भी क्या भोजन झूठा नहीं छोड़ते हैं। आखिर क्या कारण है कि देर रात तक शादियों में खिलाया जाने वाला भोजन ज्यादा बच जाता है। इस तरह की घटनाएं देखकर दुख होता है। वैसे कई समाज के लोगों ने इस तरह की पहल शुरू की है, कि जो लोग भोजन झूठा छोड़ते हैं उनसे हाथ जोड़कर आग्रह करते हैं कि आप बचा हुआ भोजन खाने के बाद ही झूठी प्लेट डस्टबिन में रखें।
बच्चों की प्लेट में जरुरत से ज्यादा भोजन माता-पिता रख देते हैं, और वह आधे से ज्यादा भोजन झूठा छोड़ देते हैं। अब वक्त आ गया है कि हमें भोजन तो भरपूर और स्वाद के साथ करना चाहिए लेकिन उतनी ही चिंता हमें झूठे भोजन को लेकर भी करना चाहिए। जूठन के खिलाफ क्यों ना पूरे देश में अभियान चले। जिसमें हम घर हो या बाहर, होटल हो या पार्टी सब दूर इस बात का ध्यान रखें कि कोई भोजन झूठा ना छोड़े। यदि हम इस बात की चिंता कर लेंगे। तो हिंदुस्तान की जो गरीब जनता आज भी दो वक्त के भोजन के लिए तरसती हैं। शायद उनका पेट भर सके। क्या हम ऐसा नहीं कर सकते की जो लोग भोजन झूठा छोड़ते हैं। उनका वहीं पर फूल माला पहनाकर स्वागत कर दे ताकि वे ऐसी शर्मिंदगी झेलने के बाद कभी भविष्य में अन्न का एक दाना भी झूठा ना छोड़े। बचपन से मैं देखता रहूं कि किस तरह से लोग भोजन झूठा छोड़ते हैं।
प्रैक्टिकल फंडा आपको यही है कि आप आज से ही भोजन कोई झूठा ना छोड़ पाए। इसके लिए अपने स्तर पर अभियान चलाएं। ना कोई प्रचार की जरूरत है, ना कोई डंडा चलाने की जरूरत है। बस आप जहां भी जाएं, इस बात का ध्यान रखें कि कोई व्यक्ति यदि भोजन झूठा छोड़ रहा है तो उसे समझाएं। आज नहीं तो कल हमारी यह पहल रंग ला सकती है। मैं हमेशा से यह मानता हूं कि धर्म एक हमारी श्रद्धा का केंद्र है और वह होना भी चाहिए लेकिन यदि हम भोजन झूठा नहीं छोड़ते हैं तो मां अन्नपूर्णा का के प्रति हमारी आस्था और बढ़ जाती है। चलो चले हम सब एक नए अभियान की ओर। कोई भी भोजन झूठा ना छोड़े ताकि गरीबों को दो वक्त की रोटी नसीब हो सके।
धन्यवाद
जय जय हिंदुस्तान