हुसैन नहीं…बल्कि ये था जाकिर का असली सरनेम, कैसे मिला ताजमहल चाय का ऑफर, तबले से बदल दिया मार्केटिंग का फंडा

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Zakir Hussain: जाकिर हुसैन का नाम भारतीय संगीत जगत में हमेशा के लिए अमर रहेगा। उनका तबला बजाने का तरीका, और उनके द्वारा प्रस्तुत की गई कला, आज भी लाखों चाहने वालों के दिलों में गूंजती है। उनके निधन के बाद भी, उनकी यादें और उनकी कला की छाप भारतीय संगीत प्रेमियों के दिलों में बनी हुई है। हालांकि, जाकिर हुसैन के जीवन के बारे में कई ऐसी बातें हैं, जिन्हें उनके करोड़ों प्रशंसक आज भी नहीं जानते। आइए जानें उनके बारे में कुछ खास बातें।

क्या था जाकिर हुसैन का असली नाम ?

जाकिर हुसैन का असली उपनाम कभी हुसैन नहीं था। उनका असली उपनाम था कुरैशी। इस बारे में जाकिर ने एक इंटरव्यू में बताया था कि वह तीन बहनों के बाद अपने पिता, उस्ताद अल्ला रखा खान के घर जन्मे थे। जब वह पैदा हुए, तो उनके पिता बीमार रहने लगे थे, और उनकी मां अपने बेटे को लेकर चिंतित रहती थीं। एक दिन, घर पर एक संत आए, जिन्होंने जाकिर की मां से कहा कि वह अपने बेटे को कोसने के बजाय उसका ख्याल रखें। संत ने यह भी कहा कि जाकिर को इमाम हुसैन के नाम पर बुलाना चाहिए, क्योंकि इमाम हुसैन एक शिया मुस्लिम संत थे। इस तरह से उनका उपनाम हुसैन पड़ा और बाद में वह जाकिर हुसैन के नाम से प्रसिद्ध हुए।

व्हाइट हाउस में दी थी प्रस्तुति

2010 में जाकिर हुसैन एक महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल करने वाले पहले भारतीय संगीतकार बने। उन्हें व्हाइट हाउस में प्रस्तुति देने का मौका मिला, जो किसी भी भारतीय कलाकार के लिए एक बड़ा सम्मान था। यह अवसर उन्हें अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति बराक ओबामा की तरफ से मिला था। जाकिर का यह प्रदर्शन भारतीय संगीत की दुनिया में एक मील का पत्थर था और उन्होंने इसे गर्व से स्वीकार किया।

कैसे बने जाकिर हुसैन ताजमहल चाय के ब्रांड एंबेसडर?

ताजमहल चाय के विज्ञापन में जाकिर हुसैन का चेहरा और तबले की थाप आज भी लोगों के जेहन में बसी हुई है। 1966 में कोलकाता में ब्रुक बॉन्ड ताजमहल चाय की शुरुआत हुई। यह चाय एक प्रीमियम चाय के रूप में बाजार में आई थी, और इसका प्रचार करने के लिए एक ऐसा आइडिया चाहिए था, जो भारतीय संस्कृति के साथ विदेशी प्रभाव को भी जोड़ सके। उस वक्त के प्रसिद्ध कॉपीराइटर चक्रवर्ती ने जाकिर हुसैन का नाम सुझाया। उन्हें यह महसूस हुआ कि तबले के उस्ताद जाकिर हुसैन की पहचान भारतीय परंपरा से जुड़ी हुई थी और उनका संगीत विदेशों में भी प्रसिद्ध था।

इस विज्ञापन में जाकिर हुसैन की तबले की थाप के साथ-साथ चाय के स्वाद का मेल किया गया। विज्ञापन के अंत में, “वाह ताज!” की आवाज़ ने पूरे भारत में ताजमहल चाय को एक अलग पहचान दिलाई। इस विज्ञापन के बाद, जाकिर हुसैन भारतीयों के दिलों में सिर्फ एक तबला उस्ताद नहीं, बल्कि एक सशक्त ब्रांड एंबेसडर भी बन गए। रेडियो पर सुनाई देने वाली तबले की थाप और टेलीविजन पर उनका चेहरा, अब हर भारतीय के घर का हिस्सा बन चुका था।