कश्मीर से लौटकर निर्मला भुराड़िया

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निर्मला भुराड़िया

अपनी कश्मीर यात्रा में हम कश्मीर के पारंपरिक यात्रा स्थलों के अलावा कश्मीर के भीतरी हिस्सों में भी गए। वहां गांव में जगह- जगह भट्टी वाली बेकरी दिखाई पड़ती है। इसे वे कांदरवान कहते हैं और बेकर को कांदुर। कांदरवान में स्त्री और पुरुष संग-संग काम करते हैं। पुरुष भट्टी पर और स्त्री बाहर दुकान पर दिखाई देती है।

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कश्मीरी गांव में लोग चावल घर में बनाते हैं और रोटी कांदरवान से खरीद कर लाते हैं।कांदरवान में तरह-तरह की रोटियां बनती है जैसे गिरदा, भाखर खानी, लवासा, घेऊ लवासा यानी घी वाली लवासा। शीरमाल यानी हल्की मीठी रोटी। बाकी कुल्चा, लच्छा पराठा और रोट भी। कश्मीरी सुबह की चाय के साथ भी रोटी खाते हैं। शीरमाल को छोड़कर सभी रोटियां हल्की नमकीन होती है और हां चाय भी नमकीन। हमने भी नमक और मक्खन वाली नमकीन चाय का स्वाद लिया। जिस बेकरी में तस्वीरें ली वहां के कांदुरगण ने अच्छी खासी मेहमाननवाजी की और प्रसन्नता पूर्वक तस्वीरें खिंचवाई।