मध्य प्रदेश की मोहन सरकार ने एक नई नीति की घोषणा की है जिसके तहत बंद पड़ी सॉइल टेस्टिंग लैब को चलाने की जिम्मेदारी अब युवा उद्यमियों और प्राइवेट संस्थाओं को सौंपी जाएगी। इस योजना के तहत, सरकार पहले तीन साल तक सैंपलिंग पर होने वाले खर्च का हिस्सा उठाएगी, इसके बाद इन लैब को अपनी खुद की आय से चलाना होगा।
प्रदेश में कुल 265 सॉइल टेस्टिंग लैब हैं, जिनका निर्माण लगभग सात साल पहले करीब 150 करोड़ रुपये की लागत से किया गया था। इन लैब्स को स्थापित करने का उद्देश्य किसानों को मिट्टी परीक्षण की सुविधा प्रदान करना था। हालांकि, स्टाफ की कमी और अन्य समस्याओं के चलते ये लैब धीरे-धीरे बंद हो गईं।
नई योजना का उद्देश्य:
- युवा उद्यमियों और प्राइवेट संस्थाओं को जिम्मेदारी: सरकार ने निर्णय लिया है कि इन बंद पड़ी लैब्स का संचालन अब कृषि से जुड़े संस्थाओं और युवा उद्यमियों को सौंपा जाएगा। इसका उद्देश्य इन लैब्स की क्षमता को बढ़ाना और किसानों को उनके क्षेत्रीय स्तर पर मिट्टी परीक्षण की सुविधा उपलब्ध कराना है।
- सहयोग और स्वायत्तता: प्रारंभ में, सरकार पहले तीन वर्षों तक सैंपलिंग और संचालन पर होने वाले खर्च का समर्थन करेगी। इसके बाद, लैब्स को अपने संसाधनों से चलाना होगा और उन्हें स्वायत्त बनाना होगा।
वर्तमान स्थिति:
- ब्लॉक से जिला मुख्यालय तक यात्रा: वर्तमान में किसानों को मिट्टी परीक्षण के लिए ब्लॉक से जिला मुख्यालय तक यात्रा करनी पड़ रही है। इस कठिनाई को दूर करने के लिए और किसानों को बेहतर सेवा प्रदान करने के लिए यह नई योजना लाई गई है।
- निजी लैब्स का उदय: कुछ जिलों में निजी सॉइल टेस्टिंग लैब्स भी खुल चुकी हैं, जो किसानों को स्थानीय स्तर पर सेवाएं प्रदान कर रही हैं।
इस नीति का मुख्य उद्देश्य है कि सॉइल टेस्टिंग लैब्स की बंद स्थिति को सुधारकर उन्हें कृषि क्षेत्र में एक सक्रिय और लाभकारी भूमिका में वापस लाया जा सके, जिससे किसानों को मिट्टी की गुणवत्ता और अन्य संबंधित जानकारी आसानी से मिल सके।