राजनीति में नवीन नेतृत्व

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 कमलगुप्ता “विश्वबंधु “

सभी राजनेतिक पार्टियों में समय समय पर पुराने नेतृत्व की जगह नया नेतृत्व उभर कर अपना स्थान बनाता आया है। जिस भी पार्टी ने नये नेतृत्व को मौका देने में कोताई की उस पार्टी को भारी नुकसान ऊठाना पड़ा है। पुराना नेतृत्व जी भर कर अपनी पारी खेल चूका होता है ज्यादा लम्बी पारी में असन्तुष्टि का खतरा भी बना रहता है । गन्नै को ज्यादा पिरोंने से ज्यादा रस नही निकलता है,अधिक रस के लिये गन्ना बदलना ही पड़ेगा। जो लम्बे समय से नेता काबिज होते है वे सब उपर वालों की अर्थात केन्द्रीय नेतृत्व की मेहरबानी पर टिके होते हैं (कुछ ही नेता जनाधार के आधार पर कायम रहते है) जो टिके है अपनी गोटियां बिठाते रहते है और जरा भी असन्तुष्ट हुवें की बगावत पर उतर आते है।

जो कार्यकर्ता और नेता पार्टी के सिध्दांतों से जुड़े होते है वे पार्टी के प्रति सदैव समर्पित रहते है। अन्यथा नेता के साथ आते जाते रहते है। कुछ नेता पिढ़ी दर पिढ़ी वफादारी को निभाते है और कुछ नेता गद्दारी करने से बाज नही आते ही। प्रसाद पर्यन्तता के आधार पर भी लालचवश कुछ नेता पार्टी से जुड़े रहते है। ये ही अवसरवादी नेता है।
नयें नेता छात्रसंघ चुनावों से, मजदूर संगठनों सें, ट्रेड युनियनों से, जाति गत, धार्मिक व सामाजिक संगठनो एवं उनके आयोजनों से, तथा जन आन्दोलनों से भी पैदा होते हैं।
जितनी जरुलत कार्यकर्ता व नेता को पार्टी की होती है उतनी ही जरुरत की दरकार पार्टी को भी कार्यकर्ता और नेता की होना चाहिये जो अमूमन दिखाई नही देती है।
नये नेतृत्व को मौका देना व बुजुर्ग नेतृत्व को मार्गदर्शन मण्डल में रख उनका सम्मान बनाये रखना जरुरी होगया है। आखिर कब तक घिसे पिटे नेताओं को ढ़ोया जाये,ये स्वैच्छा से तो हटने वाले है नही है क्योंकि सबसे ज्यादा अतिमहत्वकांक्षा राजनिति में ही देखी जाती।

वर्तमान भौतिकवादी युग में धन दौलत का स्थान सर्वोपरि हो गया है। खर्चे अनाप सनाप बड़ गयें है । युवा पिढ़ी धन कमाने के लिये टूट पड़ रही है अपार धन कैसे मिल जाये इसी जुगाड़ में लगी हुई है। जो लोग राजनिति में पड़े हुवें है वे भी राजनिति को धन कमाने का जरिया मानकर राजनिति को गंदा कर रहें है। धन ही कमाना है तो उसके लिये और भी कई क्षेत्र है। धन कमाने वाले नेताओं को धन ही बहूत जल्द खत्म कर देता है।

अब सवाल उठता है राजनिती में भी तो धन लगता है। इसका जवाब है लोगों की मदद करते रहे आप स्वयं बड़े बन जायेगें।। टाटा बिड़ला अडानी अम्बानी को राजनिति से लाभ तो दिलाया जा सकता है मगर ये लोग धन कै बूते प्रधानमंत्री राष्ट्रपति नहीं बन सकते। ट्रम्प भी बिना पार्टी के यू. एस. के राष्ट्रपति नही बन सकते थे।
युवा तरूणाई को राजनिति में आगे आना ही होगा, राजनिति में सफल होने पर जीवन के हर आयाम को पूरा किया जाना सम्भव है। राजनिति को धर्म समझ कर करना होगा ना की धन्धा समझकर। इसके लिये जीवन के सही दर्शन को अपनाना होगा। लक्ष्य को तय कर सही व समय पर निर्णय लेकर उठाये गये कदम सही चयनित पात्रों के सहयोग से सफलता को प्राप्त करा सकते है।  “राजतंत्र सुख भोग का साधन नही,लोक कल्याण का माध्यम है”