नए सीजेआई ने फुल कोर्ट मीटिंग बुलाई, इन अहम मुद्दों पर हुई चर्चा

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देश के 49 वें मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) उदय उमेश ललित ने बीते शनिवार को पूर्ण न्यायालय की एक बैठक बुलाई थी। आखिर क्या होती है फुल कोर्ट मीटिंग और क्यों बुलाई जाती हैं और क्यों पद संभालते ही नए सीजेआई को इस बैठक को कराने की जरूरत महसूस हुई।

पूर्ण न्यायालय की ऐसी बैठक जिसमें न्यायालय के सभी न्यायाधीश भाग लेते हैं। शनिवार को नए सीजेआई यू यू ललित की बुलाई पूर्ण न्यायालय बैठक में न्यायाधीशों ने अदालत में मामलों की लिस्टिंग और बैकलॉग से संबंधित मुद्दों से कैसे निपटा जाए इस पर चर्चा की।

फुल कोर्ट मीटिंग करने को लेकर कोई लिखित नियम नहीं है। परंपरा के मुताबिक न्यायपालिका के महत्व के मुद्दों पर चर्चा करने के लिए भारत के मुख्य न्यायाधीश द्वारा पूर्ण न्यायालय की बैठक बुलाई जाती है। उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों में वकालत करने वाले अधिवक्ताओं के वरिष्ठ पदनाम भी पूर्ण न्यायालय की बैठकों के दौरान तय किए जाते हैं।
फुल कोर्ट मीटिंग का मूल विचार सबको साथ लेकर चलना है। ये बैठक देश की कानूनी व्यवस्था को घेरने वाली या बुरा असर डालने वाली परेशानियों से निपटने के लिए की जाती है। इसके जरिए आम समाधान पर पहुंचने और अदालत की प्रशासनिक प्रथाओं या व्यवहारों में यदि जरूरी हो तो कोई भी संशोधन करने का एक आदर्श अवसर मिलता है।

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भारत के मुख्य न्यायाधीश के विवेक पर पूर्ण न्यायालय की बैठक बुलाई जाती है, हालांकि इसके लिए किसी खास तरह का कोई कैलेंडर का इस्तेमाल नहीं होता है। इससे पहले 2020 और उससे पहले 1997 में फुल कोर्ट मीटिंग बुलाई जा चुकी हैं।

इससे पहले भी पूर्ण न्यायालय या पूरी न्यायालय की बैठक हो चुकी हैं। दो साल पहले मार्च 2020 में कोविड-19 महामारी के वक्त जब अदालत के कर्मचारियों के बीच यह बीमारी फैली थी। उस वक्त न्यायालय की पूरी बैठक बुलाई गई थी। यह बैठक वकील संघों की मांग पर बुलाई गई थी, इसमें अगली सूचना तक अदालत को बंद करने और आगे के कदमों का फैसला करने जैसी मांगों पर चर्चा की गई थी। इसके अलावा पहले भी 7 मई, 1997 को हुई एक पूर्ण अदालत की बैठक हुई थी।

इसमें फैसला लिया गया कि हर न्यायाधीश को अपनी सभी संपत्तियों अचल संपत्ति या निवेश के बारे में खुलासा करना चाहिए। फिर चाहे ये संपत्तियां उनके खुद के नाम पर या पति या पत्नी या किसी भी आश्रित व्यक्ति के नाम पर ली गई हों। फैसले में किसी भी भौतिक प्रकृति की यानी चल-अचल संपत्ति का अधिग्रहण करने पर इन संपत्तियों के बारे में एक सही वक्त के अंदर बताना और उसके बाद इन सपंत्तियों का खुलासा करना जरूरी बताया गया है।

7 मई 1997 बैठक में फैसला लिया गया कि भारत के माननीय मुख्य न्यायाधीश द्वारा उन न्यायाधीशों के खिलाफ उचित सुधारात्मक कार्रवाई के लिए एक आंतरिक प्रक्रिया तैयार की जानी चाहिए जो एक न्यायाधीश के तौर पर अपने व्यवहार और कार्यों में न्यायायिक प्रणाली के सिद्धांतों का पालन नहीं करते हैं। अगर कानूनी भाषा में समझा जाए तो ऐसे न्यायाधीश जो अपनी चूक या कमीशन के कामों से न्यायिक जीवन के सार्वभौमिक रूप से स्वीकृत मूल्यों का पालन नहीं करते हैं।

चूक और कमीशन से मतलब है कि ऐसे काम जो आप करने में विफल रहे हैं और वो काम जो आपने किए हैं। ये शब्द अक्सर कानून के संदर्भ में इस्तेमाल किए जाते हैं। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के न्यायाधीशों के ध्यान में रखे जाने और पालन किए जाने के लिए कुछ न्यायिक मानक और सिद्धांत निर्धारित किए गए हैं। इन्हें न्यायिक जीवन के मूल्यों का पुनर्कथन यानी किसी बात को फिर से या अलग तरीके से कहने की क्रिया, खासकर अधिक साफ तरीके से बात कहना कहा जाता है। इस पर कायम न रहने वाले न्यायाधीशों के खिलाफ भी कार्रवाई की जाती है।