IIM इंदौर में हुई ईएफपीएम और ईएफपीएमजी की नई बैच की शुरुआत

Ayushi
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आईआईएम इंदौर के एग्जीक्यूटिव फेलो प्रोग्राम इन मैनेजमेंट एंड गवर्नेंस (ईएफपीएमजी) के पहले बैच और एग्जीक्यूटिव फेलो प्रोग्राम इन मैनेजमेंट (ईएफपीएम) के 11वें बैच का उद्घाटन 23 जुलाई, 2021 को ऑनलाइन मोड में आयोजित किया गया । उद्घाटन प्रो. हिमांशु राय, निदेशक, आईआईएम इंदौर और मुख्य अतिथि डॉ. संजीव चोपड़ा, हार्वर्ड विश्वविद्यालय, पूर्व निदेशक, लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासन अकादमी की उपस्थिति में हुआ।

प्रो. फिलिप ज़ेरिलो,  पूर्व-केलॉग बिजनेस स्कूल, एमोरी यूनिवर्सिटी और इंडियन स्कूल ऑफ बिजनेस; और डॉ. आलोक पांडे, संयुक्त सचिव, वित्त मंत्रालय, भारत सरकार इस कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि थे। प्रो. अभिषेक मिश्रा, चेयर, एफपीएम; प्रो. प्रीतम रंजन, डीन-रिसर्च; प्रो. संजीव त्रिपाठी, फैकल्टी एवं पूर्व चेयर-एफपीएम और प्रो. अजीत फडनीस, फैकल्टी, आईआईएम इंदौर भी इस अवसर पर उपस्थित रहे।

प्रो. राय ने अपने वक्तव्य में दूरदृष्टि, कल्पना, जुनून और लगन के महत्व को साझा किया। उन्होंने कहा कि आईआईएम इंदौर प्रासंगिक बने रहने के अपने मिशन पर कायम है और विश्व स्तर की शिक्षा प्रदान करना सुनिश्चित करता है। ये दो पाठ्यक्रम प्रतिभागियों को अपने कौशल को इस तरह से विकसित करने में मदद करते हैं कि वे सामाजिक रूप से जागरूक हों और अपने शोध से समाज में योगदान करसकें। ‘महामारी के इस समय में, प्रशासकों द्वारा किए जाने वाले काम बेहद महत्त्व रखता है।

सुनिश्चित करें कि आप समाज में समस्याओं को पहचान कर एक ऐसे शोध विषय का चयन करें जो इन समस्याओं का समाधान खोजे और आपका ज्ञान समाज के कल्याण और राष्ट्र निर्माण में योगदान देने में मददगार साबित हो’, उन्होंने नए बैच को सलाह दी। उन्होंने प्रतिभागियों को अपने अनुसंधान के प्रति लगन रखने, इमानदारी बनाए रखने,शोध का आनंद लेने और यह सुनिश्चित करने के लिए प्रोत्साहित किया कि यह दूसरों के जीवन पर सकारात्मक प्रभाव डाल सके। ‘सफल शोध सिर्फ कठिन परिश्रम से ही नहीं, अपितु दृढ़ता से ही प्राप्त होता है ‘, उन्होंने कहा।

डॉ. संजीव चोपड़ा ने कार्य-जीवन संतुलन के महत्व पर अंतर्दृष्टि साझा की। ‘जीवन आनंद लेने के लिए है और इसमें निरंतर संघर्ष नहीं होना चाहिए। सुनिश्चित करें कि आप अपने शोध को भी पसंद करें और उसका आनंद लें । यह इसपर निर्भर करता है कि आप क्या करते हैं और क्या पंसद करते हैं’, उन्होंने कहा। संगठनों में कार्य-संस्कृति बदल रही है। हमेंन केवल ज्ञान होना चाहिए, बल्कि हमारे पास उस ज्ञान को लागू करने का कौशल भी होना चाहिए जो सभी स्थितियों के लिए प्रासंगिक हो। ‘अनुसंधान, कला, विज्ञान, सिद्धांत और व्यावहार-सब सम्बंधित हैं। इन्हें एक साथ जोड़ने का प्रयास करें, और आप नया सीखने और ज्ञान प्राप्त करने में सक्षम बन सकेंगे’, उन्होंने कहा।

प्रो. फिलिप जेरिलो ने कहा कि अब समय आ गया है कि हर कोई व्यवसाय की भाषा बोलना शुरू करे-यही प्रबंधन संस्थानों का लक्ष्य है। ‘अपने मन की सुनें। नया सीखने के लिए उत्साहितरहें। अपना समय प्रबंधित करें, क्योंकि यदि आप समय खो देते हैं तो इसे वापस प्राप्त करने का कोई विकल्प नहीं है। शॉर्टकट न लें और सुनिश्चित करें कि आपके विचार मूल हैं। उन्होंने कहा कि दोस्त बनाएं और उन समूहों के लिए खुद को उपयोगी और प्रासंगिक बनाएं जिनसे आप बातचीत करते हैं। उन्होंने प्रतिभागियों को सकारात्मक होने और यह समझने के लिए प्रोत्साहित किया कि महत्त्व यह नहीं रखता कि आपके पास कितना ज्ञान है और इससे आपका क्या लाभ होता है, महत्त्व यह रखता है कि आपके ज्ञान से अन्य लोगों को क्या लाभ हो रहा है।

डॉ. आलोक पांडे ने प्रतिभागियों को समाज के सामने आने वाली समस्याओं की पहचान करके शोध विषय चुनने के लिए प्रोत्साहित किया। ‘आपका शोध दूसरों के लिए उपयोगी होना चाहिए। सुनिश्चित करें कि आप अपने लक्ष्य और शोध के विषय पर केन्द्रित रहे’, उन्होंने कहा। उन्होंने उल्लेख किया कि पीएचडी एक व्यक्ति को वह विषय चुनने में मदद करती है जिसमें उसकी गहन रूचि हो। उन्होंने कहा, ‘याद रखें, एक ऐसा विषय चुनें जिसमें आपकी रुचि हो और जो आपको समाज की बेहतरी में योगदान करने के लिए प्रोत्साहित करे।’ इस कार्यक्रम में दोनों प्रोग्राम के नए बैचों के 22 प्रतिभागियों ने भाग लिया।