नेति नेति

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मैं आसमान को
घूर रहा था ,
आसमान मुझे ।

दो चार पक्षी
इधर से उधर
उड़ते चले गए ।

बदलो के टुकड़े
न जाने क्यों
सूरज को छुपा देना
चाहते है ।

सत्य कही छुपता है
इस तरह ,
क्षण भंगुर बादल
क्या जाने ।

हा मैंने सैकड़ो
चमकते दमकते
सुराख
जरूर कर दिए है ,
आसमान में
घूरते हुए ,
सूरज के ढलते ही ।

   धैर्यशील येवले इंदौर