अड़ोस पड़ोस स्थायी सुरक्षा का भाव हैं

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अनिल त्रिवेदी

जैसे विशाल वट वृक्ष की छांव सबकी होती हैं।छांव पर किसी का विशेषाधिकार नहीं हैं।जो वृक्ष के पास आवेगे वे सब वृक्ष की छांव पावेगे।छांव एक परिस्थिति जन्य स्थिति है जिसकी उत्पति और अंत ,काल परिस्थिति अनुसार होता हैं।जैसे अकेला वृक्ष छांव की उत्पति नहीं कर सकता धूप या तेज प्रकाश जरूरी है।यदि धूप या तेज प्रकाश न हों, चांदनी रातों की चांदनी हो तो भी छांव से साक्षात्कार हो जाता हैं। तीखी तेज धूप और भीषण गर्मी में सारे भेद भुलाकर कई तरह के पक्षी परिन्दों व गाय भैंस से लेकर बकरी या गधा धोड़ा कुत्ता भी मनुष्य के साथ वट वृक्ष की छाया में एक साथ खड़े या बैठे हैं,इस तरह के सामुदायिक दृश्यों की समय समय पर उत्पत्ति परिस्थितिजन्य हैं।कड़ाके की ठण्ड में यह दृश्य उत्पन्न नहीं होता,ठण्ड़ में छांव नहीं धूप की चाहत होती हैं।पर कभी कभी बरसात में पानी की बोझारों से बचने या मनोवैज्ञानिक सुरक्षा की खातिर भी ऐसा दृश्य उत्पन्न होता रहता हैं।इस दृश्य की उत्पत्ति के मूल में सुरक्षा का भाव हैं।

हम और हमारा परिवार तो छोटा ही होता हैं।इस तरह साथ सहयोग और सुरक्षा की दृष्टि से हम हमारे आस पास परिस्थिति जन्य जरूरतों में भेदभाव को भूल हम सबको निभा लेते हैं।एक से भले दो लोगों का साथी भाव, सामुदायिकता का मूल भाव हैं।यह तो जरूरत के समय साथी भाव की बात हुई,पर मूल बात तो अड़ोस पड़ोस की है जो मूलत:स्थानीय स्थिति और भाव से जन्मा है।अड़ोस पड़ोस कैसा भी और कहीं भी हो सकता हैं।जैसे दो मकान,दो मोहल्ले ,दो गांव,दो शहर,दो प्रदेश,दो देश या दो ग्रह से लेकर दो आकाशगंगा तक।

मानव समाज में अड़ोस पड़ोस की अवधारणा का विकास सहज पारस्परिक सम्बन्धों को लेकर हुआ हैं। आप घर के सदस्य नहीं हैं पर पड़ोसी नाते घर जैसे हैं।पड़ोस घर के बाहर बिना खुद की मिल्कियत का आभासी घर हैं।इस संकल्पना में मुख्य बात संबंधों की शुरूआत ,आपसी सुरक्षा के भाव के कारण होना बहुत संभव हैं।जैसे किसी को कहीं जाना हैं तो पड़ोसी पर भरोसा कर या बताकर जाता हैं।पड़ोसी घर का सदस्य न होते हुए भी घर के जैसा ही होता हैं।यह पूरी तरह से आपसी सदभाव और सहयोग का सम्बन्ध हैं।अड़ोस पड़ोस द्विपक्षीय अवधारणा हैं एकांगी नहीं अत:पारस्परिक व्यवहार पर निर्भर हैं।

एक या अकेला कभी अड़ोस पड़ोस का निर्धारक या निर्माता नहीं हो सकता।इसी से यह मान्यता स्थापित हुई की इस सम्बन्ध को कोई बन्धन न होते भी निभाने की अपेक्षा है।अड़ोसी पड़ोसी कोई भी हो सकता हैं।हम अपना पडोसी चुन नहीं सकते जो हमारे पड़ोस में होगा वह हमारा पड़ोसी होगा।बुरे से बुरा व्यक्ति भी अच्छा पड़ोसी चाहता हैं।अड़ोस पड़ोस की संकल्पना में अकेले व्यक्ति या मनुष्य को यह सुविधा हैं की वह अपना स्थान बदल सकता हैं और इस तरह नया पड़ोस पा सकता हैं।पर मकान,मोहल्ला,गांव औरशहर,प्रदेश,देश ,ग्रहऔरआकाशगंगा पड़ोसी नहीं बदल सकते। जो एक बार पड़ोसी हैं वह सनातन पड़ोसी रहेगा।

देश और दुनिया के सभी देशों का अड़ोस पड़ोस कोई सामान्यत:बदल नहीं सकता।यह बदलाव तभी संभव हैं जब कोई देश दो या ज्यादा हिस्सों में बट जावे तभी परिस्थिति विशेष में हुए बदलाव स्वरूप यह राजनैतिक सीमा बदल सकती है।जैसे सोवियत रूस का कई देशों में बट जाना,या भारत का बटवारा होकर पाकिस्तान बनना और पाकिस्तान का बटवारा होकर बंगलादेश बनना।इसी तरह दो प्रदेशों की सीमा बदल या प्रदेश विभाजन से पड़ोस बदल सकता हैं।दो देशों के विलय जैसे जर्मनी में हुआ बदलाव भी संभव है।पर हम सब की नियति अपने अड़ोस पड़ोस के साथ रहने की ही हैं।उसे कोई बदल नहीं सकता।

भारत पाकिस्तान नेपाल तिब्बत चीन भूटान बांग्लादेश श्रीलंका और मालदीव आपस में अड़ोसी पड़ोसी देश है।इस भौगोलिक परिस्थिति में इन सारे देशों के आपसी सम्बन्ध अच्छे बुरे कैसे भी हो रहना तो सबको अड़ोसी पड़ोसी के रुप में ही हैं।जब देशों के रुप में अड़ोस पड़ोस की चर्चा होती हैं तो व्यक्ति की जटिलता बढ़ जाती हैं।मानलिजिये आपके परिवार जन उन देशों में रहे रहे हैं,तब आपकी अपनी पारिवारिक आत्मियता और दो देशों के राजनैतिक सम्बन्धों दोनों का आत्मिय होना आवश्यक हैं अन्यथा तनावपूर्ण मनःस्थिति को हम सबको भोगना होता हैं।

भारत के सारे अड़ोसी पड़ोसी होने के साथ साथ बड़े पैमाने पर निकटतम रिश्तेदारियों वाले देश भी हैं।याने इन देशों में अच्छी खासी संख्या ऐसे लोगों की भी हैं जो नागरिक भले ही अलग अलग देशों के हो पर आपस में निकट परिजन हैं।पर दो देशों के सम्बन्ध खराब या दुश्मनीपूर्ण होने से पारिवारिकता समाप्त नहीं होती।यह सनातन सत्य हैं। अड़ोस पड़ोस व्यक्ति का हो या व्यापक भौगोलिक स्थिति का हों दोनों में पारस्परिक सदभाव भावनात्मक सुरक्षा और आपसी समझदारी से परस्पर व्यवहार की आवश्यकता और मर्यादा का निर्वाह हमसब को हिलमिल कर निभाना चाहिये तभी अड़ोस पड़ोस सहज स्वाभाविक रहेगा अन्यथा दोनों के जी का जंजाल बनते देर नहीं लगती।

आज की दुनिया में जो लोग दुनियाभर में रह रहे हैं,संचार क्रांति से हम सब की हालत यह हो गयी हैं कि हम जितना स्वयं के बारे में नहीं जानते उससे ज्यादा दूसरों के बारे में जानते हैं।यह भी माना जा सकता हैं कि हम सबको दूसरों के बारे में जानकारी रखना चाहिये।पर अब यह हो गया हैं कि संचार माध्यम से मिलने वाली सारी खबरें मात्र खबर नहीं होती खबरों में आपसी,व्यापारिक,आर्थिक,राजनैतिक,कूटनीतिक,धार्मिकऔर संप्रदायिक प्रतिस्पर्धा के कारण प्रायोजित खबरनुमा प्रचार का अंश भी हो सकता हैं।अड़ोस पड़ोस की अवधारणा का मूल मानवमात्र पर सहज विश्वास हैं जिसे सहजता से उसी रुप में मानना और अपनाना हम सब की सुरक्षा की पहली जरूरत हैं।

दुनियाभर के अड़ोसी पड़ोसी को अपने मन में यह गांठ बांधकर रखनी चाहिए की हमारी जिन्दगी में आपतकाल या तात्कालिक जरूरत के समय हमारा पहला मददगार हमारा अड़ोस पड़ोस ही होता हैं।अड़ोस पड़ोस हमारे सामुदायिक जीवन की सनातन विरासत हैं।इसलिये जल्दबाजी,गुस्से या तात्कालिक लाभ हानि के वशीभूत उत्तेजित हुए बिना पूरी गंभीरता और पूरे धीरज के साथ अड़ोस पड़ोस के स्थायी सुरक्षा भाव को आजीवन अपना साथी सहयोगी मानना ही मनुष्य समुदाय की सहज सभ्यता हैं।आकाशगंगा और चांद जैसे पड़ोसी से हमारा आपसी व्यवहार अभी नहीं है।चांद पर जाकर मानव आया हैं जानकारी लाया हैं।इतना ही सम्बन्ध हैं पर धरती के सारे देश और लोगों के बीच जीवन्त आपसी व्यवहार हैं।निकटतम पड़ोसी से धनिष्ठतम सम्बन्धों की निरंतरता ही अड़ोस पड़ोस की ताकत हैं।