ऑनलाइन पढ़ाई की आवश्यकता और सार्थकता एक विचार

Mohit
Published on:

अतुल शेठ – पिछले 1 साल से भी ज्यादा,शिक्षा के क्षेत्र में, ऑनलाइन पढ़ाई का चलन बढ़ता गया है,और अब अधिकतर पढ़ाई ऑनलाइन हो रही है। वर्तमान कोरोना वायरस को देखते हुए लगता है कि,अगला 1 साल भी ऑनलाइन पढ़ाई ही होगी। निश्चित ही ऑनलाइन पढ़ाई से ,पढ़ाई में होने वाले नुकसान को काफी कम किया जा सका है।मगर निश्चित तौर से यह कह सकते हैं कि,ऑनलाइन पढ़ाई ऑफलाइन पढ़ाई या क्लासरूम पढ़ाई का विकल्प नहीं हो सकती है किसी भी हालत में।क्योंकि ऑनलाइन पढ़ाई में कुछ विषय ऐसे हैं जो थीयोरीटिकल होते हैं, इसे पढ़ कर समझ में आने लायक या कहानी के रूप में या कथा के रूप में या विवरण के रूप में पढाई होती है।जैसे इतिहास है,सामान्य भाषा है, नागरिक बोध है ,भूगोल है। ये विषय है जिसको ऑनलाइन पढ़ा जाए तो पढ़ाया जा सकता है,और उसका ज्ञान भी प्राप्त होता है, और छात्रों को इसका फायदा भी मिलता है। वही कुछ विषय है जिसमें प्रमुख तौर से गणित है विज्ञान है,इससे संबंधित कई प्रैक्टिकल सब्जेक्ट होते हैं। इसमे प्रयोगशाला का सीधा दर्शन और हर विद्यार्थी को उसको करने का अवसर मिलना नितांत आवश्यक है,तभी वह विषय समझ में आते हैं।छोटी कक्षाओं में गणित एक ऐसा विषय है जिसको ऑनलाइन होना बहुत मुश्किल जाता है।

इस वर्ष परीक्षाओं में देखा गया है कि बच्चों को स्कूल के अंदर प्रमोशन दे दे गया है। उस बच्चे को, उस कक्षा के अंदर अपेक्षित ज्ञान प्राप्त हुआ है या नहीं हुआ हो। और यह एक बहुत बड़ा कारण बनेगा भविष्य में उसकी असफलता का, जब बच्चा बड़ा हो जाएगा और उसको अगर मूल विषय की अवधारणा ही नहीं होगी।तो ऊसे काम करने में बहुत कठिनाइयां होगी ।उदाहरण के लिए बात करें ,गणित की, अगर तीसरी चौथी में उसने 3 अंकों का है 4 अंकों का गुणा नहीं करा है,तो वर्गमूल निकालना उसको कैसे आएगा और अगर वर्गमूल निकालना नहीं समझा है तो आगे के गणित के सवालों को कैसे करेगा ।वैसे ही ट्रिग्नोमेट्री नहीं पड़ी उसने आठवीं नौवीं में, तो अगली कक्षा में बहुत से विषय रहेंगे जिसके अंदर उसको पढ़ने में बहुत कठिनाइयां होगी। इसी प्रकार कॉलेज के अंदर भी खासकर तकनीकी विषय जैसे इंजीनियरिंग क्षेत्र है, मेडिकल के क्षेत्र है ,विज्ञान है।इसमें यदि बच्चों ने प्रैक्टिकल नहीं किए हैं और नहीं समझा है, प्रत्यक्ष नहीं देखा है प्रत्यक्ष नहीं करा है। तो विषर समझ में आना असंभव सा है ।अगली कक्षा में उसको प्रमोट कर दिया तो हो सकता है कि वह डिग्री ले ले मगर उसका आधार बहुत कमजोर हो जाएगा।ओर उसके लिए ओर राष्ट्र के लिए बहुत नुकसान दायक स्थिति होगी।

इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए मेरा मानना है की 1 वर्ष जो गया और एक वह जो हमारा जाने वाला है इन 2 वर्षों को हमने 0 वर्ष घोषित करना चाहिए।और इसके अंदर यदि किसी बच्चे को या किसी विद्यार्थी को या उसके माता-पिता को लगता है कि रिपीट करने की अनुमति चाहिए, तो उसे वह मिलना चाहिए नाम मात्र फीस पर।और इसका प्रभाव उसके कैरियर पर न पड़े और उसको फेल न मानते हुए स्पेशल पीरियड ग्रांड हो।साथ ही इस दो सालों को जिसने 0 वर्ष का फायदा लेते हुए रिपीट किया हो,उसे उम्र में,आने वाले सालों में सरकार की नौकरियों में जहां उम्र का बंधन होता है,वहां वहां उन्हें 2 साल की छूट मिले।और जिन्होंने 0 वर्ष का फायदा लेते हुए रिपीट किया हो उसे भविष्य में नौकरी के अंदर या काम करने के अंदर या एडमिशन के अंदर कुछ अतिरिक्त फायदा मिले। जिससे कि बच्चों को ज्ञान की कमी नहीं होगी सिर्फ समय का नुकसान होगा। जो कि भविष्य में बहुत छोटा नुकसान रहेगा।इस बारे में सभी शिक्षाविदों ने और सरकार ने विचार करना चाहिए।कि इन 2 वर्षों की पढ़ाई जो होना थी, जो नहीं हुई है, और जो नुकसान हुआ है। उसकी भरपाई कैसे हो सके ।इसके लिए जब सामान्य कक्षाएं और समय शुरू हो ,तब नुकसान हुए सालों की पढ़ाई के लिए अतिरिक्त कक्षाएं भी लगाई जा सकती है। और जो बच्चे इसको उपयोग में लाए या शामिल हो,उन्हें अतिरिक्त सुविधा मिलना चाहिए।ऐसा मुझे लगता है।

आप सब से विनम्र अनुरोध है कि इस बारे में विचार कर, इस विषय को और विचार को आगे गति दें। जिससे कि हमारी आने वाली पीढ़ी को, भविष्य में होने वाले नुकसान की भरपाई हो सके,साथ हीसमाज को और देश को भी इसका लाभ मिले।
धन्यवाद।