नवरात्रि 2020: ये शक्तिपीठ है सबसे प्रसिद्ध, यहां के दर्शन करने से होती है सभी मनोकामनाएं पूर्ण

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पितृपक्ष खत्म होते ही शारदीय नवरात्रि का शुभ आरंभ हो जाता है। लेकिन इस साल ऐसा नहीं हुआ क्योंकि इस साल शारदीय नवरात्रि पितृपक्ष के 1 महीने बाद शुरू होने वाली है। पितृपक्ष इस महीने यानी सितंबर की 17 तारीख को ही खत्म हो चुका है। वहीं शारदीय नवरात्रि अक्टूबर की 17 तारीख से शुरू होने जा रहा है। जो की 25 अक्टूबर तक रहेंगे। ऐसे में पूरे 9 दिनों तक मां दुर्गा के नौ स्वरुप की पूजा की जाती है। भक्त माता के दर्शन करने के लिए दूर दूर जाते हैं।

लेकिन कोरोना काल के चलते लॉकडाउन में सभी मंदिरों के दर्शन करना माना था जिसके बाद अब इन सभी मंदिरों को खोला दिया गया है लेकिन कुछ शर्तों के साथ मंदिरों को खोला गया है। अगर आप दर्शन के लिए जा रहे है तो आपको कुछ जरूरी निर्देशों का पालन करना होगा। नवरात्रि के दौरान भारत के अलग-अलग कोनों में फैले हुए मां के प्रसिद्ध मंदिरों में भारी संख्‍या में भक्‍तों की भीड़ लगाती हैं।

शक्तिपीठ

आपको बता दे, पुराणों में ऐसा कहा गया है कि जहां माता के अंग के टुकड़े, धारण किए वस्त्र या आभूषण गिरे हुए है वहां शक्ति पीठ आया है। ये सभी शक्तिपीठ ऊंची चोटियों पर और उपमहाद्वीप पर फैला हुआ है। ये सभी पीठों में शिव रूद्र भैरव के रूपों में पूजे जाते हैं। वहीं इन शक्तिपीठो में से कई पीठों में तंत्र साधना के मुख्य केंद्र हैं। यहां नवरात्रि में भक्तों की भीड़ बड़े उत्साह से शक्ति की उपासना करने के लिए आती है। आज हम आपको इन्ही शक्तिपीठों के बारे में बताने जा रहे हैं जहां आप नवरात्रि में दर्शन के लिए जा सकते हैं। तो चलिए जानते हैं –

कालीघाट मंदिर कोलकाता –

कोलकाता शहर के कालीघाट में स्थित देवी काली माता का एक बहुत प्रसिद्ध मंदिर है। ये हावड़ा स्टेशन से 7 किलोमीटर की दुरी पर है। आपको बता दे, काली घाट के काली मंदिर को शक्तिपीठ माना जाता है। यहां सती के दाएं पांव की चार अंगुलियां गिरी थीं। जिसके बाद यहां शक्तिपीठ बना और हर साल नवरात्रि में दूर दूर से भक्त दर्शन के लिए आते हैं। जैसा कि आप सभी जानते है बंगाल कोलकाता में नवरात्रि का त्यौहार बड़े ही धूम धाम से मानाया जाता है। यहां दुर्गा पंडाल बनाए जाते है और 9 दिन मां की उपासना की जाती हैं।

कोलापुर महालक्ष्मी मंदिर –

महाराष्ट्र के कोल्हापुर में स्थित महालक्ष्मी मंदिर है। इस जगह पर माता सती का ‘त्रिनेत्र’ गिरा था। जिसके बाद यहाँ की शक्ति महिषासुरमर्दनी तथा भैरव क्रोधशिश हैं। आपको बता दे, यहां महालक्ष्मी का निज निवास माना जाता है। क्योंकि यहां पाँच नदियों के संगम-पंचगंगा नदी तट पर स्थित कोल्हापुर प्राचीन मंदिरों की नगरी है।

अम्बाजी का मंदिर गुजरात –

सभी शक्तिपीठों में शामिल अंबाजी मंदिर सबसे प्रमुख स्थल में से एक है। इस जगह माता सती का हृदय गिरा था। इस मंदिर का उल्लेख तंत्र चूड़ामणि में भी किया गया है। इस मंदिर में कोई भी प्रतिमा नहीं रखी हुई है, बल्कि यहां मौजूद श्री चक्र की पूजा की जाती है। ये मंदिर माता अंबाजी को समर्पित है और गुजरात का सबसे प्रमुख मंदिर है।

हरसिद्धि माता मंदिर उज्जैन –

बता दे, हरसिद्धि माता मंदिर उज्जैन का सबसे प्रसिद्ध मंदिर है। यहां शिवपुराण के अनुसार दक्ष प्रजापति के हवन कुंड में माता के सती हो जाने के बाद भगवान भोलेनाथ सती को उठाकर ब्रह्मांड में ले गए थे। वहां ले जाते समय इस स्थान पर माता के दाहिने हाथ की कोहनी और होंठ गिरे थे और इसी कारण से यह स्थान भी एक शक्तिपीठ बन गया है।

ज्वाला देवी मंदिर –

हिमाचल प्रदेश में ज्वाला देवी मंदिर कांगड़ा से 30 किलो मीटर दूर है। इस शक्तिपीठ को जोता वाली का मंदिर भी कहा जाता है। बता दे, यहां देवी सती की जीभ गिरी थी। यहां पर पृथ्वी के गर्भ से नौ अलग-अलग जगह से ज्वाला निकल रही है जिसके ऊपर ही मंदिर बना दिया गया हैं।