मणिपुर में शांति के लिए राष्ट्रव्यापी अभियान की भोपाल के गांधी भवन से हुई शुरुआत

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भोपाल । पूर्वोत्तर का खूबसूरत प्रदेश मणिपुर जल रहा है। सैकड़ों लोग वहां हिंसा की बलि चढ़ चुके हैं। इस हिंसा को परदेस से भी हवा मिल रही है। इसके मद्देनजर देश भर की गैर राजनीतिक और गांधीवादी संस्थाओं ने राष्ट्रीय स्तर पर अभियान की शुरुआत की है। इस कड़ी में पहला आयोजन भोपाल के गांधीभवन में हुई ।इसमें बड़ी संख्या में बुद्धिजीवी,विचारक,गांधीवादी ,लेखक ,पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता शामिल हुए। मणिपुर के स्थानीय निवासियों ने भी इस आयोजन में अपनी व्यथा सबके सामने रखी। राष्ट्रीय स्तर पर इस मुहिम में गांधी शांति प्रतिष्ठान,केंद्रीय गांधी स्मारक निधि,सर्व सेवा संघ,राष्ट्रीय गांधी संग्रहालय, राष्ट्रीय युवा संगठन, गांधी भवन भोपाल, और अनेक सामाजिक संस्थाएं शिरकत कर रही हैं। कार्यक्रम में सभी संगठनों की ओर से राष्ट्रपति जी के लिए एक ज्ञापन के प्रारूप को स्वीकार किया गया। ज्ञापन में कहा गया है कि मणिपुर की राज्य सरकार अपने नागरिकों की रक्षा करने में नाकाम रही है और उसे अब शासन करने का नैतिक अधिकार नही रहा है।

कार्यक्रम की शुरुआत गांधी जी के प्रिय भजन वैष्णव जन तो तेने कहिए…. से हुई ।गांधी भवन न्यास के सचिव दयाराम नामदेव ने मणिपुर के आज के हालात पर चिंता जताई और कहा कि भारत सभी धर्मों,संप्रदायों , समुदायों और जातियों का एक गुलदस्ता है । यह देश सदभाव और प्रेम से रहना सिखाता है। यहां नफ़रत के लिए कोई गुंजाइश नहीं है । वरिष्ठ पत्रकार और फिल्मकार राजेश बादल ने कहा कि भारतीय लोकतंत्र की ख़ास बात यही है कि तमाम जातियां, उप जातियां,धर्म और संप्रदायों के लोग यहां हिलमिलकर रहते आए हैं।

मणिपुर हमेशा से एक शांत प्रदेश रहा है ,लेकिन ताज़ा घटनाक्रम इस बात का सुबूत है कि राज्य सरकार इससे निपटने में नाकाम रही है। केंद्र ने भी लापरवाही बरती है। किसी भी मामले में विपक्ष को भरोसे में नही लेने वाली सरकार ने इस मामले में सर्वदलीय बैठक तब बुलाई,जब वह प्रदेश में क़ानून व्यवस्था बनाए रखने में असफल रही। डबल इंजिन की सरकारों का यह खोखलापन है।

वरिष्ठ पत्रकार और समाज सेवी लज्जा शंकर हरदेनिया ने कहा कि भारत में पहले भी दंगे हुए लेकिन इतने लंबे समय तक व्यापक हिंसा पहली बार किसी राज्य में हुई है, और सरकार हाथ पर हाथ रखे बैठी है। पहले कभी दंगा होते थे तो प्रधानमंत्री अपनी जान पर बाजी लगाकर दंगा स्थल पर पहुंच जाते थे चाहे पंजाब का मामला हो या तमिलनाडु का इंदिरा गांधी और राजीव गांधी वहां गए। आज देश के लोगों को एक बार फिर आंदोलन के लिए तैयार होना चाहिए। सामाजिक कार्य कर्ता और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के सचिव शैलेंद्र शैली ने कहा कि मणिपुर में नफ़रत और हिंसा के लिए केंद्र और राज्य सरकार दोनों ज़िम्मेदार हैं। ऐसी निर्वाचित हुकूमतों को राज करने का कोई हक नही है। मणिपुर के कुकी समुदाय की लालकील गंदे ने अपने अनुभव साझा किए और कहा कि हमारा परिवार वहां है। हम असुरक्षित हैं ।ऐसा पहले कभी नहीं हुआ। मणिपुर के नैनेम दोकीप और कैरोलिन गंदे भी कार्यक्रम में ख़ास तौर पर उपस्थित थे। कार्यक्रम में शैलेंद्र शैली,पूषण भट्टाचार्य, मदन जैन, नीना शर्मा, अशोक सिंधु, सोफिया, अरुणोदय परमार ने भी अपने विचार रखें। संचालन गांधी वादी पत्रकार अंकित मिश्र ने किया।