राष्ट्रीय हृदय वाल्व रोग जागरूकता दिवस, पैर या पेट में सूजन और अनियमित धड़कन हो सकते हैं हृदय के वाल्व से जुड़े रोगों के संकेत

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• 22 फरवरी को मनाया जाता है राष्ट्रीय हृदय वाल्व रोग जागरूकता दिवस

इंदौर : मानव शरीर में हृदय बेहद अहम किरदार निभाता है, मनुष्य को जिन्दा रहने के लिए इसकी सबसे ज्यादा आवश्यकता होती है। हालाँकि जितनी जटिल इसकी कार्यप्रणाली होती है उतनी ही जटिल इसकी संरचना और उतने ही जटिल इसके रोग। हृदय में रक्त के पूर्वप्रवाह (बैकफ़्लो) को रोकने के लिए वाल्व मौजूद होते हैं, जिनमें कई बार विकार उत्पन्न हो जाता है, जिसका व्यक्ति के स्वास्थ पर गंभीर परिणाम देखने को मिलता है। इस विकार के प्रति लोगों को ज्यादा से ज्यादा जागरूक करने के लिए हर वर्ष 22 फरवरी को राष्ट्रीय हृदय वाल्व रोग जागरूकता दिवस मनाया जाता है जिसका उद्देश्य हृदय के वाल्व की देखभाल, इसके जुड़े विकार और उसके उपचारों के बारे में अधिक से अधिक जानकारी दी जा सके।

शैल्बी मल्टीस्पेशलिटी हॉस्पिटल इंदौर के डायरेक्टर कार्डियक साइन्सेज़ एवं चीफ इंटरवेंशनल कार्डियोलॉजिस्ट डॉ सिद्धांत जैन एवं कंसल्टेंट इंटरवेंशनल कार्डियोलॉजिस्ट डॉ शिरीष अग्रवाल ने बताया, “हृदय में चार मुख्य वाल्व होते हैं, जिसमें से दो वाल्व अलिंद (एट्रिया) और निलय (वेंट्रिकल्स) के जुड़ने वाले स्थान पर और बाकी दो महाधमनी (aorta) और पल्मोनरी धमनी के मुहाने पर दो ओर वाल्व मौजूद होते हैं। हृदय की आंतरिक परत, जिसे एंडोकार्डियम कहते है, वाल्व बनाने के लिए फ्लैप के रूप में बाहर बढ़ती है। फ्लैप्स बल की दिशा में बंद होते हैं और रक्त के बैकफ़्लो को रोकते हैं। जब फ्लैप्स सही तरीके से बंद नहीं होते या लीक होते हैं, तो वाल्व रक्त के बहाव को नियंत्रित नहीं कर पाता और हृदय की पम्पिंग में समस्या देखने को मिलती है। इसके कारण हृदय वाल्व रोग की समस्या उत्पन्न होती है। हृदय वाल्व रोग लगभग 2-3% जनसंख्या को प्रभावित करते हैं। इसकी संभावना अधिकतर वृद्ध एवं वयस्कों में होती है। सबसे सामान्य समस्याओं में से एक माइट्रल वाल्व प्रोलैप्स है, जो बाएं वेंट्रिकल से बाएं एट्रियम में रक्त के विपरीत प्रवाह (regurgitation) के कारण होता है। मुख्यतः हृदय वाल्व रोग जन्मजात या जन्म दोष हो सकते हैं। वे व्यक्ति की उम्र बढ़ने के साथ समय के साथ भी दिखाई दे सकते हैं। स्ट्रेप्टोकोकल गले के संक्रमण के साथ अनुपचारित रुमेटिक बुखार, दिल का दौरा, उच्च रक्तचाप, कैल्शियम का विघटन या जमाव, आरोटिक एनेयूरिज़्म या सूजन वाल्व फ्लैप को प्रभावित करती है। इसके अलावा हार्ट फेलियर और हृदय में संक्रमण भी हृदय वाल्व रोग के कुछ कारण हो सकते हैं। हृदय वाल्व रोग के सभी मामलों में हमेशा लक्षण नहीं दिखाई देते हैं और जब लक्षण नजर आते हैं तो स्थितियाँ ज्यादा खराब हो जाती हैं। हालांकि सामान्य लक्षणों को समय से पहचान लिया जाए तो स्थिति पर काबू पाया जा सकता है। सांस लेने में तकलीफ या डिस्निया, स्पंदन या पैल्पिटेशन (दिल की धड़कन का अचानक बढ़ना या एक धड़कन छूटने का एहसास होना), पैर या पेट में सूजन (एडिमा), खासकर ट्राइकसपिड रिगर्जिटेशन में, सामान्य कमजोरी, अचानक वजन बढ़ना, बेहोशी और अनियमित दिल की धड़कनें, ह्रदय वाल्व रोग के सामान्य एवं प्रारंभिक लक्षण है। ऐसे लक्षण दिखाई देने पर तुरंत डॉक्टर से सलाह लें एवं हर संभव सलाह का पालन करें।”

शैल्बी मल्टीस्पेशलिटी हॉस्पिटल इंदौर के डायरेक्टर कार्डियक सर्जरी डॉ मोहम्मद अली के अनुसार, “हृदय वाल्व रोगों को उनके द्वारा उत्पन्न समस्या के प्रकार के आधार पर बांटे जाते हैं। जब वाल्व के फ्लैप्स मोटे हो जाते हैं, तो वे पूरी तरह से खुल नहीं पाते हैं और उस रास्ते को छोटा कर देते हैं इस स्थिति को वाल्वुलर स्टेनोसिस कहा जाता है। जब वाल्व पूरी तरह से बंद नहीं हो पाते तो यह स्थिति वाल्वुलर इनसफिसिएंसी कहलाती है। इसके अलावा वाल्वुलर एट्रेशिया आमतौर पर जन्मजात या जन्म दोष होता है और इसका मुख्य कारण जन्म से पहले ह्रदय का पूरी तरह से निर्माण नहीं होना होता है। हृदय वाल्व रोग के निदान या पुष्टि करने के लिए आमतौर पर इकोकार्डियोग्राम, व्यायाम स्ट्रेस इकोकार्डियोग्राम, छाती का एक्स-रे, एंजियोग्राम, ईसीजी(इलेक्ट्रोकार्डियोग्राम) और मैग्नेटिक रिज़नेंस इमेजिंग (एमआरआई) जैसी जांचों का सहारा लिया जाता है। हृदय वाल्व रोगों का उपचार वाल्व में मौजूद समस्या के सटीक कारण, गंभीरता, स्थान और प्रकार पर निर्भर करता है। इसके उपचारों में वाल्व रिपेयर या वाल्व रिप्लेसमेंट के विकल्प मौजूद है। वाल्व रिपेयर प्रक्रिया में छिद्रों की मरम्मत की जाती है, मिले हुए हिस्सों को अलग किया जाता है, वाल्व को सहारा दिया जाता है, या अतिरिक्त ऊतक को हटाया जाता है। जबकि वाल्व रिप्लेसमेंट की प्रक्रिया में क्षतिग्रस्त वाल्व का मैकेनिकल या टिश्यु बेस्ड वाल्व के साथ बदलना शामिल होता है। मैकेनिकल वाल्व के मामलों में खून में थक्के बनने से रोकने के लिए पूरे जीवन के लिए रक्त पतला करने वाली दवा लेने की आवश्यकता होती है। जैसे ही टिश्यु बेस्ड वाल्व ख़राब हो जाते हैं, उन्हें समय-समय पर प्रतिस्थापन की आवश्यकता होती है।”

शैल्बी हॉस्पिटल्स के मुख्य प्रशासनिक अधिकारी डॉ अनुरेश जैन एवं मेडिकल सुपरिटेंडेंट डॉ विवेक जोशी ने बताया “आज कल लगातार बढ़ रही ह्रदय वाल्व के रोगों की समस्या बेहद गंभीर है, लेकिन शैल्बी हॉस्पिटल की टीम हर तरह के हृदय रोगों से निपटने के लिए पूरी रूप से तैयार रहती है। शैल्बी इंस्टिट्यूट ऑफ़ कार्डियक साइंसेज में वाल्व रिपेयर और वाल्व रिप्लेसमेंट सेवाएँ उपलब्ध है। शैल्बी की कार्डियक टीम अपनी विश्व स्तरीय दक्षता के लिए जानी जाती है, जिसमें कम दर्द, बिना संक्रमण के खतरे के छोटे चीरे लगाकर ही शीघ्र स्वास्थ्य लाभ लिया जा सकता है। मिनिमल इनवेसिव कार्डियक सर्जरी के साथ साथ शैल्बी हॉस्पिटल में एंडोस्कोपिक वेसल हार्वेस्टिंग, टोटल आर्टियल रिवैस्कुलराइजेशन, सर्जिकल और एंडोवास्कुलर, एओर्टिक एन्यूरिज्म का उपचार, एमआईसीएस वाल्व सर्जरी, मिनिमल इनवेसिव कार्डियक सर्जरी वाल्व सर्जरी, काम्प्लेक्स रेडो सर्जरी,ट्रांसकैथेटर एओर्टिक वाल्व इम्प्लांटेशन (TAVI) जैसी आधुनिक उपचार पद्धति उपलब्ध है। इसके अलावा कोरोनरी एंजियोग्राफी, कोरोनरी एंजियोप्लास्टी एवं स्टेन्ट, रेडियल एंजियोग्राफी (हाथ की नस द्वारा), इन्ट्रा वस्कुलर अल्ट्रा साउंड (IVUS), रोटा ब्लेशन (ROTABLATION), फ्रैक्शनल फ्लो रिज़र्व (FFR), पेसमेकर, ICD / CRT प्रत्यारोपण, पेरीफेरल इंटरवेन्शन एवं स्टेन्ट, TAVI / TEVAR, डिवाइस क्लोज़र (ASD / VSD / PDA), दिल की असामान्य धड़कन का उपचार (EP Study, RF Ablation) जैसी विश्वस्तरीय हृदय रोग सुविधाएँ उपलब्ध हैं।”