घमासान की विशेष रिपोर्ट
अब इस बात को स्वीकार कर लिया जाना चाहिए कि इंदौर में नर्मदा के जल प्रदाय का कार्य पूरी तरह से फेल हो गया है। इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि पिछले 10 दिनों में मात्र एक दिन शहर के अधिकांश हिस्सों में पानी मिल पाया है। यह तो 10 दिन की कहानी है लेकिन अगर 365 दिन का हिसाब निकाला जाए तो पता चलेगा कि 365 दिन में से पहले तो एक दिन छोड़कर पानी मिलता है याने लगभग 180 दिन पानी दिया जाता है। अब 180 दिन में से भी लगभग 70 – 80 दिन ऐसे गुजर जाते हैं जब कोई न कोई कारण बन ही जाता है और लोगों को पानी नहीं मिल पाता ।
कभी लाइन में लीकेज आ जाता है, कभी मोटर जलूद में फेल हो जाती है, कभी टंकियां पूरी तरह से नहीं भर पाती यानी कुल मिलाकर पूरे साल का हिसाब किताब यह है कि मात्र 100 दिनों तक ही पानी इंदौर को मिल पाता है और इसमें भी जिस तरह से टंकियों का विस्तार किया जा रहा है उससे तो शहर का प्यासा रहना तय है ।
जब भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता कृष्ण मुरारी मोघे महापौर थे, तब यह घोषणा की गई थी कि इंदौर में अब 24 घंटे पानी दिया जाएगा लेकिन उसके बाद 24 घंटे तो दूर आधा घंटा भी अगर नल चल गए तो बहुत बड़ी बात है। उस समय यह भी कहा गया था कि नर्मदा की एक और लाइन डालकर पानी देने की क्षमता दोगुनी कर दी गई है लेकिन वह पानी कहां गया आज तक पता नहीं चला।
सवाल इस बात का है कि एक तरफ तो लोगों को 300 रुपए महीना पानी का बिल देना पड़ रहा है जिसके लिए नगर निगम लोगों से वसूली भी करता है और दूसरी तरफ मात्र 100 दिन लोगों को पानी मिल पाता है याने उन्हें पूरे माह का पैसा देना पड़ता है लेकिन उन्हें पानी आठ-दस दिन भी नहीं मिल पाता है। ऐसी स्थिति में यह मान लिया जाना चाहिए कि नर्मदा प्रोजेक्ट का जो मुख्य उद्देश्य था घर-घर पानी पहुंचाना वह पूरी तरह से फेल होता हुआ नजर आ रहा है। वह तो गनीमत है कि नगर निगम के बोरिंग काम कर रहे हैं अन्यथा आधा इंदौर खाली होने की नौबत आ जाती क्योंकि नर्मदा के भरोसे से जो लोग बैठे हैं अगर उन्हें बोरिंग का सहारा नहीं मिलता तो यह तय था कि शहर को उजड़ने में देर नहीं लगती।