धुलेंडी पर बाबा महाकाल के गर्भगृह में आरती के दौरान फेंके जा रहे गुलाल से जो आग भभकी उसकी चपेट में पुजारियों सहित 14 लोग आए और 80 साल के सेवक सत्यनारायण सोनी का उपचार के दौरान निधन भी हो गया. इस पूरे मामले में उज्जैन कलेक्टर नीरज सिंह की नादानी साफ नजर आती है, जिन्होंने गंभीर मजिस्ट्रियल जांच को तमाशा बना दिया. मात्र 3 दिन में कलेक्टर ने इस मजिस्ट्रियल जांच की अंतरिम रिपोर्ट के आधार पर मंदिर प्रशासक संदीप सोनी को बलि का बकरा बनाते हुए मीडिया को बताया कि फाइनल रिपोर्ट आना है वहीं लैब रिपोर्ट के बाद कह पाएंंगे कि गुलाल में केमिकल था या नहीं.
मजे की बात यह है कि कोई भी मजिस्ट्रियल जांच इस तरह आनन-फानन में मुकम्मल नहीं होती, उसका एक प्रोटोकॉल होता है, जिसमें दावे-आपत्तियों को बुलाने सहित अन्य जरूरी प्रक्रिया रहती है. मगर कलेक्टर ने असल दोषियों को बचाने का जो खेला किया उसमें पुलिस के साथ मौके पर मौजूद संबंधित एसडीएम को भी क्लीन चिट दे डाली.सबसे महत्वपूर्ण तथ्य जो अभी तक सामने नहीं लाया गया कि खुद डीआईजी नवनीत भसीन सुबह 4 बजे से 6 बजे तक गर्भगृह में ही मौजूद थे और उनके साथ 100 से अधिक का पुलिस बल भी.यानी डीआईजी के रहते इतनी बड़ी घटना घट गई और उनका बाल बांका नहीं हुआ.एक और बड़ा सच ये है कि हादसे के वक्त मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव का परिवार भी मंदिर में ही मौजूद था और मुख्यमंत्री के बेटे ने हादसे से जुडे़ जो वीडियो और फोटो वायरल किए , उससे भी घटना के कारण स्पष्ट समझ में आ जाते हैं.यह भी बताया गया कि बड़ी मात्रा में गुलाल के इस्तेमाल से आग भड़की, जबकि सालों से महाकाल सहित तमाम मंदिरों में इसी तरह होली खेली जाती रही है, जहां किलो नहीं बल्कि क्विंटलों से गुलाल और रंग उड़ाया जाता है.महाकाल मंदिर के दर्शनार्थियों का भी कहना है कि वे सालों से इसी तरह होली देखते आएं है , जिसमें इस बार कुछ नया नहीं था और किसी दुर्घटना की तरह ये भी एक दुखद हादसा था.
दरअसल अधकचरी मजिस्ट्रियल जांच के जरिए प्रशासन मन्दिर की उन व्यवस्थाओं में खामियां बता रहा है , जिन के बलबूते लाखों श्रद्धालुओं को रोजाना दर्शन करवाएं जाते रहें है. दोषपूर्ण प्रचार प्रसार के ज़रिए ऐसा साबित करवाया गया जैसे सब कुछ चौपट हो .इससे ये भी प्रतीत होता है मानो मुख्यमंत्री को अपने गृह जिले में बदनाम करने के प्रयास चल रहे हो. वहीं दूसरी तरफ़ मंदिर की बिगड़ी व्यवस्था को पटरी पर लाने में महती भूमिका अदा करने वाले भी कइयों की आंखों में खटक रहे थे. मंदिर में पुलिस की दखलअंदाजी भी कम की गई , जिसके चलते कलेक्टर को जो प्राथमिक जांच रिपोर्ट सौंपी , उसमें अधिनस्थ पुलिस अधिकारियों ने अपने बॉस यानी डीआईजी को साफ बचा लिया. ये खेल कलेक्टर के पल्ले नहीं पड़ा या वे भी पुलिस और अन्य असल जिम्मेदारों को बचाना चाहते थे. प्रशासन ने जो आधे-अधूरे तथ्य मीडिया को उपलब्ध कराए उससे देश भर में बदनामी तो हुई वही मुख्यमंत्री को घेरने का मुद्दा अलग विपक्ष को थमा दिया.
सूत्रों का कहना है कि इस पूरे घटनाक्रम से मुख्यमंत्री भी खुश नहीं हैं, क्योंकि कलेक्टर को जिस तरीके से इस पूरी घटना को हैंडल करना था , उसमें वे असफल रहे. अब चर्चा ये है कि असल दोषियों को समय आने पर बाबा महाकाल सजा देंगे या उसके पहले मुख्यमंत्री सबक सिखाएंगे, क्योंकि उनके पास अब इस हादसे से संबंधित असल तथ्य और सही जानकारी पहुंच रहीं है. @ राजेश ज्वेल