इंदौर में एक बच्चे द्वारा संचालित अंडे के ठेले और सड़क पर बिखरे अंडों की वायरल हो रही तस्वीरों ने भविष्य में निर्मित होने वाली एक नई धारणा को जन्म दे दिया है.वायरल हुए इस वीडियो से अधिकांश लोगों की मानवीय भावनाएं उद्वेलित हो गई. जिसमें मैं भी शामिल हूँ. इसके बाद आलोचना करना भी स्वभाविक प्रक्रिया का हिस्सा है.लेकिन आज घटना स्थल पर करीब एक घंटे तक प्रत्यक्षदर्शियों से चर्चा के बाद इस बात को ताल ठोक कर कह सकता हूँ, जो बातें की जा रही है, वो अर्द्ध सत्य है. हालांकि मेरे इस मैसेज के बाद मैं भी आलोचना का शिकार हो सकता हूँ. लेकिन इन आलोचनाओं के लिए इसलिए तैयार हूं.क्योंकि आलोचना करने वालों में से अधिकांश घटनास्थल पर नहीं गए होंगे.घटना स्थल के अधिकांश प्रत्यक्षदर्शियों के कहना है कि नगर निगम की टीम ने ठेले को हाथ तक नहीं लगाया. सिर्फ पीले रंग के वाहन का भय अंडों को बिखेर गया. अब नगर निगम को यह जरूर सोचना चाहिए कि साधनों और अधिकारों का प्रयोग यदि आमजन में भय फैलाने लगे तो एक जमीनी और शासकीय संस्थान की प्रतिष्ठा इससे भी बदतर हो सकती है ।
सोशल मीडिया पर मचे बवाल के बाद नगर निगम ने जांच कमेटी का भी गठन कर दिया है और अपरआयुक्त देवेंद्र सिंह ने सभी पक्षों से चर्चा भी की है.लेकिन नगर निगम को यहां किसी भी तरह के भ्रम के मायाजाल में न आते हुए संवेदनशील मुद्दे की निष्पक्ष जांच करनी चाहिए. क्योंकि यदि वाकई में नगर निगम का एक भी कर्मचारी इस घटना का दोषी नहीं है तो सिर्फ चौतरफा दबाव के चलते उन पर गाज गिर जाए ये अनुचित और मनोबल गिराने वाला होगा .ये बात इसलिए महत्त्वपूर्ण है क्योंकि नगर निगम की टीम के उस योगदान को भी नहीं भूलना चाहिए जो लॉक डाउन और कोविड कि भयावहता के बीच मददगार साबित हुआ था.बुरे दौर के बीच काम करते हुए निगम के कई कर्मचारी भी इसी दौरान संक्रमित हुए थे . ऐसे में दबाव के कारण की गई कार्रवाई एक नई परिपाटी शुरू हो सकती है.जो निगम की जमीनी टीम को शोले फ़िल्म का ठाकुर बना सकती है। वैसे प्रसन्नता इस बात की जरूर है लंबे समय बाद किसी मुद्दे पर शहर के नेता सामने आए और विरोध जताया.हालांकि यह नेता लॉक डाउन के दौरान निजी अस्पतालों और स्कूलों की मनमानी सहित कई बड़े मुद्दों पर खामोश थे। उनकी चुप्पी के चलते कई जानें सिर्फ इसलिए चली गई क्योंकि उन्हें सही समय पर इलाज नहीं मिल पाया.कुल मिलाकर नगर निगम को चाहिए कि अब सत्यता के आधार पर उचित कार्रवाई करें और प्रभावित बच्चे के परिवार के लिए रोजगार की भी व्यवस्था कर देना चाहिए .
गुहार : बच्चे और उसके परिवार के प्रति पूरी संवेदनाएं हैं.लेकिन इस बात की भी फिक्र है कि ऐसा हल्ला कहीं कोरोना की सतर्कता पर से ध्यान न भटका दें.आलोचनाएं भी आमंत्रित है.