नवरात्रि में जरूर जाएं मां कामाख्‍या के दर्शन करने, ये है महत्त्व और सावधानियां

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पितृपक्ष खत्म होते ही शारदीय नवरात्रि का शुभ आरंभ हो जाता है। लेकिन इस साल ऐसा नहीं हुआ क्योंकि इस साल शारदीय नवरात्रि पितृपक्ष के 1 महीने बाद शुरू होने वाली है। पितृपक्ष इस महीने यानी सितंबर की 17 तारीख को ही खत्म हो चुका है। वहीं शारदीय नवरात्रि अक्टूबर की 17 तारीख से शुरू होने जा रहा है। जो की 25 अक्टूबर तक रहेंगे। ऐसे में पूरे 9 दिनों तक मां दुर्गा के नौ स्वरुप की पूजा की जाती है। भक्त माता के दर्शन करने के लिए दूर दूर जाते हैं।

लेकिन कोरोना काल के चलते लॉकडाउन में सभी मंदिरों के दर्शन करना माना था जिसके बाद अब इन सभी मंदिरों को खोला दिया गया है लेकिन कुछ शर्तों के साथ मंदिरों को खोला गया है। अगर आप दर्शन के लिए जा रहे है तो आपको कुछ जरूरी निर्देशों का पालन करना होगा। ऐसे में आज हम आपको गुवाहाटी में स्थित कामाख्‍या मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं। जो भक्तों के लिए बीते रविवार से खुल गया है। लेकिन अभी तक मंदिर के आंतरिक गर्भ गृह को भक्‍तों के लिए बंद रखा गया है।

आपको बता दे, ये देवी का मंदिर 51 शक्ति पीठ में से एक है। यहां दूर दूर से लोग दर्शन के लिए आते हैं। यहां कि शक्तिपीठ बहुत ही प्रसिद्ध और चमत्कारी है। ये मंदिर सबसे ज्यादा अघोरियों और तांत्रिकों का गढ़ माना जाता है। इस मंदिर के दर्शन करने जाने के लिए आपको दुरी बताए तो असम की राजधानी गुवाहाटी से दिसपुर के बाद लगभग 7 किमी एक शक्तिपीठ नीलांचल पर्वत से 10 किमी दूर है ये मंदिर। आपको इस मंदिर के दर्शन करने जाने से पहले अपना कोरोना टेस्ट करवा कर उसका सर्टिफिकेट ले जाना अनिवार्य होगा। साथ ही वहीं भक्त दर्शन के लिए जा सकेंगे जिनके पास 3 दिन पहले का सर्टिफिकेट होगा। वहीं इस मंदिर के देवालय कॉप्‍लेक्‍स का गेट शाम 8 बजे तक खुला रहेगा। लेकिन दुर्गा पूजा के समय वक्त में परिवर्तन किया जा सकता है। इस मंदिर में आने वाले भक्तों को मास्क पहनना अनिवार्य होगा।

कामाख्या मंदिर का महत्त्व –

आपको बता दे, कामाख्या माता के मंदिर को सभी लोग शक्तिपीठ के महापीठ के रूप में जानते हैं। वहीं इस मंदिर में कोई भी मूर्ति और चित्र नहीं है। बीएस इस मंदिर में एक कुंड बना हुआ है। जिसमें से हमेशा पानी निकलता है। ये कुंड हमेशा फूलों से ही ढाका हुआ रहता है। यहां की मान्यता है कि मंदिर में देवी सती की योनि की पूजा की जाती है और योनि भाग के यहां होने से माता यहां रजस्वला भी होती हैं।