देश के किसी भी हिस्से में कोरोना के मामले बढ़ते है तो वह कहता है महाराष्ट्र को देखों. मुंबई के हालत खराब है. ऐसा कहकर कई सरकारे और अधिकारी अपना दामन बचा लेते है. अब आज #Whatsapp पर शेयर किए जा रहे एक ऐसे ही मैसेज में जिक्र है कि मुंबई में हालात बेहद खराब हैं. एक दिन में 3056 नए मामले दर्ज किए गए हैं.
पहली बात यह है कि मुंबई की आबादी सवा से डेढ़ करोड़ हैं. ऐसे में 3056 नए केस कैसे मुंबई में हालात बेहद खराब हैं. हो सकता है.
पूरे मध्य प्रदेश में पिछले कुछ दिनों से टेस्टिंग का आंकड़ा बढ़ाने के बाद हर दिन 55 से 60 हजार टेस्टिंग हो रही है. जबकि अकेले मुंबई में हर दिन 30 से 40 हजार के बीच टेस्टिंग होती है. यहां पिछले 15 दिनों से Positivity Rate 10 फीसदी से कम है. अप्रैल में तो कई बार पूरे मध्यप्रदेश से ज्यादा टेस्टिंग मुंबई में हुई.
यदि इंदौर के पिछले मौजूदा पॉजिटिविटी रेट को देखे तो वह 18 से 20 प्रतिशत है. यानी मुंबई से डबल. Mathematically मान लिया जाए कि मुंबई के बराबर इंदौर में टेस्टिंग होती है तो हाल फिलहाल के औसत के हिसाब से सात से आठ हजार केस प्रतिदिन सामने आएंगे.
महाराष्ट्र और मुंबई में सबसे ज्यादा जोर RT-PCR पर है. इंदौर और मध्य प्रदेश में रैपिड एंटीजन टेस्ट पर है, जिसकी रिपोर्ट पर भरोसा नहीं होने पर वही आदमी दोबारा RT-PCR भी करा लेता है. ऐसे में भी टेस्टिंग का आंकड़ा बढ़ता हुआ दिख रहा है.
मुंबई में पिछले कुछ दिनों से टेस्टिंग जरूर 35 से 40 हजार के बीच में हुई है, लेकिन यदि टेस्टिंग कम हो रही है तो फिर पॉजिटिविटी रेट ज्यादा होना चाहिए. ऐसा कतई दिखाई नहीं दे रहा है.
मुंबई में आपको कभी यह ख़बरें पढ़ने को मिली की ऑक्सीजन के अभाव में मौत हो गई या मरीजों को वक्त पर दवाइयां नहीं मिल रही है. हां यह सच है कि अचानक केसेस बढ़ने की वजह से व्यवस्था पर दबाव बढ़ गया, लेकिन प्रॉपर प्लानिंग के चलते Some How परिस्थितियों को ऑउट ऑफ कंट्रोल नहीं होने दिया.
मुंबई में चार अप्रैल को एक दिन में 11 हजार से ज्यादा केसेस सामने आए थे. उस दिन भी और अगले कई दिनों तक आंकड़ा बहुत ज्यादा रहा था, लेकिन आपको इलाज का अभाव या बेड नहीं मिलने की ख़बरें बेहद कम मिली होंगी.
मुंबई में मौत का आंकड़ा जरूर चिंताजनक है, लेकिन फिर यहां वहीं बात कहना चाहूंगा कि मीडिया रिपोर्ट और सरकारी आंकड़ों में आपका विरोधाभास पढ़ने को नहीं मिला होगा. मध्यप्रदेश में भोपाल सहित के कई शहरों में क्या हो रहा है आप भली-भांति वाकिफ है.
मुंबई ने ऑक्सीजन मैनेजमेंट का जो प्लान बनाया है, उसकी दो दिन पहले सुप्रीम कोर्ट ने भी तारीफ की है.
मुंबई को हर दिन 235 मीट्रिक टन ऑक्सीजन की जरूरत है और बीएमसी ने केसेस बढ़ने के बावजूद प्रॉपर मैनेजमेंट और वेस्टेज रोककर इसे बढ़ने नहीं दिया. अब तो मरीज बढ़ने के बावजूद हर दिन 20 से 25 मीट्रिक टन ऑक्सीजन की खपत कम हुई है. वह भी तब जब यहां ऑक्सीजन बेड और आईसीयू बेड की संख्या बढ़ाई गई है.
मुुंबई में बीएमसी ले अब खुद को तीसरी लहर, जो कि जून या जुलाई में आ सकती है, उसके लिए भी खुद को तैयार कर लिया है. BMC ने खुद के 12 अतिरिक्त ऑक्सीजन प्लांट पर काम शुरू कर दिया है. अगले कुछ दिनों में BMC ऑक्सीजन के मामले में आत्मनिर्भर हो जाएगा.
हां, हालात चिंताजनक जरूर है. लेकिन मुंबई में नहीं. पुणे और नाशिक में पॉजिटिविटी रेट कम नहीं हो रहा है. यहां अभी भी 18 से 20 फीसदी पॉजिटिविटी रेट है. ऐसे में वहां हालात काबू में आना बहुत जरूरी है.
पुणे नगर निगम क्षेत्र में कल करीब तीन हजार नए केसेस सामने आए. यहां एक दिन में करीब 19 हजार टेस्टिंग की गई थी. यहां पॉजिटविटी रेट नीचे आना बेहद जरूरी है. हालांकि, फिर वही बात की टेस्टिंग ज्यादा है ( इंदौर से Almost डबल) इसलिए आंकड़ा भी ज्यादा दिख रहा है.
अंत में महाराष्ट्र में मौतों का आंकड़ा इसलिए भी ज्यादा दिखता है कि यहां आंकड़ों के साथ उतनी छेड़छाड़ नहीं होती है. दरअसल, सभी को दिखता है कि महाराष्ट्र में 24 घंटे में 800 या 1000 मौतें. अमूमन 250 से 300 मौतों को छोड़ दिया जाए तो बाकी सभी एक सप्ताह या दो सप्ताह या एक महीने पहले की होती है. जांच रिपोर्ट में सामने आने पर उन जिलों के आंकड़े जोड़ दिए जाते है. इस वजह से एक दिन में मौतों का आंकड़ा ज्यादा दिखता है, जबकि हकीकत में ऐसा होता नहीं है.