शिवराज की राह पर दिग्विजय….

Share on:

दिनेश निगम ‘त्यागी’

सत्ता से बेदखल होने के बाद जो शिवराज सिंह चौहान कर रहे थे, लोकसभा चुनाव हारने के बाद उसी राह पर दिग्विजय सिंह हैं। मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद भी शिवराज के हौसले में कोई कमी नहीं थी। उनके न चाहने के बावजूद गोपाल भार्गव नेता प्रतिपक्ष बन गए लेकिन सक्रियता के मामले में शिवराज सबसे आगे थे। कमलनाथ सरकार के खिलाफ मोर्चे पर वे ही डटे दिखाई पड़ते थे। शिवराज का गोपाल भार्गव, राकेश सिंह एवं नरोत्तम मिश्रा से काम्पटीशन था लेकिन लड़ाई के मैदान में वे ही दिखे। ठीक इसी तरह दिग्विजय विधानसभा चुनाव से पहले और सरकार बनने के बाद जितना सक्रिय थे, लोकसभा चुनाव हारने एवं कांग्रेस की सरकार गिरने के बाद और भी ज्यादा सक्रिय हैं। वे जितना सोशल मीडिया में एक्टिव हैं, उतना ही मैदान में। कमलनाथ सहित कांग्रेस का कोई नेता प्रदेश के इतने दौरे नहीं कर रहा, जितना दिग्विजय कर रहे हैं। शिवराज की तरह उन्होंने भी सबको पीछे छोड़ रखा है। यही वजह है, प्रदेश की राजनीति में ये दोनों सबसे चर्चित चेहरे हैं।

बांटे नहीं, विभाजित किए जा रहे विभाग….

कमलनाथ सरकार गिरने के बाद भाजपा ने जो सरकार बनाई है, उसे गठबंधन की सरकार नहीं कहा जा सकता क्योंकि ज्योतिरादित्य सिंधिया सहित कांग्रेस के सभी बागी अब भाजपा में हैं। इन्हें भाजपा के टिकट पर विधानसभा का उप चुनाव लड़ना है। बावजूद इसके पहले मंत्रिमंडल विस्तार और इसके बाद विभागों के बंटवारे को लेकर मची खींचतान देखकर लगता नहीं कि यह एक दल की सरकार है। मंत्रियों में उनकी योग्यता एवं क्षमता देखकर विभागों का बंटवारा नहीं हो रहा, इन्हें बाकायदा दो खेमों में विभाजित किया जा रहा है। विभाग मंत्रियों के लिए तय नहीं हो रहे, ज्योतिरादित्य सिंधिया, भाजपा संगठन एवं मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के बीच विभाजित किए जा रहे हैं। सिंधिया के पास जो विभाग आयेंगे, उनके बारे में वे तय कर रहे कि उनके खेमे के किस मंत्री के पास कौन विभाग रहेगा। इधर भाजपा को मिलने वाले विभागों में भी बंदरबाट हो रही है। कुछ विभाग शिवराज के विश्वस्तों को मिलेंगे और कुछ संगठन की पसंद के मंत्रियों को। प्रदेश के राजनीतिक इतिहास में संभवत: पहली बार ऐसा हुआ, वह भी भाजपा सरकार में। इसकी वजह से भाजपा के चाल, चरित्र और चहरे की धज्जियां उड़ रही हैं।

यह सोची-समझी रणनीति तो नहीं….

– कांग्रेस की सरकार गिरने और भाजपा की बनने के बाद दो चहरे सुर्खियों में हैं। एक, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान एवं दूसरे ज्योतिरादित्य सिंधिया। मंत्रिमंडल विस्तार में दोनों के कारण अड़चन के चर्चे थे। मंत्रियों को विभागों का बंटवारा भी इन्हीं के कारण उलझा। भाजपा के एक नेता ने इसमें नया एंगल जोड़ा। उनका कहना था, दरअसल भाजपा नेतृत्व प्रदेश में पार्टी की सरकार तो चाहता है लेकिन उसे अब न शिवराज का वर्चस्व स्वीकार्य है और न ही सिंधिया का। इसलिए सोची-समझी रणनीति के तहत शिवराज एवं सिंधिया को एक्सपोज किया जा रहा है। शिवराज इस मायने में एक्सपोज हो रहे हैं कि पार्टी में अब उनकी कोई हैसियत नहीं बची। जबकि ज्योतिरादित्य को लेकर मैसेज जा रहा है कि वे सौदेबाजी कर ही भाजपा में आए। इस तरह कांग्रेस के आरोप पर मुहर लग रही है। मामलों को उलझा कर यह मैसेज दिया जा रहा है कि सिंधिया के कारण भाजपा में कांग्रेस कल्चर आ गया। इसीलिए पहले मंत्री तय करने में समय लगा और अब विभाग बंटने में देरी। वजह, जो सौदा हुआ, सिंधिया उससे पीछे नहीं हटना चाहते। इसे कहते हैं एक तीर से दो निशाने साधना।

असंतुष्ट बजाने लगे खतरे की घंटी….

– मंत्रिमडल के गठन के बाद जिन बुरे हालातों से कमलनाथ गुजर रहे थे, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान इससे भी ज्यादा संकट में हैं। कमलनाथ को पार्टी के वरिष्ठ विधायक, समर्थन दे रहे सपा, बसपा, निर्दलीय विधायकों के साथ ज्योतिरादित्य सिंधिया का खेमा आंखें दिखा रहा था। तख्ता पलट कर सत्ता में आए शिवराज के लिए आंखें दिखाने वाले उससे भी ज्यादा हैं। ज्योतिरादित्य कैसी भूमिका निभाने वाले हैं, यह मंत्रिमंडल विस्तार एवं विभागों के बंटवारे को लेकर चली जद्दोजहद से स्पष्ट हो गया। यह भी दिखा कि शिवराज अपनी पार्टी में अब वैसे ताकतवर नहीं रहे। अपनों में भाजपा की वरिष्ठ नेत्री उमा भारती ने पहले विस्तार पर नाराजगी जाहिर की, फिर गैंगस्टर विकास दुबे की उज्जैन में गिरफ्तारी पर सरकार को कटघरे में खड़ा कर दिया। शिवराज ग्वालियर गए तो जयभान सिंह पवैया ने कहा कि सभी को महारानी लक्ष्मीबाई की समाधि पर जाकर भी फूल चढ़ाना चाहिए। भंवर सिंह शेखावत के तेवर तीखे हैं और दीपक जोशी सहित कई अन्य नाराज। बसपा की रामबाई भी तेवर दिखाने लगी हैं। साफ है, शिवराज सरकार के खिलाफ चारों तरफ से खतरे की घंटियां बजने लगीं हैं।

‘विकास’ के कारण बैकफुट पर सरकार….

– विकास की वजह से पहली बार मप्र की सरकार उत्साहित नहीं, बैकफुट पर है। यहां विकास से तात्पर्य तरक्की से नहीं, उप्र के गैंगस्टर विकास दुबे से है। 8 पुलिस वालों की हत्या कर उप्र से फरार विकास उज्जैन में पकड़ लिया गया, इसके लिए मध्य प्रदेश पुलिस एवं सरकार की तारीफ होना चाहिए। ऐसा होने की बजाय प्रदेश की सरकार कटघरे में हैं और प्रदेश पुलिस बचाव की मुद्रा में। उसकी पोल जो खुल गई। कांग्रेस हमलावर है ही, भाजपा के नेता भी सवाल उठा रहे हैं। पूर्व मुख्यमंत्री साध्वी उमा भारती ने भी तीन सवाल दागे। दिग्विजय ने उमा का समर्थन करते हुए कहा कि भाजपा में कोई है जो हमारे नहीं, उमा के ही सवालों के जवाब दे दे। सवाल में दम भी है। आखिर, लॉकडाउन के दौर में इतना दुर्दांत अपराधी उप्र से उज्जैन तक कैसे पहुंच गया। इससे प्रदेश की पुलिस की मुस्तैदी की पोल खुल गई। पुलिस ने उसे उप्र पुलिस को सौंपा, वह जैसे ही उप्र पहुंचा, तत्काल इन्काउंटर हो गया। इससे मैसेज गया कि मप्र अपराधिकयों के लिए अनुकूल है। यहां उन्हें कोई खौफ नहीं जबकि उप्र में इनके साथ कोई रियायत नहीं। विकास को शरण देने के लिए कई नेताओं पर भी उंगली उठ रही है।