अशोकनगर: दांव पर जज्जी का भविष्य, कड़ी टक्कर दे रहीं आशा

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प्रदेश की 28 विधानसभा सीटों के उप चुनाव में चंबल-ग्वालियर अंचल की अशोकनगर सीट में भी रोचक मुकाबला देखने को मिल रहा है। भाजपा का गढ़ रही इस सीट में कांग्रेस के टिकट पर पिछला चुनाव जीते जजपाल सिंह जज्जी बागी होकर भाजपा में चले गए। भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ रहे जज्जी का भविष्य दांव पर है क्योंकि कांग्रेस के टिकट पर पहला चुनाव लड़ रही आशा दोहरे उन्हें कड़ी टक्कर दे रही हैं। खास बात यह है कि अशोकनगर के अधिकांश कांग्रेस पदाधिकारी ज्योतिरादित्य सिंधिया के इशारे पर पार्टी छोड़कर भाजपा में चले गए हैं। ऐसे में आशा दोहरे का चुनाव कांग्रेस कार्यकर्ता लड़ रहा है। यह कार्यकर्ता पार्टी से बगावत करने के कारण सिंधिया और जज्जी से नाराज बताया जाता है। इसीलिए उप चुनाव में विकास के मुद्दे गौण हो गए हैं। इनका स्थान टिकाऊ-बिकाऊ और अभिमान-स्वाभिमान ने ले लिया है। मुकाबला देखकर तटस्थ विश्लेषक किसी की भी जीत की भविष्यवाणी करने से कतरा रहे हैं।
0 मिजाज: लंबे समय बाद जीती थी कांग्रेस….

  • अशोनगर सीट का मिजाज कभी कांग्रेस के पक्ष का नहीं रहा। यहां से आमतौर पर भाजपा ही जीतती रही है। 2018 में ज्योतिरादित्य सिंधिया के मुख्यमंत्री बनने की चर्चा थी। इसलिए लंबे समय बाद विधानसभा चुनाव मेें कांग्रेस प्रत्याशी जजपाल सिंह जज्जी ने जीत का परचम फहरा दिया था। चुनाव में जज्जी को 47.48 प्रतिशत मत मिले और भाजपा के लड्डू राम कोरी को 40.46 प्रतिशत वोटों से संतोष करना पड़ा। जज्जी 9 हजार 7 सौ से भी ज्यादा वोटों के अंतर से चुनाव जीत गए। सिंधिया के समर्थन के साथ जज्जी को छात्र राजनीति से लेकर लोगों के बीच काम करने का फायदा भी मिला। छात्र के रुप में राजनीति की शुरूआत करने वाले जज्जी एक बार जनपद सदस्य और दो बार नगर पालिका अध्यक्ष रहे हैं। पर पार्टी बदलने के कारण लोगों में जज्जी के प्रति नाराजगी देखी जा रही है।
    0 क्षेत्र में रघुवंशी समाज का दबदबा….
  • अशोकनगर विधानसभा क्षेत्र में दलित, ब्राह्मण और जैन समाज के मतदाता कम नहीं हैं, बावजूद इसके क्षेत्र में रघुवंशी समाज का दबदबा रहता है। समाज में चुनाव का नतीजा प्रभावित करने की क्षमता है। रघुवंशी समाज का असर ग्रामीण क्षेत्र में ज्यादा है। यहां दलित समाज का मतदाता ही रघुवंशी समाज को संतुलित करता है। जिला मुख्यालय अर्थात शहरी क्षेत्र में ब्राह्मण और जैन समाज का मतदाता निर्णायक भूमिका निभाता है। कई बार गांवों से कोई दूसरा जीत कर आता है और शहर के मतदाता पांसा पलट देते हैं। यहां लोधी, राजपूत, कुशवाहा, रजक तथा कोरी समाज भी काफी तादाद में है। कांग्रेस से पार्षद रहीं अनीता जैन की बहू आशा दोहरे ने मुकाबले को रोचक बना दिया है।
    0 भाजपा की ताकत और कमजोरी….
  • अशोकनगर विधानसभा क्षेत्र भाजपा का गढ़ है। करेला और नीम चढ़ा की तर्ज पर कांग्रेस से जीते विधायक जजपाल सिंह जग्गी और उनके नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया भी भाजपा में आ गए। स्वाभाविक तौर पर इससे भाजपा की ताकत बढ़ गई। सिंधिया और जज्जी के साथ कांग्रेस के पदाधिकारियों, पंचायतों में जीते कांग्रेस के प्रतिनिधियों ने भी भाजपा का दामन थाम लिया। इस लिहाज से भाजपा के पास ताकत ही ताकत है। कमजोरी यह है कि सिंधिया और जज्जी के कांग्रेस छोड़ने से पार्टी कार्यकर्ताओं में तो नाराजगी है ही, भाजपा के नेता भी असहज हैं। बगावत कर आए कांग्रेसियों तथा भाजपाईयों के बीच तालमेल नहीं बन पा रहा है। दूसरी तरफ कांग्रेस का कार्यकर्ता एकजुट होकर प्रचार अभियान में जुट गया है। इसका नुकसान भाजपा को उठाना पड़ सकता है।
    0 कांग्रेस की ताकत और कमजोरी….
  • प्रचार अभियान में नजर डालने से पता चलता है कि कांग्रेस की ताकत उसका कार्यकर्ता बन गया है। पहले कहा जा रहा था कि कांग्रेस में कोई चेहरा नहीं है जो सबको एकजुट कर सके लेकिन कार्यकर्ताओं ने यह कर दिखाया। कांग्रेस प्रत्याशी आशा दोहरे पर कोई आरोप नहीं है और आशा की सास अनीता जैन अशोकनगर से कई बार पार्षद रहीं हैं। वे कभी चुनाव नहीं हारीं। उनकी इमेज अच्छी है। इसका लाभ कांग्रेस को मिल रहा है। गुंडों का समर्थन करने के कारण एक वर्ग जज्जी से नाराज है। कमजोरी यही है कि भाजपा के मुकाबले कांग्रेस के पास नेताओं की कमी हैं। पार्टी कार्यकर्ताओं को इसकी कमी खल रही है। बाहर से पहुंचे कांग्रेस नेता इस कमी को दूर करने की कोशिश कर रहे हैं।
    0 भाजपा: भितरघात से आसान नहीं राह….
  • सिंधिया के साथ जज्जी और कांग्रेस नेताओं के बड़ी तादाद में कांग्रेस छोड़ने के बाद भी भाजपा की राह आसान नहीं है। वजह जज्जी ही हैं। दस साल से भाजपा नेता जज्जी के खिलाफ ही झंडा उठाए थे। 2013 के चुनाव में भाजपा के गोपीलाल जाटव ने इन्हें हराया था और 2018 में जज्जी ने भाजपा के लड्डूराम कोरी को हराया। इस तरह यहां भाजपाइयों को जज्जी के विरोध की आदत है। छोटे चुनावों में भी भाजपा नेता और जज्जी आमने-सामने होते रहे हैं। पिछला चुनाव हारे भाजपा के पूर्व विधायक कोरी ने जज्जी के जाति प्रमाण पत्र पर आपत्ति दर्ज कराई थी। मामला अब भी न्यायालय में विचाराधीन है। ऐसे में भाजपा के नेता-कार्यकर्ता जज्जी के साथ खड़ा होने में असहज महसूस कर रहे हैं। लिहाजा, भितरघात की वजह से भाजपा की राह आसान नहीं है।
    0 कांग्रेस में भितरघात का खतरा कम….
  • अशोकनगर में सिंधिया और जज्जी के कांग्रेस छोड़ने के बाद पार्टी अनाथ जैसी हो गई थी, क्योंकि यहां कांग्रेस नहीं बल्कि सिंधिया कांग्रेस थी। सिंधिया पार्टी से चले गए तो कांग्रेस के अधिकांश प्रमुख नेता भी उनके साथ हो लिए। कांग्रेस के सामने चेहरे का संकट पैदा हो गया था। जहां तक भितरघात का सवाल है तो जो ऐसा कर सकते थे सभी पार्टी छोड़ गए हैं। इसलिए कांगे्रस में भितरघात का खतरा कम है। वैसे भी कांग्रेस की लड़ाई यहां पार्टी कार्यकर्ता लड़ रहा है। कांग्रेस के पक्ष में यह बात भी है कि सिंधिया, जज्जी और अन्य नेताओं के कांग्रेस छोड़ने से भाजपा के खिलाफ माहौल बना है। इसकी वजह से कांग्रेस उप चुनाव में कड़ी टक्कर देती दिखाई पड़ रही है।
    0 अभिमान – स्वाभिमान की लड़ाई बना मुद्दा….
  • अशोकनगर के प्रचार अभियान पर नजर डालने से पता चलता है कि यहां विकास के मुद्दे पीछे चले गए हैं। पूरा चुनाव ‘बिकाऊ-टिकाऊ’ पर लड़ जा रहा है। इतना ही नहीं कांग्रेस ने यहां सिंधिया के ‘अभिमान’ के मुकाबले लोगों के ‘स्वाभिमान’ को मुद्दा बना दिया है। हालांकि भाजपा जहां अपने काम गिना रही है वहीं कांग्रेस कमलनाथ सरकार द्वारा 15 महीने में किए गए कार्य। फिर भी इनके स्थान पर चर्चा ‘अभिमान-स्वाभिमान’ और ‘बिकाऊ-टिकाऊ’ की ही हो रही है। मतदाताओं का एक वर्ग भाजपा और कांग्रेस सरकारों के कार्यकाल में हुए कामों की तुलना करता भी दिखाई पड़ता है।