स्कूल में मदर-टीचर

Shivani Rathore
Published on:

कोई भी स्कूल हो वहां पर टीचर की भूमिका मदर की तरह होना चाहिए। मैनें जब अपना स्कूल संभालना शुरू किया तो सबसे पहले खुद पढाई की उसके बाद बच्चों को पढ़ाने के लिए मदर-टीचर की भूमिका निभाई। उसके बाद मैंने अपने स्कूल के हर टीचर से कहा कि वो मदर-टीचर की भूमिका में रहे। ताकि बच्चों को घर जैसा वातावरण मिले। उनका टीचर पर विश्वास बढे। इसके साथ ही बच्चे टीचर से हर बात खुलकर कर सके। मैंने बच्चों को अपने बच्चों की तरह हमेशा समझा। जब भी स्कूल में मौका मिलता है, तो मैं बच्चों को अपने पास बुलाकर उनकी हर बात सुनती हूँ। यह कहना है एडवांस्ड एकेडमी स्कूल की डायरेक्टर प्रिंसिपल डॉ. सविता राय का।

कभी भी बच्चे मिल सकते है मुझसे

स्कूल की शुरुआत की बात है, सन 2000 की बात है। मैंने ग्रेजुएशन किया। पोस्ट ग्रेजुएशन किया। फिर पीएचडी की। उसके बाद बच्चों को कैसे पढ़ाया जाए इस पर गहन अध्ययन किया। बच्चों की कॉउंसलिंग करना बहुत जरुरी है। प्ले स्कूल से प्रायमरी स्कूल तक के बच्चों की अलग समस्या होती है, तो नवीं से लेकर बाहरवीं तक के बच्चों की अलग समस्या होती है। एडवांस्ड एकेडमी स्कूल में लगभग 3 हजार बच्चों से लगातार बात करने की कोशिश होती है। सभी बच्चों को इस बात की छूट दे रखी है कि वो मुझसे आकर कभी भी मिल सकते है। मुझे मोबाइल पर कॉल भी कर सकते है।

पेरेंट्स बच्चों के दोस्त बने

पेरेंट्स टीचर मीटिंग के अलावा भी पेरेंट्स मुझसे कभी भी मिल सकते है। इस दौरान उनसे बच्चों को लेकर खुली बात होती है। अधिकांश पेरेंट्स हमारी बात समझ जाते है, लेकिन कुछ पेरेंट्स ऐसे भी होते है जो एक तरफ़ा बच्चों का सपोर्ट करते है। ऐसे पेरेंट्स को समझाने के लिए मेहनत ज्यादा करना पड़ती है।

बच्चों को बाहरवीं तक मोबाइल सिर्फ पढाई के लिए जरुरत हो तो देना चाहिए। हमने स्कूल में मोबाइल लाने पर प्रतिबंध कर रखा है। बच्चों के बैग हम अचानक चैक करते है। यदि मोबाइल मिलता है, तो फिर हम पेरेंट्स को बुलाते है। मोबाइल बच्चों को व्यक्तिगत रूप से खरीदकर नहीं देना चाहिए। मोबाइल के कारण बच्चों के जीवन पर गहरा असर होता है, जिसके कई बार दुष्परिणाम भी सामने आते है।

संस्कृति से रूबरू कराते है बच्चों को

स्कूली बच्चों को संस्कार देने के साथ-साथ भारत की संस्कृति से भी रूबरू कराने के लिए ऐसी जगह ले जाते है जहां वे कुछ सिख सके। सेल्फ डिफेन्स का कोर्स कंटीन्यू कराते है। केसर पर्वत ले जाकर पौधों के बारे में जानकारी दी जाती है। एक क्लास में लगभग 33 बच्चे से ज्यादा नहीं बैठाए जाते है, ताकि टीचर क्लास के सभी बच्चों पर पूरा ध्यान दे पाए। बच्चे यदि स्कूल का लीडर बनते है, तो मुझे सबसे ज्यादा ख़ुशी होती है।

पेरेंट्स घर पर दे ध्यान

स्कूल टाइम के अलावा बच्चे कहां जाते है? इस पर हम तो ध्यान नहीं दे सकते। घर पर तो पेरेंट्स को ही बच्चों का ध्यान रखना पड़ेगा। बच्चे बाहर कब जाते है? कब लौटते है? कौन सी पार्टी में गए? किसके साथ पार्टी में जा रहे है? क्या खा रहे है? इन सब बातों का ध्यान देने की जिम्मेदारी सिर्फ और सिर्फ पेरेंट्स की होती है। बच्चों को लाढ-प्यार की जरुरत होती है, लेकिन कुछ मामलों में सख्ती भी जरुरी है। सबसे अच्छा इंडियन फ़ूड होता है। वहीं खिलाने की आदत बच्चों को शुरुआत से ही डालना चाहिए। बच्चों में मानवता का भाव भी होना चाहिए। फ्रेंड्स सर्कल बच्चों का कैसा है इस बात की निगरानी रखना भी जरुरी है।

कक्षा 9 वीं से पेरेंट्स को अपने बच्चों की बेड हेबिट्स पर लगातार निगरानी करना चाहिए। मेरी हार्दिक इच्छा रहती है कि हमारे स्कूल के बच्चे पूरी दुनिया में हो। मैं जहां भी जाऊ मुझे अपने स्कूल के बच्चे जरूर मिलना चाहिए। कई बच्चे मुझसे पढाई पूरी करने के कई साल बाद भी मिलने आते है। अच्छा लगता है मेरे साथ साथ स्कूल के लगभग 250 टीचर्स बच्चों से मोहब्बत करते है। उन्हें अपना बच्चा समझकर परिवार जैसा वातावरण देने की कोशिश करते है।

जानिए एडवांस्ड एकेडमी के बारे में..

इन्दौर सस्कृति, ज्ञान, व्यापार, परंपराओं का शहर है। जीवन को समृद्ध साकार, प्रफुल्लित बनाने के लिए ज्ञान की गंगा का सर्वत्र प्रवाहित होना अवश्यंभावी है, जिससे मनुष्य समस्त गुणों से परिपूर्ण होकर जीवन के इंद्रधनुषी रगों को जीवन में समाहित करता है। ज्ञान का क्षेत्र विस्तृत होने से विश्व में अनूठे रंग देखने को मिलते है, सभी की यही अभिलाषा होती है कि वे कुछ ऐसा करें कि जीवन में उल्लास, उमंग और उत्साह के पल यादगार बन जाएँ।

मनुष्य जीवन में शांति और जागृति के लिए धर्म एवं आध्यात्म का विशेष महत्व है। इसके लिए ज्ञानरूपी प्रकाश का होना जरूरी है। अपने अंतर्मन से ज्ञानरूपी प्रकाश का दीप प्रज्ज्वलित करना। जिसकी वजह से नकारात्मक ऊर्जा को दूर करके सकारात्मक ऊर्जा का संचार ज्ञान से ही होता है। इसी ज्ञानरूपी स्त्रोत के तेजपुंज रूपी प्रकाश को चहुओर प्रसारित करने का प्रयास किया गया है।

शैक्षणिक क्षेत्र में समाज तथा देश को विकास की ओर बढ़ाने का बीड़ा हमारे विद्यालय के निदेशक अनिल कमार राय ने उठाया और नये युग का आरंभ किया। एडवांस्ड एकेडमी की नींव सन् 2002 में रखी गई। शुरुआती दौर में विद्यालय में 80 विद्यार्थी थे। अपने भगीरथी प्रयासों से अनिल कुमार राव ने असंख्य विकासशील परिवर्तन किए। जिसके कारण विद्यार्थियों की संख्या में दिन- दूनी-रात-चौगुनी तरक्की होने लगी। हमारा विद्यालय निदेशक जी की कर्मठता, सजगता, जुझारू व्यक्तिमत्व, उनकी नवनिर्माण की भावना से एक भव्य-दिव्य, ओजस्वी विद्यालय को शिखर तक पहुंचाने का अथक प्रयास है।

एडवांस्ड एकेडमी की डायरेक्टर डॉ. सविता राय भी विद्यालय की सफलता में अपना महत्वपूर्ण योगदान सदा ही प्रदान करती हैं। उनके जीवन का एकमात्र उद्देश्य यही है कि वे इन विद्यार्थियों में शिक्षा के जरिए संस्कारों का बीजारोपण करें तथा अपने विद्यार्थियों को दृढसंकल्पित बनाएँ। इस जीवन की घुुड़दौड़ में हमारे विद्यार्थी अपने आपको विशिष्ट बनाते हुए अपनी मंजिल खुद तय करें। विद्यार्थियों के लिए सदा उनका यही विचार रहता है कि खुद को कमजोर कभी मत समझो, आप सभी में असिमित प्रतिभा की शक्ति है। उनमे पहचानो और आगे बढ़ते रहो।

विद्यालय को सुचारू रूप से कार्यान्वित करने के लिए इन मुख्य आधारस्तंभों की आवश्यकता होती है। जैसे-विद्यालय की प्रबंधन समिति, प्रधानाचार्या, अध्यापक मंडल, विद्यार्थी, अन्य सहायक की जिनके सहारे विद्यालय नियमबद्ध तरीके से कार्य करता है। एडवांस्ड एकेडमी के यह समस्त स्तंभ मजबूत हैं जो अपनी कार्यकुशलता से शत-प्रतिशत परिणाम देने में सक्षम है।

हमारा विद्यालय समस्त सुविधाओं से युक्त है जैसे- संसाधन कक्ष, प्रयोगशाला, पुस्तकालय, खेल परिसर आधुनिक संसाधन, है पाठशाला जो आज के समय की जरूरत है। इन सभी सुविधाओं की वजह से तथा शिक्षा के नवनवीन आयामों के उपयोग से विद्यार्थियों की संख्या वर्तमान समय में 3000 से अधिक हो चुकी है। समस्त विधाओं द्वारा विद्यार्थियों का बहुमुखी विकास होता जा रहा है।

इतना ही नहीं विद्यार्थियों के लिए भोजनालय की व्यवस्था भी की गई है ताकि वे भोजन रुचिपूर्वक ग्रहण कर सके। वे भारतीय पौष्टिक तथा स्वादिष्ट भोजन आनंदपूर्वक ग्रहण कर सके। विद्यार्थियों की समस्त स्पर्धात्मक गतिविधियों जब विद्यालय में सामुहिक रूप से करवाई जाती हैं तो बैठक व्यवस्था के लिए आधुनिक तकनीक से सुसज्जित ऑडिटोरियम है जिसमे 1000 विद्यार्थी एक साथ बैठ सकते हैं।

समय-समय पर विविध स्पर्धात्मक गतिविधियों का आयोजन किया जाता है। अंतरविद्यालयीन समस्त प्रतियोगिताओं में हमारे विद्यार्थी विजयी होते हैं। प्रत्येक वर्ष सीबीएसई द्वारा आयोजित बालविज्ञान अंतरविद्यालयीन प्रतियोगिता में हमारे बुवा वैज्ञानिक अपनी बौद्धिक क्षमता को सिद्ध कर एडवांस्ड एकेडमी का नाम रोशन करते हैं।

शैक्षणिक क्षेत्र में विद्यार्थियों में विद्याथियों को छात्रवृत्ति प्रदान कर उनका उत्साहवर्धन किया जाता है। एजुुकेशनल टूर का आयोजन किया जाता है ताकि प्रत्यक्ष रूप से विद्यार्थी ज्ञान की रसानुभूति की प्राप्ति कर सके। मनोरंजन के माध्यम से सीखना शिक्षा का सबसे अच्छा माध्यम है।

विद्यार्थियों की सृजनात्मकता तथा सुप्त गुणों को मुखर करने के लिए वार्षिक महोत्सव बड़ी जोश-खरोश के साथ आयोजित किया जाता है। एडवांस्ड एकेडमी के विद्यार्थियों में केवल इन्दौर ही नहीं बल्कि सिर पर भी विद्यालय का परचम लहराया है। हर क्षेत्र में हमारे इन युवा कर्णधारों ने अपनी बुद्धिमत्ता, इच्छाशक्ति, मंकत्य, एकला आदि मौद्रिक शक्तियों के जीए परिवार, विद्यालय, समाज, प्रदेश तथा राष्ट्र का नाम रोशन किया है। हर क्षेत्र में राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भी विद्यालय की विजय पताका लहराई है। हमसे अपने यह विद्यार्थी कमाल तो हैं ही परंतु इनके गुरू भी कम नहीं हैं।

एडवांस्ड एकेडमी के अधिकतम अध्यापकों को उनकी उपलब्धियों के लिए विभिन्न उपाधियों द्वारा अलंकृत किया जाता है। नई शिक्षा नीति से अवगत कराने हेतु समय-समय पर अध्यापक वर्ग को प्रशिक्षित किया जाता है। उनके लिए विशिष्ट कार्यशाला आयोजित की जाती है। जिसमें शिक्षक नवीन तकनीक का प्रयोग कर विद्यार्थियों के ज्ञान में वृद्धि करते हैं। यह है हमारे विद्यालय एडवांस्ड एकेडमी की स्वर्णिम यात्रा को सतत् प्रगति पथ पर अग्रसर हो रही है तथा आने वाली कुक पीढ़ी का मार्गदर्शन कर नवीन भारत का निर्माण कर रही है।

हमारे विद्यालय का उदघोष है-

‘‘ज्ञानाय‍ दानाय‍ च‍ रक्षणाय:’’
अर्थात –‘विद्या’ ज्ञान‍ के ‍लिए , ‘धन’ दान‍ के ‍लिए‍‍ और‍‍ ‘शक्ति’ कमजोर‍ लोगों की रक्षा के लिए होती है.

*रिपोर्ट By : शिवानी राठौर*