दिन-ब-दिन नगर निगम से जुड़े घोटाले सामने आ रहे है। नगर निगम अधिकारियों, नेताओं और ठेकेदारों की मिलीभगत से फर्जी बिल बनाने और बिना काम किए भुगतान करने के मामले की जांच में हर दिन नए खुलासे हो रहे हैं। ऐसे में हर कोई एक ही सवाल पूछ रहा है कि जिस काम के लिए पांच कंपनियों के अधिकारियों ने बिना काम किए ही 28 करोड़ रुपये का बिल जारी कर दिया, वह काम कब और किसने किया।
कब टेंडर हुए और कब वर्क ऑर्डर जारी हुए, इसकी जांच की चर्चा शुरू हो गई है। चल रही जांच में 70 से ज्यादा फर्जी भुगतान फाइलें उजागर होने की आशंका है। इससे नगर निगम में फर्जी बिल भुगतान घोटाला एक करोड़ रुपये के पार तक पहुंच सकता है।
70 से ज्यादा फाइलें जब्त की गई:
अब तक की जांच में किए गए कार्यों की जांच फाइल शामिल नहीं की गई है। इससे निगम की कार्यप्रणाली पर सवालिया निशान खड़े हो रहे हैं। कहा जा रहा है कि फर्जीवाड़े के खिलाफ कार्रवाई शुरू हो गई है, लेकिन असल में यह काम कौन करेगा और कराएगा, इसका खुलासा होना जरूरी है। सूत्रों की मानें तो मामले में नगर आयुक्त शिवम वर्मा द्वारा गठित जांच कमेटी की जांच जारी है। कमेटी की जांच में फर्जी बिल भुगतान की 70 से ज्यादा फाइलें जब्त की गई हैं। इससे कहा जा रहा है कि निगम में सवा करोड़ रुपये से अधिक का घोटाला हुआ है। आए दिन हो रहे नए-नए खुलासों से निगम की साख खराब होने लगी है।
जानकारी छिपा रहे अधिकारी:
फर्जी कंपनियों के कर्ताधर्ताओं द्वारा भुगतान की पूरी फाइल मौजूद है। माना जा रहा है कि निगम अधिकारियों की फर्जी बिल कंपनियों से मिलीभगत है। इसके चलते पूरी फाइल में पुराने दस्तावेजों का इस्तेमाल कर अधिकारियों को गुमराह करने की कोशिश की गई। नगर निगम में ड्रेनेज विभाग, लोक निर्माण विभाग और उद्यान विभाग के साथ ही कई अन्य विभागों में भी बिना कोई काम किए फर्जी बिलों का भुगतान किया गया है, जिसके चलते अधिकारी ऐसे मामलों को छुपाने में लग गए हैं।
अधिकारी भी है हिस्सेदार:
ठेकेदारों के बिल आसानी से पास हो जाते हैं, अन्यथा कमीशन को लेकर अफसरों से अनावश्यक विवाद के कारण कई काम करने वाले ठेकेदारों के बिलों की फाइलें विभाग से हिलती तक नहीं हैं। निगम सूत्रों की मानें तो नगर निगम अधिकारी टेंडर जारी कर सारी औपचारिकताएं निभाते हैं, जबकि हकीकत में वे खुद ही बड़े ठेकों में हिस्सेदार बन जाते हैं। इस कारण फिलहाल नगर निगम के उन ठेकेदारों की फाइलों का भुगतान अटका हुआ है, जिन्होंने नियमानुसार काम किया है।
अधिकारियों के खिलाफ दर्ज हुई FIR:
नगर निगम में 28 करोड़ रुपये के फर्जी बिल पकड़े जाने के मामले में पांच कंपनियों के अधिकारियों के खिलाफ पुलिस में एफआईआर दर्ज कराई गई है। इनमें दो अलग-अलग फर्मों ने राहुल बढ़ेरा और उनकी पत्नी के नाम पर भी बिल निकाले हैं। इसके चलते दोनों पति-पत्नी की तलाश जोरों से चल रही है। नगर निगम में बिना कोई काम किए फर्जी बिल लगाकर भुगतान लेने वाली पांच फर्में फर्जी हैं। ये फर्में सिर्फ कागजों पर मौजूद हैं, जबकि इनमें शामिल दो फर्मों के मालिक पति-पत्नी हैं। दस्तावेजों में दोनों का पता अलग-अलग है, लेकिन वे दो प्लॉट जोड़कर एक ही आलीशान मकान में रहते हैं।
पति-पत्नी आलिशान घर में:
पति-पत्नी के दोनों दफ्तर अलग-अलग पते 6 आशीष नगर और 12 आशीष नगर पर रजिस्टर्ड हैं, लेकिन जब हकीकत देखी गई तो वह एक ही आवास निकला। कालानी में प्लॉट काटते समय प्लॉट नंबर 6 सामने है और प्लॉट नंबर 12 उसके ठीक पीछे है। इस तरह बढ़ेरा दंपत्ति ने दोनों प्लॉट खरीद लिए, जिसका इस्तेमाल बाद में वे दो फर्जी कंपनियां चलाने के लिए करने लगे।
रोज नए-नए खुलासे हो रहे:
21 करोड़ रुपये का नया घोटाला सामने आया है। पुलिस ने इस मामले में एक और केस दर्ज कर लिया है। आज दो और मामले दर्ज हो सकते हैं। दर्ज मामले में तीन फरार इनामी ठेकेदारों को आरोपित बनाया गया है। 20 फाइलों से सामने आए 28 करोड़ रुपए के घोटाले में एमजी रोड पुलिस की जांच आगे बढ़ रही है। नए-नए खुलासे हो रहे हैं। 16 और फाइलों की जांच से यह खुलासा हुआ है।
हाल ही में नगर निगम के ड्रेनेज विभाग में 28 करोड़ रुपये का घोटाला सामने आया था. कंपनी फाउंडेशन कंस्ट्रक्शन (मो. साजिद), ग्रीन कंस्ट्रक्शन (मो. सिद्दीकी), किंग कंस्ट्रक्शन (मो. जाकिर), क्षितिज इंटरप्राइजेज (रेणु वडेरा) और जान्हवी इंटरप्राइजेज (राहुल वडेरा) के खिलाफ मामला दर्ज किया गया है, इनाम है रुपये का आरोपी की गिरफ्तारी पर 10,000 रु. . घटित। आर गिरफ्तारी वारंट जारी किया गया है. कुर्की की पूरी तैयारी है। संपत्तियों का पता लगा लिया गया है।