कौशल किशोर चतुर्वेदी
भोपाल: मध्यप्रदेश सरकार ने आखिर तबादलों के मानसून की बारिश को सात अगस्त तक बरसते रहने का आदेश जारी कर दिया है। इससे ट्रांसफर की चाहत लिए लाखों कर्मचारियों-अधिकारियों के दिल की धड़कनें नार्मल हो गई होंगी। चाह को जो कुछ दिनों की राह जो मिल गई है। एक ही जिले में ट्रांसफर के लिए प्रभारी मंत्रियों की मान-मनौव्वल करने की नई तरकीब निकलने की मोहलत मिल गई है तो एक जिले से दूसरे जिले में जाने के लिए भी कोशिश करने के लिए सात दिन का समय चैन की सांस लेने के लिए काफी है। संगठन के रास्ते मंजिल मिले तो भी ठीक है और सरकारी तंत्र के सहयोग से सफलता का मंत्र मिले तो और भी ज्यादा ठीक है। कहते हैं कि कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती। तो कोशिश करने वालों के लिए सात दिन जीत के लिए संघर्ष करना कितना सुखद है, इस खुशी को तो ट्रांसफर की चाह रखने वाले कर्मचारी-अधिकारी ही बयां कर सकते हैं। इस आदेश के बाद सरकार की संवेदनशीलता के वह कितने कायल हुए होंगे, जितना एरियर मिलने की खुशी भी नहीं हुई होगी।
वैसे अब तक चिट्ठियां लिखवाकर मंत्री जी के दफ्तरों तक पहुंच ही गई होंगी। पर आवेदन ज्यादा और गुंजाइश कम होने के चलते कॉम्पिटिशन में मेरिट में आने का संघर्ष चल रहा होगा। इसमें भी वाइल्ड कार्ड एंट्री वालों ने खासा हैरान किया होगा। तो अब एक बार फिर जोर-आजमाइश और मेरिट में जगह बनाने के लिए सात दिन की लॉटरी खुल गई है। डूबते को तिनके का सहारा की तर्ज पर अब ट्रांसफर की चाह रखने वाले अधिकारी-कर्मचारी उस तिनके की तलाश में जुट जाएं जो उन्हें डूबने से बचाकर नैया पार लगाने में मददगार बन सके। सात दिन में संसार की रचना हो सकती है तो फिर मनमाफिक जगह पर ट्रांसफर करवाने में सफलता क्यों नहीं मिल सकती। निराशा के गर्त में डूबे महानुभावों एक बार फिर आशाओं के समुंदर में डुबकी लगाने के लिए कमर कसकर दौड़ लगा है। यही सोचकर कि सफलता जरूर मिलेगी।
इधर सरकार सबकी भलाई में लगी है तो दूसरी तरफ विपक्ष है कि तंज कस रहा है कि तबादला महोत्सव की तारीख बढ़ गई है। अब ठीक उसी तरह के आरोप विपक्ष लगा रहा है जिस तरह के आरोप विपक्ष में रहते कभी सरकार में बैठे लोग लगाते थे। वह पदों की नीलामी की होड़ लगने की बात कर रहे हैं।कह रहे हैं कि मंत्रियों और अफसरों में तबादला उद्योग-प्लस को लेकर सहमति नहीं बन पाने से तबादला महोत्सव की तारीख 7अगस्त तक बढ़ाई गई है।कई मंत्री गण गुप्त स्थानों पर बैठकर इस महोत्सव को सिद्ध करने में लगे हैं। तबादला उद्योग में दलालों की सक्रिय भूमिका देखकर नकली दलालों ने भी फर्जी पीए बनकर चांदी काट ली है…वगैरह, वगैरह।
यह आरोप-प्रत्यारोप कोई नई बात नहीं हैं। पक्ष-विपक्ष की इस डॉयलाग डिलीवरी पर टाइम फिजूलखर्ची की जरूरत नहीं है। जो जितना जोर लगा पाए सो लगा ले। अपनी विनती सही जगह पर पहुंचा ले। सही ठिए पर मत्था टेक लो और मनौती मना लो। आखिर एक बार सही ठिकाना मिल गया तो तीन साल की राहत तो मान ही लो। सात दिन के लिए सरकार का शुक्रिया मानकर अपनी मंजिल पाने में जुटने में ही भलाई है। अब मंजिल मिले या नहीं पर यह मलाल तो नहीं रहेगा कि थोडा़ समय मिल जाता तो हम जीत जाते।