राहुल गांधी की सांसदी सुप्रीम कोर्ट आदेश के चलते बहाल हो गई और देश भर के कांग्रेसी गाल बजाते हुए इसे न्याय की जीत मान उछल रहें है। मगर इसके पीछे के छुपे असल एजेंडे को भी जानने-समझने की जरूरत है। दरअसल 2024 का आम चुनाव कई मायनों में अत्यंत महत्वपूर्ण है। मोदी-शाह को रोकने के लिए विपक्षी गठबंधन INDIA बनाया गया है, जिसे असफल करने के मोदी सरकार के तमाम प्रयासों में राहुल को सुर्खियों में रखना भी एक बडी राजनीतिक रणनीति है।
भाजपा- संघ और उसकी सहयोगी संस्थाओं में शामिल इनकम टैक्स, सीबीआई और ईडी तो अभी विधानसभा और फिर लोकसभा चुनाव में अपना महत्वपूर्ण रोल अदा करेंगे ही, वहीं 90 फीसदी गोद में बैठा मीडिया भी हिज मास्टर ऑफ वॉइस तर्ज पर प्रायोजित रिकॉर्ड बजाएगा और इन सब के साथ मैदानी हकीक़त ये है कि, भाजपा के लिए राहुल ही सबसे आसान चुनावी चुनौती हैं। स्मृति ईरानी सहित उसके कई बड़े नेता यह बात सार्वजनिक रूप से बोल भी चुके हैं कि भाजपा की सबसे बड़ी एसेट यानी संपत्ति राहुल हैं, और यहीं कारण है कि राहुल को पप्पू साबित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी गई।
राहुल की संसद सदस्यता खत्म करने का खेल भी उसी रणनीति का एक अहम हिस्सा है। भाजपा खेमा खुद चाहता रहा कि राहुल की संसद से रवानगी और फिर वापसी की जोरदार पब्लिसिटी हो और देश भर के कांग्रेसी गला फाड़ हल्ला मचाएं। चूंकि कोर्ट द्वारा दिए गए आदेश प्रथम दृष्ट्या ही त्रुटिपूर्ण थे और न्यायविदों ने भी स्पष्ट मान लिया था कि सुप्रीम कोर्ट से राहुल को राहत मिलना तय है और हुआ भी वही टीम भाजपा की रणनीति काम कर गई और भोंपू बने सारे न्यूज़ चैनल बढ़- चढ़कर राहुल को फुटेज देने लगे।
सत्तारुढ़ दल ,उसके सहयोगी संगठनों के अलावा पूरा आईटी सेल रात-दिन राहुल को फोकस में रखता ही इसीलिए है ताकि वे विपक्ष के सबसे बड़े और प्रमुख चेहरे के रूप में नजर आते रहें और कांग्रेसियों में ये मुगालता बरकरार रहें कि राहुल ही मोदी का मुकाबला कर सकते हैं। भाजपा के रणनीतिकार यही चाहते हैं कि 2024 में मोदी विरुद्ध राहुल के बीच ही चुनावी जंग हो, ना कि एनडीए विरुद्ध इंडिया रहे। यही कारण है कि राहुल की सांसदी वाले एपिसोड को योजनाबद्ध तरीके से अंजाम दिया गया और इसका जमकर प्रचार – प्रसार भी करवाया गया ताकि विपक्ष के साथ कांग्रेसी भी इस जाल में फंस जाएं और मोदी-शाह को एक बार फिर सबसे आसान शिकार के रुप में राहुल बाबा मिल जाएं , क्योंकि विपक्षी गठबंधन की तुलना में राहुल को सामने कर चुनावी जंग जीतना ज्यादा आसान रहेगा अब ये सच्चाई राहुल खुद समझे और 2024 के रण में अपनी बजाए विपक्षी गठबंधन INDIA को मैदान सौंप एक और भारत जोड़ो यात्रा पर निकल पड़े।