अजय बोकिल
कोरोना महामारी की कथित रामबाण दवा ‘दिव्य कोरोनिल टैबलेट’ पर रोक लगाकर मोदी सरकार ने बाबा रामदेव को तगड़ा झटका दे दिया है। इससे भड़के बाबा ने ट्वीट किया कि आयुर्वेद का विरोध एवं नफरत करने वालों के लिए यह घोर निराशा की खबर है। इसके पहले केन्द्रीय आयुष मंत्री श्रीपाद नाइक ने कहा था कि नियमानुसार किसी भी आयुर्वेदिक दवा को जांच के लिए आयुष मंत्रालय में देना होता है। इसे परखने के बाद दवा के प्रयोग की अनुमति दी जाती है। सरकार ने बाबा की दवा के प्रचार-प्रसार पर भी रोक लगा दी। इस बीच यह बात भी सामने आई कि कोरोना दवा निर्माता ‘पतंजलि आयुर्वेद’ ने उत्तराखंड सरकार से इम्युनिटी बूस्टर ( प्रतिरोध वर्द्धक) और सर्दी-खांसी की दवा बनाने का लायसेंस लिया था, लेकिन बना दी कोरोना महामारी की दवा। अगर ऐसा है तो यह सरकार की आंखों में धूल झोंकने जैसा है। इसी कारण उत्तराखंड की आयुर्वेद ड्रग्स लाइसेंस अथॉरिटी ने भी बाबा को नोटिस थमा दिया है। उधर बाबा के खिलाफ जयपुर के गांधीनगर थाने में मामला दर्ज हो गया है। फरियादी डॉ. संजीव गुप्ता ने रिपोर्ट में कहा कि बाबा रामदेव कोरोना की दवा बनाने का दावा कर लोगों को गुमराह कर रहे हैं।
गलवान घाटी प्रकरण को लेकर भारत और चीन के बीच भारी तनाव के बीच तीन दिन पहले जब बाबा रामदेव ने देश में कोरोना इलाज की आयुर्वेदिक दवा ‘कोरोनिल’ शर्तिया बताकर लांच की तो लोगों में आश्चर्य और गर्व का भाव एक साथ उभरा। बाबा के भक्तों ने इसमे स्वदेशी और आयुर्वेद की ताकत देखी तो ‘दवा को दवा’ मानने वालों ने हैरत जताई, क्योंकि दुनिया भर में किसी भी पैथी में कोरोना की कोई गारंटीड दवा अभी तक नहीं बनी है। न ही किसी दवा को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने मान्यता दी है। लेकिन भारत में इस आयुर्वेदिक दवा को लेकर बाबा रामदेव ने दावा किया कि इस गोली को खाने से कोरोना मरीज 5 से 14 दिनों में ठीक हो जाता है। कहा गया कि इस दवा से सात दिन में कोरोना मरीज सौ फीसदी ठीक हो चुके हैं।
इस ‘दिव्य लांचिंग’ से माना गया कि दवा को भारत सरकार ने हरी झंडी दे दी है। लेकिन लांचिंग के दूसरे ही दिन केन्द्रीय आयुष मंत्रालय ने यह कहकर पल्ला झाड़ा कि उसकी जानकारी में ऐसी कोई दवा नहीं है। उसने ‘दिव्य कोरोना किट’ के प्रचार-प्रसार पर भी पाबंदी लगा दी। मंत्रालय ने साफ किया कि कंपनी पहले इस दवा के परीक्षण व अन्य जानकारियां उसके साथ साझा करे। उसने दवा निर्माता कंपनी पतंजलि से पूछा कि कोरोनिल दवा पर रिसर्च कहां, कब और किसकी अनुमति से हुई? क्योंकि नियमानुसार दवा को पहले आयुष मंत्रालय में जांच के लिए दिया जाना चाहिए। जवाब में पंतजलि ने 11 पेज का जवाब सरकार को भेजा कि दवा पतंजलि रिसर्च इंस्टीट्यूट और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस, जयपुर ने मिलकर बनाई है। इसका उत्पादन दिव्य फार्मेसी हरिद्वार और पतंजलि आयुर्वेद लि. कर रहे हैं। लेकिन जिस हरिद्वार में यह दवा बन रही है, उससे उत्तराखंड सरकार अनभिज्ञ थी।
उत्तराखंड आयुर्वेदिक ड्रग लाइसेंस अथॉरिटी के उपनिदेशक यतेंद्र सिंह रावत ने खुलासा किया कि बाबा की कंपनी पतंजलि को लायसेंस कोविड-19 की दवा के लिए नहीं बल्कि इम्युनिटी बूस्टर और खांसी-जुकाम की दवा बनाने के लिए जारी किया गया था। बिना केन्द्रीय आयुष मंत्रालय से मंजूरी के देश में कोई भी आयुर्वेदिक दवा न बेची जा सकती है और न ही उसका प्रचार जा सकता है। हैरानी की बात यह भी है कि बाबा की कंपनी को आवेदन के दो दिन बाद लायसेंस भी मिल गया और 10 दिन में कोरोना की दवा बनकर लांच भी हो गई। यह तो ‘चमत्कार’ की श्रेणी में आता है।
तो क्या बाबा और उनकी कंपनी पतंजलि ने केन्द्र और राज्य सरकार दोनो को अंधेरे में रखा या फिर ये दोनो सरकारें अपना चेहरा बचाने के लिए बाबा को नोटिस जारी कर रही हैं. क्योंकि भाजपा सरकारों में बाबा का रसूख कितना है, सबको पता है। योग गुरू बाबा की कारोबारी तरक्की के पीछे असली ताकत उनके सहयोगी बालकृष्ण हैं। बाबा तो सिर्फ एक चेहरा हैं। योगाचार्य के रूप में बाबा की लोकप्रियता, ऐलोपैथी बनाम आयुर्वेदिक द्वंद्व और स्वदेशी के मुलम्मे के बीच उन्होंने 16 साल पहले ‘पंतजलि आयुर्वेद’ नामक कंपनी खड़ी की। इस कंपनी का कारोबार बढ़कर अब साढ़े 9 हजार करोड़ का हो गया है।
दो साल पहले कंपनी का मुनाफा ही 590 करोड़ का था। पंतजलि आयुर्वेद 250 आयुर्वेदिक जड़ी बूटी से बनी दवाइयां, 45 प्रकार के सौंदर्य प्रसाधन तथा 30 तरह के फूड प्राॅडक्ट्स बनाती है। देश भर में इसके 5 हजार से अधिक रिटेल स्टोर्स हैं। खास बात यह है कि इस विशाल कंपनी में 98.6 फीसदी हिस्सेदारी अकेले आचार्य बालकृष्ण की है। कोरोनिल दवा की लांचिंग पर बालकृष्ण ने ट्वीट किया था कि यह (मोदी) सरकार आयुर्वेद को प्रोत्साहन व गौरव देने वाली है। जो ‘कम्युनिकेशन गैप’ था, वह ‘दूर’ हो गया है। रेंडमाइज्ड प्लेसबो कंट्रोल्ड क्लीनिकल ट्रायल्स के सभी स्टैंडर्ड पैरामीटर्स को शत-प्रतिशत पूरा किया गया है। इसकी पूरी जानकारी हमने आयुष मंत्रालय को दे दी है।’ इसका अर्थ यह हुआ कि दवा लांचिंग से पहले कंपनी ने सारे जरूरी ‘अप्रूवल’ ले लिए थे। यदि यह सही है तो फिर आयुष मंत्रालय और उत्तराखंड ड्रग कंट्रोलर ने बाबा को नोटिस क्यों जारी किए? क्यों इस दवा पर रोक लगाई? क्या इसके पीछे दवा लाॅबी का दबाव है या सरकार को अपनी छवि की चिंता है या फिर सरकार यह संदेश देना चाहती है कि कोरोना की दवा के नाम पर कोई अंधेर वह नहीं चलने दे सकती।
यहां उल्लेखनीय है कि इसके पहले भारत में दो और कंपनियों ने कोरोना वायरस की एलोपैथिक दवाएं यह कहकर लांच की कि उससे कोरोना ठीक होता है। ये हैं ‘ग्लेनमार्क फार्मास्युटिकल्स’ द्वारा निर्मित कोविड 19 की एंटीवायरल दवा फेविपिराविर। कंपनी ने इसे ‘फैबिफ्लू’ के नाम से लांच किया। कंपनी के मुताबिक उसे डीजीसीआई (ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ़ इंडिया ) से इस दवा की मार्केटिंग की सशर्त अनुमति मिली है।
‘सशर्त’ से तात्पर्य इस दवा का केवल इमर्जेंसी में और सीमित इस्तेमाल से है। इसके पूर्व एक और फ़ार्मा कंपनी हेटेरो ने भी अपनी दवा ‘कोविफाॅर’ को लेकर ऐसा ही दावा किया था। दूसरी तरफ भारत सहित दुनिया के कई देशों में कोरोना टीका ( वैक्सीन ) तैयार करने पर काम चल रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक ऐसे 120 वैक्सीन अभी परीक्षण के शुरूआती दौर में हैं, जबकि 13 वैक्सीन का क्लीनिकल ट्रायल हो रहा है। किसी भी पैथी की किसी भी दवा को अधिकृत मंजूरी मिलने, उसके मनुष्य पर ट्रायल में खरा उतरने तथा उसे सरकारी मंजूरी मिलने की जटिल प्रक्रिया है। बगैर इसे पूरा किए कोई दवा बेची नहीं जा सकती। क्योंकि यह पूरी मनुष्य जाति के स्वास्थ का सवाल है। आयुर्वेद और स्वदेशी भी इसका अपवाद नहीं हैं। आयुर्वेद का सच्चा समर्थक भी नहीं कह सकता कि नियम-प्रक्रियाओं के खरल में कुटे बिना कोई दवा रोगी को खिलाई जाए। क्योंकि दावे और प्रामाणिकता में बुनियादी फर्क है और मौके का आर्थिक लाभ उठाना अलग बात। बाजार में कई भारतीय आयुर्वेदिक दवा कंपनियों के ‘इम्युनिटी बूस्टर’ बिक रहे हैं। बूस्टर केवल शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाते हैं, मर्ज का इलाज नहीं करते। कोरोना इससे खौफ खा जाए तो बल्ले-बल्ले। और अगर बाबा इम्युनिटी बूस्टर ही बेच रहे हैं तो इसे ‘कोरोना की दवा’ किस आधार पर बताया जा रहा है?
इस पूरे दवा प्रकरण के चिकित्सकीय, भावनात्मक, तकनीकी, व्यावसायिक और कानूनी पक्ष को अलग रखें तो अंतर्निहित संदेश यही है कि बाबा रामदेव और भाजपा के रिश्ते अब ‘मधुर’ नहीं रह गए हैं। पहले भाजपा ने बाबा की छवि का पूरा राजनीतिक लाभ उठाया, लेकिन अब लगता है कि बाबा मोदी सरकार से अपनी अंतरंगता का उस हद तक लाभ फायदा उठाने की स्थिति में पहुंच गए थे, जहां खुद सरकार की विश्वसनीयता की दांव पर लग सकती थी। ऐसा हो, इसके पहले ही सरकार ने बाबा को प्रतिबंध की कड़वी गोली खिला दी। ‘क्लोरोनिल’ तो बस बहाना है।