इंदौर। शहर के प्रमुख मीडिया संस्थानों में छपी खबरों से शहरभर के पालकों में इन दिनों असमंजस की स्थिति बन गई है। कारण है कि अखबारों में गलतफहमी के चलते स्कूल प्रबंधको द्वारा मांगी गई मांगो को शासन का आदेश बताते हुए छाप दिया गया है, जिसके चलते स्कूल प्रबंधक अब पालकों पर गलत तरह से दबाव बनाने लगे हैं। एसे में जरुरी है कि पालकों तक सही जानकारी पहुंचाई जाए।
दरअसल स्कूल प्रबंधक अपनी कई मांगो को लेकर प्रदेश सरकार के पास पहुंचे और उन्होंने ज्ञापन सौंपते हुए अपनी मांगे रखी। जिसमें प्रमुख रुप से पालकों द्वारा कोर्ट के निर्देश के बाद भी शिक्षण शुल्क नहीं देने की बात कही गई थी। स्कूल प्रबंधको ने शिक्षण शुल्क नहीं मिलने से स्टाॅफ के वेतन व अन्य खर्चे निकालने में खुद को असक्षम बताया। इधर उन्होंने अपनी एक प्रेस रिलीज में मांगो को ही शासन का आदेश बताया जिससे कुछ अखबारों में एक पक्षीय खबरें चली गई जिससे प्रदेश के लाखों पालक असमंजस में है। एसे में आदेश की समीक्षा करते हुए जागृत पालक संघ मध्यप्रदेश के अध्यक्ष एडव्होकेट चंचल गुप्ता ने बताया कि निजी स्कूल अभिभावकों से एक मुश्त या किश्तों में शिक्षण शुल्क लेने के लिए स्वतंत्र होंगे। साथ ही शासन ने इस संबंध में भी आदेश जारी किया कि जब से स्कूल नियमित लगे हैं उन कक्षाओं के विदयार्थियों से जनवरी से स्कूल लगने तक की शिक्षण शुल्क के अलावा अतिरिक्त संचालित गतिविधियों की फीस भी ली जा सकेंगी। लेकिन आदेश में एसा कहीं नहीं लिखा है कि जो कक्षाएं नियमित नहीं लगी उन विद्यार्थियों से भी शिक्षण शुल्क के अलावा कोई शुल्क लिया जाए। साथ ही पुरे आदेश में यह भी कहीं नहीं लिखा है कि जिन बच्चों के परिजन किसी कारणवश फीस न भर पाएं तो उनके नाम काट दिए जाएं या उन्हें प्रमोट नहीं किया जाए। गौरतलब हे कि शासन पूर्व में जारी अपने आदेश में स्पष्ट कर चुका है कि जिन बच्चों के अभिभावक फीस नहीं भर पाएंगे स्कूल प्रबंधक उनके नाम नहीं काटेंगे और उन्हें भी शिक्षा से वंचित नहीं किया जाएगा।