Site icon Ghamasan News

कविता: प्रेम

prem

प्रेम में पड़कर मसरूफ़ सा है,
प्रेमी इसमें कुछ रूह सा है
प्रेम कभी जताता नहीं,
अफ़सोस करना सीखाता नहीं।

प्रेम के किस्से कई हैं,
बातें कई ,
कितने ही हैं अरमान इसके,
अधूरी ख्वाहिशें भी कई।

प्रेम अगाध, निस्वार्थ, सादगी से भरा,
मां की ममता ओढ़े खड़ा
प्रेम में टूट कर गिरता भी है,
फिर दिल प्रेम ही से संभलता भी है।

प्रेम में जात पात ऊंच नीच नहीं,
प्रेम में किसी का भेद नहीं,
प्रेम का संसार अलग सा है,
इसमें बस प्रेमी ही बसता है।

प्रेम में प्रपंच, पराकाष्ठा नहीं,
प्रेम की कोई एक परिभाषा नहीं
सबसे परे, सबसे इतर है ये,
खुशनुमा सा, भीतर है ये।

कवियित्री
सुरभि नोगजा
भोपाल

Exit mobile version