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अब क्या बाक़ी रह गया ?

राजेश बादल
तो सियासत की तरह पत्रकार बिरादरी भी बेशर्मी की हद पार करने लगी । यह सिलसिला कहां जाकर रुकेगा ,कोई नही जानता । पर यह तय है कि हम लोगों की जमात में अब ऐसे पेशेवर भी दाख़िल हो चुके हैं ,जिन्हें चौराहों पर अपने पीटे जाने का भी कोई भय नहीं रहा है । एक बार सार्वजनिक रूप से अस्मत लुट जाए फिर क्या रह जाता है ? ज़िंदगी में यश की पूँजी बार बार नहीं कमाई जा सकती।

बीते सप्ताह समाचार कवरेज की तीन वारदातों ने झकझोर दिया । एक चैनल पर निहायत ही गैर पेशेवर अंदाज़ में एक उत्साही एंकर ने खुल्लमखुल्ला अश्लील और अमर्यादित शब्द का उपयोग शो के सीधे प्रसारण में किया ।उसने आपत्तिजनक भाषा के बाद रुकने और माफी माँगने की ज़रूरत भी नहीं समझी। दूसरे चैनल पर एक वरिष्ठ एंकर को महात्मा गांधी के पूरा नाम का सही उच्चारण करने में एड़ी चोटी का ज़ोर लगाना पड़ा और उस दौरान भी एक बार सही नाम नहीं पढ़ पाने के लिए उसे दर्शकों से माफ़ी मांगनी पड़ी । तीसरी घटना पूर्व प्रधानमंत्री डॉक्टर मन मोहन सिंह के साथ बेहद अपमानजनक और शिष्टाचार के खिलाफ़ बरताव की है ।

एक मंत्री उन्हें देखने गया और अपने साथ एक फोटोग्राफर को ले गया। पूर्व प्रधानमंत्री ख़ुद उस समय फोटोग्राफर को रोकने की स्थिति में नहीं थे। वे संभवतया दवा के असर के चलते नींद में थे। लेकिन उनके परिवार जनों ने उस छायाकार को कई बार रोका। इसके बावजूद वह फोटोग्राफर नहीं रुका और मर्यादा की सारी सीमाएं लांघते हुए तस्वीरें लेता रहा ।मंत्री जी ने भी उसे रोकने की ज़रूरत नहीं समझी ।बात यहीं समाप्त नहीं हो जाती। वे तस्वीरें मीडिया में जारी कर दी गईं। बाद में परिवार के लोगों ने इस पर गंभीर एतराज़ किया। इसके बावजूद पत्रकारिता के किसी भी हिस्से से उस छायाकार की निंदा के स्वर नहीं सुनाई दिए।

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