निरुक्त भार्गव
आंकड़ों की बाजीगरी में जो मंत्रालय सबसे अहम् माने जाते हैं उन सभी के काबीना मंत्री हैं, वे! गौर से पढ़िए: वित्त, वाणिज्यिक कर, योजना, आर्थिक एवं सांख्यिकी विभाग. मजे की बात है कि उनका विधिवत एक ऐसे जिले में बतौर ‘पालक मंत्री’ मनोनयन हुआ है, जहां के जादूगरी के किस्से पूरी दुनिया में रस ले-लेकर सुने और सुनाए जाते हैं! वैसे मौका तो उन्हें दूसरी बार मिला है, लेकिन अब बात अलहदा है…
जी हां, बात जगदीश देवड़ा की हो रही है, जिन्हें जून 2021 ढलते-ढलते उज्जैन जिले का प्रभारी मंत्री बनाया गया. वे 2005 में भी इसी जिले के प्रभारी मंत्री रह चुके हैं, हालांकि तब वे गृह और परिवहन मंत्री का दायित्व देख रहे थे और शिवराज सिंह चौहान की तूती समूचे मध्यप्रदेश में बोलती थी. 2018 में सत्ता हाथ से फिसल जाने के बाद भी शिवराज जी येन-केन-प्रकारेण मुख्यमंत्री बन गए और ज्योतिरादित्य सिंधिया के कृपा-पात्र विधायकों और कांग्रेस के कतिपय लालची विधायकों के सहयोग से एक तरह से मिली-जुली सरकार चला रहे हैं, पर उनकी निगाहों में देवड़ा आज भी चढ़े हुए हैं. एक वक़्त ऐसा भी आया था जब बहुचर्चित ‘व्यापमं काण्ड’ में परिवहन विभाग में हुए कथित भर्ती घोटाले के चक्कर में उन्हें भारी राजनीतिक नुकसान झेलना पड़ा, पर वे ग़म को पीते रहे!
जगदीश देवड़ा का दोबारा उज्जैन जिला प्रभारी मंत्री बनना भले ही एक साधारण घटना बताई जाए, पर असल में इसके बहुतेरे मायने हैं! बीजेपी संगठन (यानी आरएसएस) और स्वयं मुख्यमंत्री जी ने इस निर्णय तक पहुंचने में खासी मशक्कत की, ऐसा प्रतीत हो रहा है! कैबिनेट मंत्रियों की सूची में उनका पांचवा स्थान है, तो जो नीति बनी उसमें सीनियर मंत्रियों को संभागीय मुख्यालय वाले जिले में प्रभार देना तय हुआ होगा (हालांकि कुछ अपवाद भी हैं). इस नाते से उन्हें उज्जैन संभागीय मुख्यालय का उज्जैन जिला मिल गया!
मगर इस बहाने उन नवांकुर मंत्रियों के अरमान ध्वस्त कर दिए गए जो जहां से विधायक और जिस जिले का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं, वहीँ का प्रभारी मंत्री बनकर भिन्न-भिन्न प्रकार के वारे-न्यारे करना चाहते थे! शायद ‘श्रेष्ठी वर्ग’ समझ गया था कि इन तेजी-से उभरते “भाई” लोगों के लिए माया ही सब-कुछ है और इनके मोह में सब फंस गए तो बार-बार विलंबित नगरीय निकाय और पंचायती राज संस्थाओं के चुनावों में भी लेने के देने पड़ जाएंगे!
इस बीच, उज्जैन जिला कई कारणों से चर्चा में रहा है. कोरोना काल में यहां “आपदा में अवसरों” को जिस तरह भुनाया गया है, उसकी कई विश्व-स्तरीय मिसाल हैं! प्राय: समूची शासकीय संस्थाओं को कमजोर करने के बाद निजी संस्थाओं को दूसरी लहर में ‘कहर’ ढाने की बेशर्मिपूर्वक छूट दे दी गई! उज्जैन और अन्य शहरी इलाकों में ही नहीं, बल्कि ग्रामीण अंचल में भी अनगिनत लोग हाहाकार करते रह गए! ना जाने कितने निर्दोष और निर्लिप्त लोगों को मरने पर छोड़ दिया गया! कुप्रबंधन और कुरावस्था का जो कलंक महाकाल जी की इस लीला नगरी को लगा है, उसकी भरपाई कब और कौन करेगा, ये एक मिलियन डॉलर सवाल है!
कहते हैं कि जगदीश जी जितने निर्मोही हैं, उतने निर्मम भी! वे घाट-घाट का स्वाद चख चुके हैं! अब तक वे जान ही चुके हैं (?) कि उनकी सदाशयता के लोगों ने क्या-क्या अर्थ और फायदे ले लिए! ऐसे में ये देखना दिलचस्प रहेगा कि सर्वोपरि नेतृत्व ने उन्हें विश्वास की जो बागडोर सौंपी है, वो क्या कारीगरी दिखाती है?