दूध में उफान 2 : किसान खाली हाथ, विक्रेता मालामाल

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नितिनमोहन शर्मा

दूध के मनमाने तरीके से बढ़ाये गए दाम को लेकर जिला प्रशासन से लेकर जनप्रतिनिधियों तक मे सन्नाटा बरकरार है। शहर के 4-5 बड़े दूध के दुकानदारो ने मिलकर दूध के भाव बढ़ा दिए। इनसे कोई पूछने वाला नही की ऐसा क्यो ओर किसकी इजाजत से किया? बहाना बनाया गया कि पशु आहार की कीमतें बढ़ गई इसलिए दस महीने में दस रुपये तक दाम बड़ा दिए। लेकिन जिसके पास पशु है, वो किसान तो इस बड़े हुए दाम में भी स्वयम को ठगा महसूस कर रहा है।

किसान खाली हाथ है और विक्रेता मालामाल होता जा रहा है। किसानों का कहना है हमसे तो साल में एक बार जो दूध बांध लिया जाता है, उसी वक्त सालभर का भाव भी तय हो जाता है। हमे इस बढ़त का कोई सीधा फायदा नही मिलता। हमे उसी रेट में सालभर विक्रेता को दूध देना रहता है जो एक बार की बैठक में तय हो जाता है। किसान दूध उत्पादक कहलाता है लेकिन भाव मे इज़ाफ़ा विक्रेता कर रहे है। इन विक्रेताओं पर क्या किसी का कंट्रोल नही? क्या कलेक्टर भी इनसे पूछ नही सकते कि दूध के दाम क्यो ओर किस कारण बढ़ाये? एक दौर इस शहर ने तत्कालीन कलेक्टर अजित जोगी का भी देखा है जिनके समय तीन चार दिन के चिंतन मन्थन ओर रेसीडेंसी में बैठकों के बाद शहर में दूध क्या भाव बिकेगा, तय होता रहा है।

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सरकार जिन किसानों के वोट बैंक के विषय मे चुप रहती है, उसे भी खबर नही की किसान तो शुद्ध रूप से ठगा रहा है। दूध विक्रेता किसान का दूध फेट के हिसाब से तोलकर लेता है। इसके लिए दूध का मावा तक बनाया जाता है। अगर अनुपात की तुलना में मावा कम बैठा तो विक्रेता किसान का पैसा काट लेता है कि क्वॉलिटी ठीक नही थी। लेकिन ग्राहक को उसी ततपरता से शुद्ध दूध मिल पाता है? न ग्राहक के पास ऐसी कोई व्यवस्था है कि वो दूध की क्वॉलिटी की जांच कर सके कि 58 – 60 रुपये देने के बाद भी क्या उसे साढे पांच या 6 फेट गुणवत्ता वाला दूध मिल रहा है?

दूध के बाजार में सांची ओर अमूल की डिमांड बढ़ने का एक प्रमुख कारण ये भी है कि आम आदमी सोचता है कि जब 58/60 रुपये देना ही है तो क्यो न ग्यारंटी से 6 साढे 6 फेट दूध देने वाले सांची अमूल से दूध लू। कम से कम दूध 6 फेट का तो रहेगा। जबकि इतनी कीमत चुकाने के बाद भी ग्राहक की भगोनी में मिलावटी दूध आता है। इस शहर में उंगली पर गिन लो, इतने दूध वाले भी नही बचे जो आज भी बगेर मिलावट का दूध बेचते है।

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शुद्ध दूध बेचने वाली ये दुकानें भी इसलिए इस काम को शिद्दत से कर रही है कि उनके यहां पीढ़ियों से दूध का काम है और पुरखो ने इस व्यवसाय में शुद्धता के लिए पहचान बनाई है। जिनके पुरखे दूध का धंधा पूरी ईमानदारी से करते थे और दूध में मिलावट को गो हत्या के सामान पाप मानते थे। ऐसी दुकानें 20-25 लाख आबादी वाले इस शहर में मुश्किल से दस बीस भी नही होगी। लेकिन दूध के धंधे में जबसे धंधेबाज लोग उतरे है, शुद्ध दूध बेचने वाले भी मुसीबत में है।

दूध विक्रेता संघ के नाम से बनी निजी हितों की दुकानों ने इस धंधे पर अपरोक्ष रूप से कब्जा जमा लिया है। कभी इस शहर में दूध विक्रेता संघ की अगुवाई ऐसे दूध वाले किया करते थे जिनकी अपनी स्वयम की ओर दूध की प्रतिष्ठा होती थी। अब इस संघ में ज्यादातर वो लोग आ गए है जिनके लिए ग्राहक ओर किसान कोई मायने नही रखते। बस मुनाफा ही प्राथमिकता।

उधर सरकार भी कम नही। उसने पशु आहार पर भी 5 प्रतिशत जीएसटी ठोक रखी है। खली कपास्या ओर भूंसा जैसी पशुधन सम्बन्धी जरूरी आहार भी टेक्स के दायरे में लेकर सरकार ने भाव बढ़ाने वाले विक्रेताओं की राह ओर आसान कर दी। वे इस आड़ में इस शहर में बीते सात साल से भाव बढ़ाये ही जा रहे है। एक बार भी भाव कम नही हुए। सूत्र पशु आहार के पीछे सट्टा बाजार को भी सक्रिय बता रहे है। सूत्रों के मुताबिक पशु आहार में जमकर सट्टाबाजार सक्रिय है। ये पशु आहार का भाव उतरने ही नही देते।