पत्रकारिता के तीर्थ में सप्रेजी की याद

Akanksha
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अपने ज़माने के मूर्धन्य पत्रकार माधवराव सप्रे की कर्मस्थली छत्तीसगढ़ के पेंड्रा में उनकी स्मृति में आयोजित सप्रे संवाद में मुख्य वक्ता के तौर पर हिस्सा लेने का अवसर मिला । हममें से कितने लोग यह जानते हैं कि महात्मा गांधी के दक्षिण अफ्रीका से 1915 में आने के कई साल पहले सप्रे जी स्वराज और स्वदेशी को स्वीकार और विदेशी का बहिष्कार आंदोलन छेड़ चुके थे ।गांधी जी जिन लोगों से प्रेरित थे ,उनमें से एक सप्रे जी भी थे ।दादा माखनलाल चतुर्वेदी, सेठ गोविंददास और द्वारिका प्रसाद मिश्र जैसे महानुभावों को उन्होंने संस्कारित करने का काम किया ।उनके हिंदी केसरी पत्र से गोरी हुकूमत इतना खौफ खाती थी कि धोखे से पत्र के छह हज़ार पाठकों के पते लिए गए और उन पर दबाव डाला गया कि हिंदी केसरी खरीदना बंद करें । बाकायदा एक आदेश निकला कि हिंद केसरी पढ़ने वाले लोगों के रिश्तेदारों को नौकरी से निकाल दिया जाएगा,उनकी पेंशन बंद कर दी जाएगी और उन्हें जेल की हवा खानी पड़ेगी ।


उनकी हिंदी ग्रंथमाला तो ग़ज़ब की थी । जून 1908 में उन्होंने एक लेख छापा – अंगरेजी राज से हिंदुस्तान का सत्यानाश । एक अन्य लेख प्रकाशित हुआ,जिसका शीर्षक था – स्वदेशी आंदोलन और बायकॉट ।इसमें लिखा था कि ईस्ट इंडिया कंपनी से भारत को कितना नुक़सान हुआ ।इस अंक को ज़ब्त कर लिया गया ।याद रखिए कि तब तक महात्मा गांधी भारत नहीं आए थे ।
वे एक ऐसे अनोखे संपादक थे ,जिन्होंने भारत में आर्थिक पत्रकारिता की नींव डाली ।उन्होंने अर्थशास्त्र की प्रामाणिक शब्दावली हम लोगों को सौंपी । आर्थिक विषयों पर उनके बीस से अधिक आलेख ऐसे हैं जो आज एक सौ पंद्रह बरस बाद भी उपयोगी हैं ।
सप्रेजी के सरोकार और आज पत्रकारिता की चुनौतियों पर यह एक सार्थक संवाद रहा । रायपुर से जाने माने पत्रकार भाई गिरीश पंकज और सुधीर शर्मा को भी गहराई से सुनने का अवसर प्राप्त हुआ ।बिलासपुर के पुराने मित्र राजेश दुआ और साथी पत्रकार राजेश अग्रवाल इस यात्रा के सबब बनें ।पेंड्रा के ज़िला शिक्षा अधिकारी मनोज राय से भी शानदार मुलाक़ात हुई ।चित्र उसी अवसर के हैं ।