नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में आज केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक हुई। वहीं इस बैठक में ताड़ के तेल (पाम ऑयल) के लिए एक नए मिशन की शुरूआत को मंजूरी दी गई है, जिसका नाम राष्ट्रीय खाद्य तेल-पाम ऑयल मिशन (एनएमईओ-ओपी) है। बता दें कि, यह केंद्र सरकार द्वारा प्रायोजित नई योजना है, जिसका फोकस पूर्वोत्तर के क्षेत्रों तथा अंडमान और निकोबार द्वीप समूह पर है। साथ ही केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने मंत्रिमंडल की बैठक के बाद मीडिया से बात करके इसकी पूरी जानकारी दी। उन्होंने बताया कि वर्तमान में खाद्य तेलों का काफी आयात होता है, इसलिए जरूरी है कि देश में ही खादय तेलों के उत्पादन में तेजी लाई जाए, जिसके लिए पाम ऑयल का रकबा व पैदावार बढ़ाना बहुत अहम है। 11,040 करोड़ रु. की इस योजना से पाम ऑयल किसानों को अत्यधिक लाभ होगा, पूंजी निवेश बढ़ेगा, रोजगार सृजन होगा, आयात पर निर्भरता कम होगी और किसानों की आय में भी वृद्धि होगी।
केंद्रीय मंत्री तोमर ने बताया कि योजना के कुल 11,040 करोड़ रुपए के खर्च में से केंद्र सरकार 8,844 करोड़ रु. वहन करेगी, वहीं 2,196 करोड़ रु. राज्यों को वहन करना है। योजना में वर्ष 2025-26 तक पाम ऑयल का रकबा 6.5 लाख हेक्टेयर बढ़ाने और इस तरह अंततः 10 लाख है। रकबे का लक्ष्य पूरा करने का प्रस्ताव है। आशा है कच्चे पाम ऑयल (सीपीओ) की पैदावार 2025-26 तक 11.20 लाख टन व 2029-30 तक 28 लाख टन तक पहुंच जाएगी। उन्होंने बताया कि, पीएम मोदी के नेतृत्व में कृषि क्षेत्र में किए गए निरंतर प्रयासों के फलस्वरुप देश खाद्यान्न बागवानी के क्षेत्र में आत्मनिर्भर हो चुका है, वहीं उनके आह्वान पर देश में दलहन का उत्पादन व उत्पादकता भी बढ़ी है। इसी तरह भारत सरकार ने तिलहन व पाम ऑयल की पैदावार बढ़ाने के भी अनेक प्रयास किए है। वर्ष 2014-15 में 275 लाख टन तिलहन उत्पादन हुआ था, जो वर्ष 2020-21 में बढ़कर 365.65 लाख टन हो गया है।
तोमर ने मीडिया से आगे कहा कि पाम ऑयल की पैदावार की क्षमता के मद्देनजर वर्ष 2020 में भारतीय तेल ताइ अनुसंधान संस्थान ने पाम ऑयल की खेती के लिए विश्लेषण कर 28 लाख हेक्टेयर में पाम ऑयल की खेती के बारे में विचार बताए थे। लिहाजा, ताड़ के पौधे लगाने की अपार क्षमता मौजूद है, जिसके आधार पर कच्चे ताड़ के तेल की पैदावार भी बढ़ाई जा सकती है। मौजूदा समय में ताड़ की खेती के तहत केवल 3.70 लाख हेक्टेयर का रकबा ही आता है।
उन्होंने बताया कि, अन्य तिलहनों की तुलना में प्रति हेक्टेयर के हिसाब से ताड़ के तेल का उत्पादन प्रति हेक्टेयर 10 से 46 गुना अधिक होता है। इसके अलावा एक हेक्टेयर की फसल से लगभग चार टन तेल निकलता है। इस तरह, इसकी खेती में बहुत संभावनाएं हैं। अभी कच्चे ताड़ का तेल अधिकांशतः आयात किया जाता है। इसे मद्देनजर नई योजना के प्रस्ताव को मंजूरी दी गई है। इससे देश में ताड़ की खेती का रकबा व पैदावार बढ़ाई जा सकेगी। नई योजना में मौजूदा राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन-तेल ताइ कार्यक्रम शामिल कर दिया जाएगा।
साथ ही कृषि मंत्री तोमर ने बताया कि नई योजना में दो प्रमुख क्षेत्रों पर विशेष ध्यान दिया गया है। पाम ऑयल के किसान ताजे फलों के गुच्छे (एफएफची) तैयार करते हैं, जिनके बीज से तेल-उद्योग तेल निकालता है। इस समय इन एफएफबी की कीमतें सीपीओ के अंतर्राष्ट्रीय मूा में उतार-चढ़ाव के आधार पर तय होती हैं। पहली बार केंद्र सरकार इन एफएफबी की कीमत के लिए किसानों को आश्वासन दे रही है। यह व्यवहार्यता मूल्य (वीपी) कहलाएगा, यानी किसानों को कोई घाटा नहीं होने दिया जाएगा।
तोमर के अनुसार, योजना का दूसरा प्रमुख पहलू यह है कि विभिन्न तरह की भूमिकाओं और गतिविधियों में तेजी लाई जाये। ताड़ की खेती के लिए सहायता में काफी बढ़ोतरी की गई है। पहले प्रति हेक्टेयर 12 हजार रु. दिए जाते थे, जिसे बढ़ाकर 29 हजार रु. प्रति हेक्टेयर कर दिया गया है। इसके अलावा रखरखाव और फसलों के दौरान भी सहायता में बढ़ोतरी की गई है। पुराने बार्गो को दोबारा चालू करने के लिए 250 रु. प्रति पौधा के हिसाब से विशेष सहायता दी जा रही है, यानी एक पौधा रोपने पर 250 रू. मिलेंगे। पौधारोपण सामग्री की कमी दूर करने के लिए, बीजों की पैदावार करने वाले बागों को सहायता दी जाएगी। इसके तहत भारत के अन्य स्थानों में 15 हेक्टेयर के लिए 80 लाख रु. तक की सहायता राशि दी जाएगी, जबकि पूर्वोत्तर तथा अंडमान क्षेत्रों में यह सहायता राशि 15 हेक्टेयर पर एक करोड़ रु. निर्धारित की गई है। इसके अलावा शेष भारत में बीजों के बाग के लिए 40 लाख रु. और पूर्वोत्तर तया अंडमान क्षेत्रों के लिए 50 लाख रु. तय किए गए हैं।