मैरिंगो सीआईएमएस हॉस्पिटल ने पार्किंसंस रोग को समझने और चलने-फिरने में होने वाली समस्याओं को दूर करने के बारे में जागरूकता बढ़ाने की मुहिम शुरू की

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• पार्किंसंस रोग में मरीजों को चलने-फिरने में काफी कठिनाई का अनुभव होता है, और वे इसका सामना करने में असमर्थ होते हैं

• पार्किंसंस लंबे समय तक कायम रहने वाला रोग है, जिसमें मरीज की स्थिति लगातार बिगड़ती जाती है

इंदौर : पार्किंसंस डिजीज को आमतौर पर ‘पार्किंसंस’ के नाम से जाना जाता है, और पूरी दुनिया में लाखों लोग बड़े पैमाने पर फैल चुकी इस बीमारी से पीड़ित हैं। मैरिंगो सीआईएमएस हॉस्पिटल ने सेहत से जुड़ी इस बड़ी समस्या की ओर लोगों का ध्यान आकर्षित करने का प्रयास किया है। मैरिंगो सीआईएमएस हॉस्पिटल की टीम भारत में एकमात्र “पूर्णकालिक टीमों” में से एक है, जिनके पास इस क्षेत्र में व्यापक अनुभव और विशेषज्ञता है। साथ ही, इसे वर्तमान में पश्चिमी भारत की इकलौती ऐसी टीम होने का विशेष गौरव भी हासिल है।

पार्किंसंस रोग एक न्यूरोडीजेनेरेटिव विकार है, जिसका असर मुख्य रूप से मरीजों के चलने-फिरने से संबंधित गतिविधियों पर पड़ता है। इस बीमारी में मस्तिष्क में डोपामाइन का निर्माण करने वाली कोशिकाएँ धीरे-धीरे नष्ट होने लगती हैं, जिससे शरीर में कंपन, अकड़न, चलने-फिरने की दर धीमी होना, तथा संतुलन एवं तालमेल बनाए रखने में कठिनाई जैसे लक्षण दिखाई देते हैं। अक्सर ये लक्षण समय के साथ बढ़ते हैं और इससे पीड़ित व्यक्ति के जीवन की गुणवत्ता पर काफी बुरा प्रभाव डाल सकते हैं।

डॉ. चिराग सोलंकी, लीड न्यूरोसर्जन, मैरिंगो सीआईएमएस हॉस्पिटल, कहते हैं, “वैसे तो इस रोग के कई लक्षण हैं, लेकिन इनमें से प्रमुख लक्षणों में चलने-फिरने की दर धीमी होना (ब्रैडीकिनेसिया), जो सबसे आम समस्या है और इसकी वजह से रोजमर्रा के कामकाज करना बेहद चुनौतीपूर्ण हो जाता है; मांसपेशियों में अकड़न (कड़ापन), जिससे चलने-फिरने पर असर पड़ता है और यह सीमित हो जाता है; संतुलन बनाए रखने में कठिनाई के साथ लडखडाकर चलना, जिससे गिरने का खतरा बढ़ जाता है; शरीर में कंपन, जो पार्किंसंस का सबसे स्पष्ट संकेत है, लेकिन यह सबसे प्रमुख लक्षण नहीं है; और इसके अलावा कब्ज, नींद पूरी नहीं होना, दर्द, डिप्रेशन तथा संज्ञानात्मक परिवर्तन शामिल हैं।

पार्किंसंस के मरीजों के लिए कुछ बातें सबसे ज्यादा मायने रखती हैं, जिनमें लाइफस्टाइल में बदलाव करना शामिल है और इसके लिए नियमित तौर पर व्यायाम, फिजिकल थेरेपी, सेहतमंद आहार, ध्यान और योग की जरूरत होती है। इन सब बातों का ध्यान रखने से पार्किंसंस से पीड़ित मरीजों के जीवन की गुणवत्ता काफी बेहतर हो सकती है। दवाइयों से मरीज की स्थिति को बिगड़ने से रोका जा सकता है और जबकि जिन मरीजों पर दवाओं का असर नहीं होता है उनके लिए डीबीएस (डीप ब्रेन स्टिमुलेशन) सर्जरी बेहद कारगर है, या फिर बहुत अधिक डोज के कारण दुष्प्रभावों का सामना करने वाले मरीजों को डीबीएस नामक अत्यधिक उपचार की जरूरत होती है।

डीप ब्रेन स्टिमुलेशन या डीबीएस एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें बेहद छोटे आकार के छोटे इलेक्ट्रोड को दिमाग के भीतर लगाया जाता है, जो दिमाग के खराब सर्किट को नियंत्रित करने के लिए इलेक्ट्रिकल पल्स भेजती है। सरल शब्दों में कहा जाए तो यह एक “ब्रेन पेसमेकर” है। यह डिवाइस दिमाग में तंत्रिकाओं की असामान्य गतिविधि को नियंत्रित करने और कुछ न्यूरोलॉजिकल रोगों के लक्षणों को कम करने के लिए मस्तिष्क के कुछ खास हिस्सों में इलेक्ट्रिकल इंपल्स भेजता है। दूसरे तरह के न्यूरोलॉजिकल रोगों को ठीक करने के लिए भी डीबीएस का उपयोग किया जाता है, और यह तकनीक मरीजों के जीवन की गुणवत्ता को काफी बेहतर बना सकती है। इस प्रक्रिया में कॉलरबोन के नीचे छोटे इलेक्ट्रोड और एक पेसमेकर लगाने के लिए खोपड़ी में दोनों तरफ केवल दो छोटे छेद करने की जरूरत होती है। अत्याधुनिक उपकरणों की सुविधा के साथ अनुभवी और विशेषज्ञ “टीम” इस इलाज में सफलता की कुंजी है।

डीबीएस शरीर में होने वाले कंपन, अकड़न, धीमापन और अस्थिरता को कम करता है, जिससे मरीज के चलने-फिरने की क्षमता और उसके जीवन की गुणवत्ता में जबरदस्त सुधार होता है। डीबीएस सर्जरी कराने के बाद, मरीज पहले की तरह अपने रोजमर्रा के सभी कामकाज को बिना किसी सहायता के आराम से कर सकता है। डीबीएस को तंत्रिकाओं की असामान्य गतिविधि को नियंत्रित करने के लिए जाना जाता है, जिनके चलते शरीर में कंपन, अकड़न और धीमापन जैसे लक्षण दिखाई देते हैं। इसके अलावा, डीबीएस डोपामाइन के स्तर को बनाए रखने, लक्षणों में सुधार करने, दवाओं को कम करने और स्थिति को लंबे समय तक संभालने में भी मदद करता है।

डॉ. सोलंकी आगे कहते हैं, “पार्किंसंस हर किसी को अलग-अलग तरीके से प्रभावित करता है। लिहाजा इस बीमारी के इलाज के लिए एक निश्चित तरीका नहीं अपनाया जाता है। हमेशा इस क्षेत्र के विशेषज्ञ की मदद लें, क्योंकि सही समय पर पता लगाने के साथ-साथ उचित उपचार बेहद महत्वपूर्ण है। डीबीएस ने पार्किंसंस के खिलाफ लड़ाई में उम्मीद जगाई है। आइए हम आने वाले कल को बेहतर बनाने के लिए उम्मीद की इस मशाल को बेहतर कल के लिए आशा की मशाल ऊँचा रखें। हम सब मिलकर पार्किंसंस को मात दे सकते हैं।”

एक अध्ययन के नतीजे बताते हैं कि, भारत में 70 लाख बुजुर्ग पार्किंसंस से पीड़ित हैं। पार्किंसंस रोग (पीडी) प्रति 1000 जनसंख्या पर 1-2 लोगों को प्रभावित करता है, जो किसी भी उम्र के हो सकते हैं। उम्रदराज लोगों में पार्किंसंस के मामलों में बढ़ोतरी हो रही है और यह 60 साल से अधिक उम्र की 1% आबादी को प्रभावित करता है।