इनफर्टिलिटी में कई बार कारण मेलफैक्टर होता है और ट्रीटमेंट फीमेल का करवाया जाता है, सही मार्गदर्शन नहीं होने और ट्रीटमेंट मैं डिले होने से एक उम्र के बाद महिला भी इनफर्टिलिटी शिकार हो जाती है – डॉक्टर इशिता गांगुली शल्बी हॉस्पिटल

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इंदौर। हमारी बदलती लाइफस्टाइल में हमारे खान-पान और अन्य चीजों के चलते इनफर्टिलिटी से संबंधित समस्या को बहुत ज्यादा बढ़ावा मिला है लाइफस्टाइल सिडेंट्री होने के चलते एक्सरसाइज कम हो गई है हम चार दिवारी से बाहर नहीं निकल पाते है। इस वजह से मोटापा बढ़ता है जोकि इनफर्टिलिटी को 2 गुना बढ़ा देता है। वही एक्सरसाइज मैं कमी होने के चलते इसका असर सारे ऑर्गन पर तो पड़ता ही है साथ ही ब्लड सप्लाई भी प्रॉपर तरीके से यूट्रस तक नहीं हो पाता है। वही आजकल करियर मैं भाग दौड़ भरी जिंदगी के चलते स्ट्रेस भी बहुत ज्यादा बढ़ गया है जिसके चलते शादी 30 के बाद होती है इस वजह से भी कई बार प्रेगनेंसी से संबंधित समस्या देखने को सामने आती है। इसी के साथ कई बार ग्रामीण क्षेत्र की लड़कियों में इनफर्टिलिटी से संबंधित समस्या कम आती है साथ ही ट्रीटमेंट के दौरान शहर की लड़कियों के मुकाबले बेहतर रिजल्ट मिलते हैं इसका एक कारण स्ट्रेस फ्री लाइफ है। इसी के साथ इनफर्टिलिटी में कई बार मेलफैक्टर भी काम करता है जिसे लोग ज्यादातर नजरअंदाज करते हैं। कई बार पुरुषों की वजह से भी यह समस्या सामने आती है। 30% पॉपुलेशन ऐसी आती है जिसमें मेल फैक्टर की वजह से प्रेगनेंसी नहीं होती है। मिस गाइड की वजह से महिला का ट्रीटमेंट चलता है और ज्यादा समय बाद लड़की की उम्र ज्यादा होने पर वह दोनों फैक्टर में कन्वर्ट हो जाता है।

यह बात डॉक्टर इशिता गांगुली ने अपने साक्षात्कार के दौरान कही वह शहर के प्रतिष्ठित शल्बी हॉस्पिटल में गायनेकोलॉजी एंड इनफर्टिलिटी स्पेशलिस्ट के रूप में अपनी सेवाएं दे रही है। साथ ही वह अपने विजय नगर स्थित इशिता गांगुली आईवीएफ सेंटर पर भी अपनी सेवाएं दे रही है।

सवाल. इनफर्टिलिटी से संबंधित समस्या क्या है?

जवाब. इनफर्टिलिटी की परिभाषा यह कहती है कि अगर एक कपल 6 महीने या 1 साल तक साथ रहता है और प्रेगनेंसी नहीं होती है तो इसे आमतौर पर इनफर्टिलिटी माना जाता है। इसमें तीन महत्वपूर्ण फैक्टर होते हैं जिसमें स्पर्म नंबर ऑफ क्वालिटी, अंडे और उसकी गुणवत्ता वही यूट्रस और उसके ट्यूब में कोई प्रॉब्लम होना शामिल है। इन तीन मुख्य कारण के चलते 10 से 20% जनता में इस प्रकार की समस्या देखी जाती है।इनफर्टिलिटी से संबंधित समस्या की अगर बात की जाए तो इसको लेकर लोगों में जागरूकता तो आई है लेकिन सही मार्गदर्शन नहीं मिलने से कई बार लोग परेशान होते रहते हैं। हर गायनेकोलॉजिस्ट इनफर्टिलिटी स्पेशलिस्ट नहीं होती है। सही मार्गदर्शन नहीं मिलने की वजह से लोग मानसिक और आर्थिक रूप से परेशान होते हैं। कई बार तो ऐसे केस सामने आते हैं कि समस्या कुछ और होती है ट्रीटमेंट किसी और चीज का चल रहा होता है। वही कई बार मेल इनफर्टिलिटी होती है और ट्रीटमेंट फीमेल का चलता रहता है।हमारे समाज की एक विचारधारा है कि इनफर्टिलिटी संबंधित समस्या में सबसे पहले ट्रीटमेंट महिला का स्टार्ट किया जाता है वहीं पुरुष की ओर किसी का ध्यान नहीं जाता है।

सवाल. एंडोस्कोपी और लेप्रोस्कोपी सर्जरी से किस तरह से इनफर्टिलिटी से संबंधित समस्या को ठीक किया जाता है?

जवाब. एंडोस्कोपी और लेप्रोस्कोपिक सर्जरी भी इनफर्टिलिटी की समस्या में डील करने का एक पार्ट है। एंडोस्कोपी में हिस्टेरोस्कॉपी की मदद से दूरबीन को यूट्रस के अंदर डाला जाता है। जिसकी मदद से यह देखने में आसानी होती है कि किस प्रकार की समस्या यूट्रस में आ रही है इसमें कई बार परत नहीं बन पाती है। वही कई कारणों के चलते टीबी और अन्य इन्फेक्शन के कारण किसी चीज का चिपका होना पाया जाता है। इसे इनफर्टिलिटी एन्हेंसिंग सर्जरी के माध्यम से ठीक किया जाता है। वही कई केस में स्पम, एग्स और ट्यूब तो सही होती है लेकिन कई बार यूट्रस में गठान और अन्य समस्या होने पर उसे रिपेयर करना पड़ता है। आजकल इस टेक्नोलॉजी में इंप्रूवमेंट की वजह से कई प्रकार की समस्याएं पकड़ में आ जाती है और ट्रीटमेंट करना बहुत आसान हो गया है। वही लेप्रोस्कोपिक की मदद से पेट में दूरबीन डालकर कई चीजों को डायग्नोस किया जाता है जिसमें ट्यूब का चिपका होना, टीबी और अन्य शामिल है।

सवाल. आईवीएफ सेंटर से प्रेगनेंसी कैसे प्लान की जाती है यह पूरी प्रक्रिया क्या होती है?

जवाब. आईवीएफ सेंटर में हम टेस्ट ट्यूब की मदद से बच्चे प्रेग्नेंसी प्लान करते हैं। आईवीएफ की मदद से और इस प्रक्रिया में पुरुष के एक स्पर्म को लेकर महिला के एक एग में डाला जाता है। इसके बाद महिलाओं को बेस्ट क्वालिटी के इंजेक्शन 8 से 10 दिन तक लगाए जाते हैं। जब हमें यह लगता है कि एग्स मेच्योर हो गए हैं तो महिला को बेहोश कर इन एग्स को निकाल लिया जाता है इसके बाद माइक्रोस्कोप की मदद से एक एग में स्पर्म डाला जाता है। जिसे मेडिकल टर्म में इक्सी कहा जाता है। इसे फर्टिलाइज कर चार से 5 दिन पनपने दिया जाता है जब यह तैयार हो जाते हैं तो उसमें से बेस्ट भ्रूण को निकालकर यूट्रस में डाल दिया जाता है। यह तकनीक उन पुरुषों के लिए काफी फायदेमंद है जो किसी कारण शेष की संख्या नहीं पढ़ा पा रहे हैं। नॉर्मल प्रेगनेंसी के लिए जहां 40 मिलियन स्पर्म की जरूरत होती है वहीं अब इस पद्धति से एक स्पर्म में भी काम हो जाता है। वहीं महिलाओं में इंजेक्शन के माध्यम से एग्स की क्वालिटी बहुत ज्यादा इम्प्रूव हो जाती है।आईवीएफ पद्धति में किसी महिला की ट्यूब खराब होती है तो भी कोई समस्या नहीं होती हैं। इस पद्धति के बाद जब हम 14 दिन बाद प्रेगनेंसी टेस्ट करते हैं तो 70% से ऊपर पॉजिटिव रिजल्ट हमारे सामने आते हैं। हमने शहर में अभी तक टॉप रिजल्ट दिए है।

सवाल. आपने अपनी मेडिकल फील्ड की पढ़ाई किस क्षेत्र में और कहां से पूरी की है?

जवाब. मैंने अपनी एमबीबीएस और मास्टर ऑफ सर्जरी ऑब्सटेट्रिक्स एंड गायनेकोलॉजी की पढ़ाई रायपुर गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज से पूरी की है। वही मैंने चंडीगढ़ गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज से डीएनबी कंप्लीट किया है। मैंने राजीव गांधी मेडिकल यूनिवर्सिटी में इनफर्टिलिटी में रीप्रोडक्टिव मेडिसिन में फैलोशिप प्रोग्राम में हिस्सा लिया है। अपनी पीजी की पढ़ाई पूरी होने के बाद मैंने हैदराबाद की यशोदा ग्रुप ऑफ़ हॉस्पिटल, कामिनी ग्रुप ऑफ़ हॉस्पिटल और अन्य हॉस्पिटल में अपनी सेवाएं दी हैं। इंदौर आने के बाद मैंने सीएचएल हॉस्पिटल में अपनी सेवाएं दी वहीं वर्तमान में अपने शहर के प्रतिष्ठित शल्बी हॉस्पिटल में सेवाएं दे रही हूं।